स्कूलों के मामले में आखिर प्रशासन क्यों है मूकदर्शक?
सिवनी। जिला मुख्यालय सिवनी में सेंट्रल बोर्ड ऑफ स्कूल एजूकेशन (सीबीएसई बोर्ड) का झुनझुना बजाकर निजी तौर पर संचालित होने वाले विद्यालयों द्वारा विद्यार्थियों के पालकों को जमकर लूटा जा रहा है और सांसद, विधायक सहित जिला प्रशासन मूक दर्शक बना बैठा है. स्थानीय विधायक श्रीमति नीता पटेरिया से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने दो टूक शब्दों में यह कहा कि यह निजी तौर पर संचालित होने वाली शाला है, इसमें जनप्रतिनिधि भला क्या कर सकता है?
गौरतलब है कि इस साल के शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही जिला मुख्यालय में सीबीएसई बोर्ड के एफीलेशन के बारे में तरह तरह के पर्चे पंपलेट बांटकर बच्चों के पालकों को आकर्षित करने का प्रयास किया गया है. जो जिसे खींच सका उसने अपनी ताकत इसमें झोंक दी. बाद में बच्चों ने शालाओं में प्रवेश लिया तो अपने आप को ठगा सा महसूस किया. आधे अधूरे शाला भवन, आवागमन के साधनों का अभाव, जबर्दस्त शिक्षण शुल्क, केपीटेशन फीस, दुकान विशेष या विद्यालय से ही गणवेश या कापी किताबों का क्रय किया जाना आदि के चलते पालकों की तो बन आई है.
सीबीएसई के लालच में निजी शाला के संचालकों द्वारा अहर्ताएं पूरी किए बिना ही विद्यार्थियों को लालच दिया जाकर उनके पालकों की जेब तराशी की जा रही है. सीबीएसई के निरीक्षणकर्ता अधिकारी भी न जाने क्या देखकर इन शालाओं को मान्यता देने की अनुशंसा भी कर देते हैं. व्याप्त चर्चाओं के अनुसार जबर्दस्त चढावे के बोझ के तले ये अधिकारी दबे होते हैं.
यहां उल्लेखनीय होगा कि जब तक ये शालाएं सीबीएसई बोर्ड से मान्यता नहीं ले लेती तब तक ये मध्य प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मण्डल के अधीन ही काम करती हैं. मध्य प्रदेश सरकार का एक मुलाजिम जिसे हर जिले में जिला शिक्षा अधिकारी कहा जाता है, उसके शासकीय दायित्वों में इन शालाओं का निरीक्षण और मशिम के अनुकूल अर्हातांएं होना सुनिश्चित कराना आता है. विडम्बना ही कही जाएगी कि जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सालों से इन शालाओं का निरीक्षण नहीं किया गया है. बताया जाता है कि बच्चों को सीबीएसई के भुलावे में रखने गरज से सीबीएसई की तर्ज पर इन शालाओं ने सीबीएसई की मान्यता न मिलने के बावजूद भी सेकंड सटर्डे अर्थात द्वितीय शनिवार का अवकाश मनमर्जी से घोषित कर दिया गया है. अब तक महज केंद्रीय विद्यालय में ही द्वितीय शनिवार को अवकाश घोषित होता है.
इस संबंध में जब परिसीमन के उपरांत समाप्त हुई सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद और जिला मुख्यालय सिवनी को अपने आप में समेटने वाली सिवनी की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया से इस प्रतिनिधि ने चर्चा की तो उन्होंने छूटते ही कहा कि चूंकि ये सारे मामले निजी तौर पर संचालित होने वाली शालाओं के हैं, अतरू इस बारे में वे कुछ भी नहीं कर सकतीं हैं, जब उनसे यह पूछा गया कि अंत्तोगत्वा परेशानी तो उनकी विधानसभा क्षेत्र में आने वाले उनके वोटर्स पालकों के बच्चों को ही हो रही हो, वह चाहे निजी शाला में अध्ययन करे या फिर सरकारी शाला में, तो वे चुप्पी साध गईं. इस प्रतिनिधि से चर्चा के दौरान श्रीमति पटेरिया ने कहा कि यह मामला जिला प्रशासन को ही देखना चाहिए, अगर प्रशासन इस मामले में चुप है, इसका तातपर्य है सब कुछ ठीक ठाक ही है. वस्तुतरू सीबीएसई की मान्यता की अपेक्षा में जो शालाएं वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल के तहत संचालित हो रही हैं, उनकी स्थिति बद से बदतर ही है. जिला प्रशासन द्वारा शिक्षा विभाग की कमान एक उप जिलाध्यक्ष को आफीसर इंचार्ज बनाकर दी है, पर लगता है वे भी आला अधिकारियों के इशारों की प्रतीक्षा ही कर रहे हैं. हालत देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि शिक्षा के मामले में इस जिले का कोई धनी धोरी ही नहीं बचा है.
इस संबंध में जब जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि उक्त शालाएं सीबीएसई से संबद्ध हैं और सीबीएसई के अधिकारी ही इसका निरीक्षण करते हैं, जब उनसे यह कहा गया कि जब तक सीबीएसई से संबद्धता नहीं हो जाती तब तक तो ये शालाएं प्रदेश शासन के अंतर्गत काम कर रहीं हैं, राज्य शासन के मुलाजिम चाहें तो इनकी मुश्कें कस सकते हैं, इस प्रश्र पर श्री पटले ने भी मौन साध लिया.
केंद्र शासन द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००९ लागू किया है, वहीं मध्य प्रदेश में जनशिक्षा अधिनियम २००१ लागू है, जिसके तहत राज्यों की सरकारों को यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल न जाने वाले बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में करवाया जाए. (देखिए खबर पेज तीन पर). स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष २००९ में कराए गए सर्वे में मध्य प्रदेश के लाखों बच्चे स्कूल जाने से वंचित ही पाए गए थे. सिवनी जिले में कितने बच्चे स्कूल जाने से वंचित हैं, इसकी जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में उपलब्ध ही नहीं हो सकी है. सांसद, विधायक सहित जिला प्रशासन से पुनरू जनहित में अपेक्षा है कि देश के भविष्य बनने वाले नौनिहालों के हित में कम से कम कुछ सार्थक पहल अवश्य ही करें.
(क्रमशः जारी)
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