सब उल्टा सीधा करते हो
मेरी कहाँ सुना करते हो
आग लगाते हो रातों में
सुबह-सुबह साया करते हो
प्यार करो तकरार करोगे
सब आधा-आधा करते हो
घर में ज्यादा भीड़ नहीं है
छत पे क्यों सोया करते हो
मेरी-तेरी कहा-सुनी थी
चाँद से क्यों चर्चा करते हो
चिंगारी सी क्या अन्दर है
सारी रात हवा करते हो
जीना वैसा मरना वैसा
जैसा आप हुआ करते हो
थोड़ी फ़िक्र सही लोगों की
तुम थोड़ी ज्यादा करते हो
तेरा गुस्सा दुनिया पर है
हमसे क्यों रूठा करते हो
चाँद मांगते हो अक्सरहा
बच्चों सी जिद क्या करते हो
जिस्मों की हद तय करते हैं
मन को क्यों साधा करते हो
जाने कब रब तक पहुंचेगी
तुम जो रोज दुआ करते हो
ख्वाहिश ढेरों उम्र जरा है
वक्त बहुत जाया करते हो
aap bahut achha likhte hain
जवाब देंहटाएंअरे वाह डा०साहब बहुत अच्छी गज़ल..
जवाब देंहटाएंआशा है कि इस संग्रह से कुछ और बेहतरीन रचनायें भी मिलेंगी..
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