(उपदेश सक्सेना)
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में
मशहूर शायर बशीर बद्र ने जब यह गज़ल लिखी होगी तब शायद उन्हें इस बात का गुमान भी नहीं होगा कि यह पंक्तियाँ एक दिन अपने आपको सार्थक करेंगी. सदी के महानायक का ख़िताब पाने वाले अमिताभ बच्चन को लेकर मुंबई महानगर पालिका कुछ ऐसा ही कर गुज़रा है. बच्चन के जुहू इलाके में बने बंगले प्रतीक्षा को बारिश में डूबने से बचाने के लिए मनपा ने इर्ला नाले के पास बसी सैंकडों झुग्गियों को ज़मींदोज कर दिया है. इससे वहाँ ज़मीन खाली हो गई है, जिस पर एक दीवार खड़ी की जायेगी. यह वही बँगला है जिसे कई बरस पहले नीलामी से बचाने के लिए अमरसिंह नाम के एक नेता सामने आये थे, अमरसिंह तो अमिताभ के छोटे भाई बन गए, मगर अपनी झुग्गी की क़ुर्बानी देकर एक बार फिर इस बंगले को बचाने की कोशिशें करने वालों की किस्मत अमरसिंह जैसी मतवाली नहीं लगती. वैसे अमिताभ 1975 में भी एक “दीवार” से रूबरू हो चुके हैं, और जानते हैं कि रिश्तों के बीच आई दीवार ढहाना कितना मुश्किल काम है, इन्हीं झुग्गी-झोंपड़ी के दीवानों की वजह से आज वे विश्व सिनेमाजगत में अपना यह कद हांसिल कर पाए है, अब फिर एक दीवार के लिए रिश्ते-नाते तोड़ दिये गए.
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में
उधर इन झुग्गीवालों का दर्द भी कुछ कम नहीं मगर-
फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रहता है उसके आशियाने में
वैसे यह परम्परा नई नहीं है, पहले भी गरीबों के चूल्हे तोड़कर कई अट्टालिकाएं तैयार की जाती रहीं हैं. अमिताभ के मामले में इन झुग्गी वालों की क़ुर्बानी इसलिए ली गई, ताकि वे (अमिताभ) महफूज़ रह सकें. यदि अमिताभ इस बारे में सफाई देना चाहें तो इसके लिए भी बशीर बद्र साहब ने लिखा है, जिसका ज़िक्र यहाँ मौजूं रहेगा-
किसने जलाई बस्तियाँ बाज़ार क्यों लुटे
मैं चाँद (गुजरात) पर गया था मुझे कुछ पता नहीं
(बद्र साहब से क्षमायाचना सहित)
शर्म नाम की चीज किसी किसी के पास तो बिलकुल नही होती.... लानत है जी
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंsahi kaha he aap ne
me raj bhatiya ji ki bat ka samarthan karta hun
yah to uttar pradesh k barabanki janpad k mashoor 420siya hai
जवाब देंहटाएंjanmdin ki badhai dene ki dhayawad.....
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