क्‍या इतना ही दर्द था भोपाल गैस कांड के लिए

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    कहां गया भोपाल गैस कांड का दर्द

    मंहगाई के शोर में गुम गया गैस कांड

    ध्यान भटकाने, केंद्र सरकार का नायाब तरीका

    विपक्ष, मीडिया सभी ने साधा मौन

    सब चिंतित पर आम आदमी की चिंता किसी को नहीं

    (लिमटी खरे)

    भोपाल गैस कांड का फैसला आने के उपरांत मीडिया ने इसे जिस तरह से पेश किया उससे देश भर में गैस पीडितों के प्रति सच्ची हमदर्दी उपजी थी। चहुं ओर से कांग्रेस सरकार को लानत मलानत भेजने का काम किया जा रहा था। गैस कांड के प्रमुख दोषी एवं यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को देश से भगाने और गैस पीडितों के लिए कम मुआवजा दिलवाने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र और कंुवर अर्जुन सिंह के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार को दोषी माना जा रहा था। मीडिया की संजीदगी की वजह से मामला आग पकडने लगा था, लगने लगा था कि आने वाले दिनों में कहीं कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को शर्मसार होकर गद्दी न छोडना पड जाए।

    छब्बीस साल साल पुराने मामले में जैसे ही कांग्रेस ने अपने आप को घिरता महसूस किया, उसके प्रबंधको ने तत्काल अपनी राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के कान फूंके और मंहगाई कें जिन्न को बोतल से बाहर निकालने का मशविरा दे डाला। इतिहास साक्षी है जब जब सत्ताधारी दल किसी भी मुद्दे पर घिरने की स्थिति में आते हैं, वे सबसे पहले मंहगाई को बढाने का ही उपक्रम करते हैं, क्योंकि मंहगाई का सीधा सीधा संबंध आम जनता से होता है। आम जनता जैसे ही मंहगाई को बढता देखती है, उसे सारे मामलों से कोई लेना देना नहीं रह जाता है, फिर रियाया सिर्फ और सिर्फ अपने पेट के लिए ही फिकरमंद हो उठती है।

    इस बार भी यही हुआ केंद्र सरकार ने प्रट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढा दी। यद्यपि यह बात काफी समय से चली आ रही थी कि इसकी मूल्यवृद्धि अत्यावश्यक है, किन्तु मंहगाई से जुडे इस महत्वपूर्ण मामले में मूल्यवृद्धि को केंद्र सरकार ने इसलिए रोककर रखा था, कि वक्त आने पर यह ब्रम्हास्त्र चलाया जा सके। सरकार चाहे अपने कदम को न्यायोचित ठहराने के लिए जो जतन कर लें, पर यह सत्य है कि पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल के दाम बढाकर सरकार ने आम आदमी को जीवन यापन में और दुष्कर दिनों का आगाज करवा दिया है। लुटा पिटा आम आदमी अपने नसीब को कोसने के अलावा और कुछ करने की स्थिति मंे अपने आप को नहीं पा रहा है, क्योंकि आम आदमी के लिए लडने वाला विपक्ष भी रीढविहीन होकर सत्ताधारी दल के एजेंट की भांति ही कार्यकरता नजर आ रहा है।

    सरकार इस बात से नावाकिफ हो यह संभव नहीं है कि डीजल की दरें बढाने का असर पिन टू प्लेन अर्थात हर एक चीज पर पडने वाला है। डीजल मंहगा होगा तो आवागमन मंहगा होगा, रेल बस का किराया बढेगा, माल ढुलाई बढेगी, जाहिर है बडी दरों की भरपाई कोई अपनी जेब से तो करने से रहा, तो इसकी भरपाई जनता का गला काटकर ही की जाएगी। जनसेवकों को इससे क्या लेना देना। जनसेवकों को तो ''आना फ्री, जाना फ्री, रहना फ्री, बिजली फ्री, सब्सीडाईज्ड खाना, उपर से मोटी पगार और पेंशन'' फिर भला उन्हें आम आदमी के दुख दर्द से क्या लेना देना।

    आज सत्तर फीसदी जनता को दो जून की रोटी के लिए कितनी मशक्कत करनी पडती है, यह बात किसी जनसेवक को क्या और कैसे पता होगी। गरीब के घर का चूल्हा कैसे जलता है, गरीब अपने और अपने परिवार के लिए कैसे दो वक्त की रोटी का जुगाड कर पाता है, इस बात के बारे में तानाशाह शासक क्या जानें। वनों के राष्ट्रीयकरण के बाद चूल्हे के लिए लकडी जुगाडना कितना दुष्कर है, यह बात कोई गरीब से पूछे। इन परिस्थितियों में गैस कंपनियों के आताताई डीलर्स के पास से चार सौ रूपए का गैस सिलेंडर खरीदकर गरीब अपना चूल्हा जलाए तो कैसे। सरकारों चाहे वह केंद्र हो या राज्यों की, सभी को चाहिए कि पेट्रोलियम पदार्थों पर उन्होंने जो उपकर और कर लगाए हैं, उसे हटाएं सेस हटाएं, स्वर्णिम चतुर्भुज के लिए एक रूपए सेस, अस्सी के दशक में लगाया गया तीन रूपए का खाडी अधिभार, आदि अब तक जारी हैं, इन सबको तत्काल प्रभाव से अगर हटा लिया जाए तो भी आम जनता को पेट्रोल डीजल आज से सस्सा ही मिलेगा।

    हम इस बात से सहमत हैं कि विपक्ष द्वारा धरना, प्रदर्शन, अनशन आदि के माध्यम से ही अपना विरोध दर्ज करा सकता है, किन्तु पिछले कुछ सालों में विपक्ष का विरोध प्रतीकात्मक ही रहा है। समय के साथ विपक्ष ने अपने विरोध की धार बोथरी कर सत्ताधारी दल के एजेंट की भूमिका ही निभाई है। नब्बे के दशक के आरंभ के उपरांत एसा कोई भी उदहारण नहीं मिलता है, जिसमें विपक्ष ने आम आदमी के लिए अहिंसा की जंग की हो। जब संसद या विधानसभा में उन्हें अपना पराक्रम दिखाने का मौका मिलता है तो वे सत्ताधारी दल के फेंकी गई रोटी के टुकडे से ''मैनेज'' हो जाते हैं।

    आज के परिदृश्य को देखें तो सारी बातें साफ ही हो जाती हैं। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को आपने पुत्र राहुल गांधी को कांग्रेस का सर्वेसर्वा बनाने की चिंता है, राहुल को उत्तर प्रदेश और बिहार पर कब्जा करने की चिंता है, उधर मायावती उत्तर प्रदेश में अपनी साख बचाने चिंतित हैं। मुलायम चिंतित हैं कि किस तरह यूपी से मायाराज को समाप्त किया जाए, अमर सिंह को चिंता सता रही है कि वे मुलायम से अपने अपमान का बदला कैसे लें, ममता बनर्जी को रेल मंत्रालय से ज्यादा चिंता पश्चिम बंगाल में सत्ता पाने की है, विपक्ष में बैठी भाजपा के नेताओं को चिंता है अपने खिसकते जनाधार की, सो वे पुराने नेताओं की घरवापसी के लिए चिंतित हैं, वहीं भाजपा का दूसरा धडा इसलिए चिंतित है कि कहीं भाजपा को पानी पी पी कर कोसने वाले नेताओं की घरवापसी न हो जाए। अब आप ही बताएं कि इस सबमें आम आदमी की चिंता किसे है! जाहिर है किसी को भी नहीं। इन परिस्थितियों में बस एक ही चारा रह जाता है कि आम आदमी को ही अब सडक पर उतरकर अपनी लडाई का परचम बुलंद करना होगा।

    पेट्रोलियम पदार्थ की कीमतें बढाने के मामले में सरकार का कदम ठीक हो सकता है, पर हमारी नजर में यह समय किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता है। सरकार को बिना किसी दबाव में इस निर्णय को वापस लेना चाहिए। देश में भोपाल गैस कांड के बारे में चल रही बहस को स्वस्थ्य और स्पोर्टिंग वे में लेना चाहिए। अगर कहीं कांग्रेस ने गल्ती भी की है तो उसे स्वीकारना होगा। अपनी गल्ति छिपाने के लिए तरह तरह के तर्क कुतर्क तो सभी दिया करते हैं, पर जिसके अंदर जरा भी नैतिकता होती है वह अपनी गल्ति को स्वीकारने में जरा भी नहीं हिचकता। कांग्रेस को नेतिकता दिखानी ही होगी, भले ही वह उसका प्रहसन करे। जब विपक्ष को कांग्रेस ने अपने घर की लौंडी बना लिया है, विपक्ष ज्वलंत मुद्दों पर कांग्रेस के साथ विरोध का स्वांग रचता है, देश की भोली भाली जनता सत्ता और विपक्ष में बैठे दलों के डमरू पर खुदको नचा रही हो, फिर कांग्रेस को ईमानदार होने का स्वांग रचने में भला क्या आपत्ति।

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    1 टिप्पणी:

    1. जब आम-चुनाव संपन्न हुए | भारतीय जनता पार्टी तथा अन्य कई पार्टियों ने ई.वी. एम. में गड़बड़ी की आशंका जाहिर की थी | तब लगा था कि बी.जे .पी.हार गई है इस लिए चुनाव-आयोग पर ऐसी तोहमत लगा रही है | लेकिन अब कांग्रेस-सरकार की कार्य-प्रणाली को देखकर तो यही लगता है कि या तो इस सरकार में गैरत नाम की कोई चीज नहीं है या फिर वो
      इसी तरह के किसी गैर-कानूनी हथकंडे से जीत कर आई है | इंदिरा गांधी के बाद कांग्रेस के बारे में एक कहावत प्रचिलित हुई है कि 'कांग्रेस की यही विचार-धारा है,खाओ-पीओ मौज
      करो ,जितना बड़ा चमचा उतना बड़ा नेता ; जितना ज्यादा भ्रष्टाचार ,उतनी ज्यादा जय-जय-कार |' एक मुद्दे को गौड़ करने के लिए दूसरे को प्रधान बनादो | आगे की आगे देखेंगे | खरे जी के
      लेख को पढ़ कर दो पक्तियां याद आ गयी ---
      इतने मजबूर हो गए दिल से ;
      सोचे-समझे-बगैर ,कातिल से ;
      जिन्दगी का सवाल कर बैठे ...............|
      अच्छा लेख;लेकिन सम्बंधित लोग तो वही सब पढ़ते हैं, जिससे वोट बैंक बढ़ता है | धन्यवाद |

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