हिन्दुस्तान का इतिहास किसी न किसी ऐसे जयचंदों के वर्णनों से भरा पडा है जिन्होंने अपनी नैतिकता सिर्फ चंद कागज़ के टुकड़ों के लिए और अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए बेचीं है..और आज तक वो ही हालात है..जब रक्षक ही भक्षक हो जाए तो कोई क्या करे..देश का खुफिया तंत्र..जिसपे पूरी अवाम की सुरक्षा टिकी है, जब वो ही भ्रष्ट हो जाए..तो कोई किस पर भरोसा करे. income tax वसूलने वाले ख़ुद income tax डकार जाते हैं, anti -corruption वाले ख़ुद corruption में लिप्त है, खुफिया तंत्र के अधिकारी ख़ुद देश की महत्वपूर्ण सुरक्षा जानकारी दुश्मन देश को सौंपते हैं. और हमारे माननीय नेतागण जिस जनता के मतों से जीत कर आते हैं उसी जनता का, उसी के लिए महत्वपूर्ण नियम अथवा किसी भी प्रकार के निर्णय लेने में, किसी भी हस्तक्षेप को उचित नहीं समझते. लोकतंत्र तो सिर्फ नाम का ही रह गया है..हम इतराते फिरते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है हमारा..किस बात पे इतराते हैं हम ? आज एक तरफ खबर आती है कि अमेरिका ने सुपर सोनिक मिसाइल तैयार की है, अंतरिक्ष में कोई नई उपलब्धि हासिल की है, तो हमारे समाचार चेंनल्स में देखने को मिलता है आज इस अफसर को रिश्वत लेते पकड़ा, महंगाई नहीं रुकी तो फूँक दी देश की कीमती सम्पति, तो कही आरक्षण और जातिवाद की आग में झुलसती सामाजिक व्यवस्था. अमेरिका में एक बार हवाई आतंककारी हमला हुवा उसके बाद मजाल है कि कोई हिमाक़त कर ले दुबारा हमले की. और हमारे यहाँ, एक के बाद एक हमले होते हैं, आतंककारी पकडे भी जाते हैं, लेकिन नतीजा वो ही ढाक के तीन पात. अब तो देश भक्ति के गीत भी सिर्फ चुनावों, २६ जनवरी और १५ अगस्त जैसे राष्ट्रीय गौरव के समारोहों में ही सिर्फ औपचारिकता निभाते प्रतीत होते हैं. अरे और तो और.. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर (संसद) तक पर हमला करने वालों का सजा तक नहीं दी जाती, मुंबई बम काण्ड के आरोपियों के आकाओं के खिलाफ सब सबूत होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती.
इन सबमे कही ना कही अवाम भी दोषी है मेरे नजरिये से क्योंकि एक छोटी सी मांग को तो लेकर आगजनी, हिंसा, पथराव, आत्मदाह, धरना, प्रदर्शन पता नहीं क्या-क्या करती ,लेकिन नहीं कर सकती तो इन भ्रष्ट नेताओं को राजनीति में आने से रोकना, अपने व्यक्तिगत कारणों से इन भ्रष्ट, दागी और नैतिक रूप से गिरे हुवे इन वाह्यात लोगों को राजनीति में जबरदस्ती थोंप दिया जाता है जिन पर पता नहीं कितने मुक़द्दमे कई अदालतों में चलते होते हैं. जो जनता के वोट से नहीं अपितु अपने बाहुबल से जीत कर आते हैं. अगर मैं दूसरे शब्दों में कहूं तो इनको सैधांतिक रूप से लोक अर्थात जनता चुनती है लेकिन व्यावहारिक रूप से आज भी राजतंत्र की ही तरह जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थति है. क्या यही है गाँधी के सपनो का भारत ? क्या यही है २१वीं सदी का भारत? क्या इसलिए शहीदों ने अपनी शहादत दी थी? क्या इसी को हम विकास कहेंगे ?
इन सबमे कही ना कही अवाम भी दोषी है मेरे नजरिये से क्योंकि एक छोटी सी मांग को तो लेकर आगजनी, हिंसा, पथराव, आत्मदाह, धरना, प्रदर्शन पता नहीं क्या-क्या करती ,लेकिन नहीं कर सकती तो इन भ्रष्ट नेताओं को राजनीति में आने से रोकना, अपने व्यक्तिगत कारणों से इन भ्रष्ट, दागी और नैतिक रूप से गिरे हुवे इन वाह्यात लोगों को राजनीति में जबरदस्ती थोंप दिया जाता है जिन पर पता नहीं कितने मुक़द्दमे कई अदालतों में चलते होते हैं. जो जनता के वोट से नहीं अपितु अपने बाहुबल से जीत कर आते हैं. अगर मैं दूसरे शब्दों में कहूं तो इनको सैधांतिक रूप से लोक अर्थात जनता चुनती है लेकिन व्यावहारिक रूप से आज भी राजतंत्र की ही तरह जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थति है. क्या यही है गाँधी के सपनो का भारत ? क्या यही है २१वीं सदी का भारत? क्या इसलिए शहीदों ने अपनी शहादत दी थी? क्या इसी को हम विकास कहेंगे ?
कहने को तो बहुत कहा जा चुका है इन विषयों पर और मैं भी कोई नई बात नहीं कह रहा. लेकिन आज के इन हालातों को किसी भी नज़रिए से देखें, है सार्वभोमिक सत्य कि जिस देश में नेता ख़ुद जो इस लोकतंत्र रूपे विशाल जहाज़ के तारणहार हैं, भ्रष्ट है तो सिर्फ नौकरशाहों और अफसरशाहों से भी क्या अपेक्षा कर सकते हैं.
एक उम्मीद जरूर है, और वो भी इस लोकतांत्रिक देश की जनता से कि वो एक दिन जागेगी और जिस दिन जनता जागेगी उसी दिन शायद भारत एक बार फिर विश्व में सिरमौर होगा. क्योंकि इतिहास गवाह है कि किसी भी क्रांति के बिना कभी परिवर्तन नहीं आया, और परिवर्तन ही विकास की धुरी है..एक दिन ऐसी क्रान्ति आयेगी जरूर क्योंकि "अति सर्वर्त्र वर्जयेत"
बात सही है! क्या हम अपना वर्तमान और भविष्य बे-ईमान और स्वार्थी नेताओं के हाथों में सौंपकर चुप बैठैंगे?
जवाब देंहटाएंइसी प्रश्न से सब आहत हैं और जवाब नदारद है।
जवाब देंहटाएंnarendar ji kya khen ek shayr ban pda h hamne hi banayen h ye naksh istrha , pahcchan mushkil h ye kiska chahra h
जवाब देंहटाएंदेश की वर्तमान स्थिति का बहुत अच्छा चित्रण प्रस्तुत किया है नरेन्द्र व्यास ने।भाई सारी दाल ही काली हो गई है।नेता और अफसर तो भ्रष्ट थे ही अब तो जनता भी महाभ्रष्ट हो गई।अपने लिए सुविधाएं जुटाने व दूसरोँ के सुविधाओँ को अपनी ओर मौड़ने के लिए पैसा देती है।व्यवस्था के प्रति आक्रोश व्यक्त करने के लिए राष्ट्रीय सम्पति को नुक्सान पहुंचाती है।जनता के सामने अपना हित सर्वोपरी है देश उनकी बला से जाए भाड़ मेँ।नेता खुद आगे आ कर जनसेवा के लिए चुनाव लड़ते हैँ और जीत कर पद व बड़ा वेतन/पेँशन लेते हैँ जबकि जनता किसी को चुनाव लड़ने का नहीँ कहती।यह जनसेवा कैसे हुई?
जवाब देंहटाएंनेताओँ व मंत्रियोँ का वेतन तथा सुविधाएं तुरंत बंद कर देनी चाहिए फिर लोभी नेता चुनाव नहीँ लड़ेंगे।ऐसा होने पर ही ईमानदार,खुद्दार व सच्चे जनसेवक सामने आएंगे।आज बुद्दिमान व गरीब तो चुनाव लड़ता ही नहीँ क्योँ कि उसके पास महंगा चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीँ। आज कल अतिमहत्वाकांक्षी एवम बड़े बड़े जमीँदार उद्योगपति व माफिया चुनाव महज धन कमाने के लिए लड़ते हैँ।चुनाव जीत कर अपना तथा अपने वर्ग का हित साधते हैँ और गरीब जनता पिसती रहती है।
जवाब देंहटाएंJis prakaar desh ke vartmaan haalat chal rahe hain, isme jaroorat hai aise chantakon kee, desh bhakton kee aur yadi is aalekh par yuwaa varg evam varishth varg milkar sahityik aandolan karen, to nishchit roop se iskaa laabh desh aur desh kee jantaa ko milega jisase desh apnee loktaantrik chhavi ko bachane me saksham ho sakega. is prakaar ke chintanpradd prashn ko sahityik roop me desh ke aam aadmi ke saamne rakhnaa ni:sandeh Narendra vyas kee hriday kee vyathaa ko aur desh ke prati unkee nishthaa ko parilakshit kartaahai...SADHUWAAD !! AAP AISE HEE LIKHTE RAHE...
जवाब देंहटाएं... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
जवाब देंहटाएंजब धनबली अपनी इच्छा से जनसेवा का मार्ग चुनते हैँ तो अपने खर्च से जनसेवा करनी चाहिए।क्योँ जनता की गाढ़ी कमाई से वेतन भत्ते व अन्य सुविधाएं तथा पेँशन लेते हैँ?एम एल ए या एम पी बन जाने से क्या उनका निजि कारोबार बंद हो जाता है?उनके जीतने बाद भी उनके कारखाने, खेती व व्यपार वैसे ही धन कमाते रहते हैँ तो फिर सरकारी खजाने से सुविधाएं लेते हैँ। स्पष्ट है कि राजनीति इनके लिए सेवा नहीँ बल्कि व्यवसाय है।यह व्यवस्था बदलनी चाहिए। नरेन्द्र जी की चिँताऔँ को साधुवाद!
जवाब देंहटाएंनरेन्द्रजी की पीड़ा राष्ट्र के हर ज़िम्मेदार नागरिक की पीड़ा है ।
जवाब देंहटाएंप्रश्न यह है कि क्या इन यक्ष प्रश्नों का कोई हल है भी या नहीं ?
हम मात्र मूक दर्शक बने रहें या साझा प्रयासों द्वारा जनजागरण के लिए सचेष्ट हों ?
अमरीका का एक अत्यधिक लोकप्रिय राष्ट्राध्यक्ष मात्र अपने भाई पर लगे चरित्रहीनता के आरोपों के कारण भी चुनावों में शिक़स्त झेलता है और यहां के नेता स्वय भ्रष्टाचारी और सज़ायाफ़्ता मुज़रिम , दल्लाल , कालाबाज़ारी में लिप्त पाए जाने के बावजूद कैसे एमपी एमएलए चुन लिए जाते हैं ? पार्टी के प्रति निष्ठा के नाम पर उन्हें मत देने वाले मतदाता क्या कम गुनाहगार है ??
नरेन्द्रजी को बधाई है कि ठहरे हुए पानी में कंकर फेंक कर कुछ तरंगें पैदा करने का सहज प्रयास तो किया है !
आगे भी उनकी लेखनी सक्रिय रहे ,यही मंगलकामना है !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
http://shabdswarrang.blogspot.com
बहुत बढिया है कि ये प्रश्न आपके मन मे आये और आपने इन प्रश्नों को सबके मनन के लिए रखा। लेकिन बात अगर मनन तक खत्म हो जाती है तो फिर यह पोस्ट भी बस वैसी ही है जैसी किसी लेखक ने व्यवस्था के प्रति मात्र बस अपनी भडास निकालने के लिए लिख दी हो। विरोध मे लिख देने और सौ-पचास टिप्पणियाँ एकत्रित कर लेने मात्र से इस व्यवस्था को मिटाने का कोई भागीरथी प्रयास नही गिना जा सकता। लिखने वाले पक्ष रख सकते है कि लेखन से क्रान्ति आती है, सही है आती है, सैकडो बार ऐसा हुआ भी है और आजादी के वक्त भी इसका भरपूर योगदान रहा है लेकिन पहले पढने का असर होता था और असर के बाद एक्शन होता लेकिन आज के परिपक्व समय मे लिखने का असर वापस कोई लिखकर ही देता है, एक्शन गायब है। तो बन्धुओं आप भी लेखक हम भी लेखक तो कौन रोकेगा यह सब, बढिया होता कि हम लेखन के साथ एक्शन भी लेते वो भी एकजुट होकर ताकि उसका प्रभाव दिखे। वरना तो यही होगा कि फिर कई नये पुराने ब्लॉगर बंधु टिप्पणीयों की आस मे इन शब्दों को दोबारा गढकर प्रस्तुत कर देगा।
जवाब देंहटाएंयक्ष प्रश्न तो अब यह है तो कौन इस व्यवस्था को खत्म करने के कौन सबको एकजुट करके इस व्यवस्था को खत्म करेगा?
गुस्ताखी माफ हो।
जय हिन्द।
नरेन्द्र भैया आप की तरह हम सभी ब्लॉगर साथी लिखते रहें बस,मंजिल दूर नहीं है.
जवाब देंहटाएंसादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव
अपनी माटी
माणिकनामा
Dear Writer..
जवाब देंहटाएंi don't want the mirror of system .i want new idea of your creative writing for change to system..if you have then share your view by text with us otherwise stop it..please think on it and re write somthing creative.about our HINDUSTAN.. jai hind..
in desh raa e ij havaal huvnaa tay hai. the sagla kise bharam me gota khaa reya ho. o koi loktaantrik desh koni. ni hi o koi gantantra hai.. ni hi o lokraaj hai. 1947 me aaryavrat re tootan ar gandhi ri kholaaytaa re raaj me aavane ne lok raaj maano? aa koi azadi koni. in ne azadi maano to o thaaro koro bharam hai. or ki koni. union jack ri thod congressi tirange ne feraay ne ghana modijo. rauputaane ri bhasha sanskriti ne tale bethaan di in desh. hindi naav ri ek adhkichri bhasha athe raa loga re maathe madh di. the sagla heenjdaa ho. thaare me koi raam hai to in bharat re upnivesh ro virodh kyu ni karo. paiso tako to feru aa jyaasi. pan teen peedhya bina mayad bhasha me bhanya nikalgi in ri bharpaai kisso desh karela. jai rajasthan jai rajasthani.
जवाब देंहटाएंप्रश्न तो अनेक उठते हैं पर हल कोई नहीं बताता । आपने सही कहा है कि जनता ही क्रांति ला सकती है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया है कि ये प्रश्न आपके मन मे आये और आपने इन प्रश्नों को सबके मनन के लिए रखा।
जवाब देंहटाएंएक उम्मीद जरूर है, और वो भी इस लोकतांत्रिक देश की जनता से कि वो एक दिन जागेगी और जिस दिन जनता जागेगी उसी दिन शायद भारत एक बार फिर विश्व में सिरमौर होगा. क्योंकि इतिहास गवाह है कि किसी भी क्रांति के बिना कभी परिवर्तन नहीं आया, और परिवर्तन ही विकास की धुरी है..एक दिन ऐसी क्रान्ति आयेगी जरूर क्योंकि "अति सर्वर्त्र वर्जयेत"
जवाब देंहटाएंThis the ultimate hope only.
Pramod Tambat
Bhopal
www.vyangya.blog.co.in
अरे भाई ! ये नरेन्द्र व्यास जी है न? बहुत ही नेकदिल इन्सान है और भावुक भी | यक्षप्रश्न में उन्हों ने जो विचार पेश किया है, बह काबिले तारीफ़ है | जब कोइ संवेदनशील इन्सान अपने बारे में कम और देश के बारे में सोचता है तो समझ लो की उनकी सोच कितनी गहरी होगी? उज्जवल भविष्य है नरेन्द्रजी का और नुक्कड़ टीम को मेरी ओर से बधाई | - पंकज त्रिवेदी
जवाब देंहटाएंप्रिय नरेन्द्र, आपने अपनी टिप्पणी में देश की मौजूदा स्थिति पर एक संवेदनशील देशवासी की चिन्ता को ही प्रकट किया है। पिछले दिनों विदेश सेवा में काम करने वाले जिन अधिकारियों की कमजोरियों पर से पर्दा उठा, वाकई चिन्ताजनक है। जिनके हाथों में सुरक्षा, लोकसेवा, प्रशासन और लोकतांत्रिक दायित्वों के निर्वाह की जिम्मेदारियां हैं, वही अगर अपने काम के प्रति गैरजिम्मेदार और भ्रष्ट पाए जाते हैं, तो कमजोरी कहीं हमारे क्रासचैक सिस्टम में भी है और इस प्रक्रिया का पर्यवेक्षण करने वाली सर्वोच्च संस्था और प्रकिया भी इस दोष से मुक्त नहीं है। वैसे तो लोकतंत्र में सर्वोच्च सत्ता लोक (जनता) के ही हाथ में होती है और वही एक तरह से इन सारी कमजोरियों पर नजर रखने वाली आखिरी शक्ति होती है, जिसकी ओर आपने अपनी टिप्पणी के अंत में इशारा भी किया है, लेकिन जनता से मात्र उम्मीद करते रहने से समस्या का हल निकल आएगा, ऐसी कामना करना पर्याप्त नहीं है, उसके लिए संगठित रूप से खुद प्रयत्न करने होंगे, प्रचार-प्रसार के हर मंच और तरीके का उपयोग करना होगा, केवल निराशा व्यक्त करने या कोसते रहने से कोई लाभ नहीं होगा। स्थानीय स्तर पर संवेदनशील और जागरूक लोगों को संगठित करना, उनके बीच प्रभावी संवाद कायम करना, अपने आस-पास जो भी कमी-कमजोरी दिखे, उसे अनदेखा न करना, लोगों के दुख-दर्द में उनके साथ खडे रहना और लोकतांत्रिक प्रकिया को निरन्तर मजबूत बनाना कुछ ऐसे काम हैं, जो संभवत इस दिशा में कुछ कारगर साबित हो सकें। खराब राजनीति के विरोध में अच्छी और स्वच्छ राजनीति को विकसित और पोषित करना ही एकमात्र समाधान है। जो भी जनता के साथ गैरजिम्मेदारी से पेश आता है, उसे संगठित होकर सही रास्ते पर लाना ही, एक मात्र सही तरीका है, बातें तो बहुत सारी हैं, लेकिन मेरा मानना है कि सारे आसमान को एक ही नजर में देख लेने की कोशिश करेंगे तो शायद किसी बिन्दु पर ठीक से नजर न टिका पाएं।
जवाब देंहटाएंनरेन्द्र जी, आपको ऐसा नहीं लगता कि आपने जो लिखा है सब सच है, जागरूक लोगों की चुप्पी इसका मुख्य कारण है, आप जागे हं, उम्मीद है कुछ और जागेंगेा आओ जगाएं सोयों का हम आप मिल कर, एक फिल्म का मशहूर डॉयलॉग याद आ गया
जवाब देंहटाएंजब राज करे शैतान, तो हे भगवान
इन्साफ कौन करेगा
नरेंद्र जी के प्रश्न ने फ़िर एक बार अंतरात्मा को झकझोर दिया..सब कुछ घाल मेल ..झूठ ,मिथ्या ,फरेब के ताने बाने में उलझा हुआ ..सच कहीं नहीं ,ये छलावा इस तरह है जैसे टूटी हुई दिवार रेशमी परदे से ढक दी जाये फ़िर भी चल छल छल ही है कम से कम बुद्धिजीवियों की आत्मा तो आहत होती ही है ..कुछ ये पीड़ा खामोशी से सह जाते हैं ..कुछ का अंतर्मन विद्रोह कर उठता है ..कोई कलम उठा लेता है कोई करवाल ..नरेंद्र जी ने भी इस मनोमंथन को आत्मसात किया तो कलम ने इस पीड़ा को आकार दे दिया ..ईन प्रश्नों को उठाने के लिए उनका आभार ..!
जवाब देंहटाएं