आज दिनांक 24.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत सत्रहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-
ब्लोगोत्सव-२०१० : ..मॉल , यानी.....शोखियों में घोला जाये,फूलों का शबाब http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html
बाघों को बेच कमा रहे अपना नाम : देवेन्द्र प्रकाश मिश्र
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html
यार ये कैसी है इज्जत कांच की ?
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चिराग जैन की कविता : अनपढ़ माँ
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_21.html
बजट का क्या? देख लेंगे बाद में और फिर क्रेडिट कार्ड किस मर्ज़ की दवा है ? http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1970.html
अरुण चन्द्र राय की दो कविताएँ
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8746.html
उदारीकरण की प्रक्रिया ने हमारे देश में एक नव धनाढ्य मध्यमवर्ग को जन्म दिया है http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7203.html
अशोक कुमार पाण्डेय की कविता : माँ की डिग्रियाँ
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3377.html
सबल और निर्बल के बीच की खाई को और चौड़ा करने की साजिश आज की मॉल संस्कृति http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2482.html
कवि कुलवंत सिंह की कविता
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5962.html
हमारे देश की अधिकाँश जनता की बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पातीं http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3210.html
शील निगम की कविता
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5962.html
यह मॉल है या कि अजायबघर है.. ?
http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1394.html
ब्लोगिंग को विचारों का साझा मंच बनाएं, गुणवत्ता का ध्यान रखें : देवमणि पाण्डेय
http://shabd.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html
पढ़िए और सुनिए श्री राजेन्द्र स्वर्णकार के द्वारा रचित और स्वरबद्ध रचना :मन है बहुत उदास रे जोगी !
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3561.html
ब्लोगोत्सव-२०१० .....शोखियों में घोला जाये,फूलों का शबाब
Posted on by रवीन्द्र प्रभात in
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ब्लोगोत्सव-2010
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