इंटरनेशनल दिल्‍ली हिन्‍दी ब्‍लॉगर मिलन - बेहद गोपनीय परंतु ओपनीय झलकियां (अविनाश वाचस्‍पति)

हुक्‍का इंतजार करता ही रह गया, ब्‍लॉगरों में से उसे कोई गुड़गुड़ाने वाला इसलिए नहीं मिला क्‍योंकि सब अपनी गुड़ जैसी मीठी बातों में मिठास का आनंद लेते रहे। 

एड़ी चोटी ब्‍लॉगर श्री उपदेश सक्‍सेना के पैर में  इस मिलन समारोह में शामिल होने के लिए अपने एक साथी के साथ आते समय राजीव चौक मेट्रो स्‍टेशन पर उतरते समय  मोच आ गई। तुरंत उन्‍हें उनके साथी की मदद से राहत मिली जो उनके साथ आ रहे थे। इसकी सूचना फोन से भाई उपदेश ने जब मुझे फोन पर दी तो मैंने तुरंत उन्‍हें वापिस लौटने और चिकित्‍सा कराने की सलाह दी। उनके एक मित्र साथ में थे, यह जानकर चिंता कम हुई, वरना मैं तो सबसे क्षमा मांग वापिस ही दौड़ पड़ता किसी को साथ लेकर।
एक अति-आवश्‍यक बैठक एकाएक होने के कारण थाईलैंड से दिल्‍ली आए  हुए श्री प्रशांत भगत मिलन समारोह में नहीं पहुंच सके परन्‍तु विदेश से भाई समीर लाल जी, अदा जी, दीपक मशाल जी के आए फोन कालों और शुभकामना संदेशों ने इस मिलन समारोह का  इंटरनेशनल जलवा कायम रखा और  ताऊजी,   शोभना चौरे इत्‍यादि   के संदेशों में उत्‍सव की सफलता की कामना की गई। शोभना चौरे के दिल्‍ली में होने पर भी न शामिल होने की विवशता इसलिए रही क्‍योंकि जिस ट्रेन में उनकी वापसी की बुकिंग थी, वो अपने नियत समय पर जाने के लिए अड़ी थी।

भाई राजीव तनेजा जी और उनका पूरा परिवार इस समारोह के आयोजन में ऐसे जुटा हुआ था जैसे उन्‍हें इस आयोजन से अच्‍छी खासी कमाई होने वाली हो और उन्‍होंने कमाई की भी परन्‍तु वो कमाई सबके द्वारा उनके जज्‍बे को सराहे जाने की थी। ऐसी कमाई में धन निवेश नहीं होता परन्‍तु मुनाफा बहुमूल्‍य होता है जबकि नकद मूल्‍य नहीं मिलता है। (एक राज की बात इसे अपने तक ही रखिएगा - इस ब्‍लॉगर मिलन में नाश्‍ता, जलपान इत्‍यादि में किया गया सारा खर्च राजीव तनेजा जी ने ही किया और बहुत आग्रह करने पर भी एक पाई तक लेने से इंकार कर दिया। वैसे आजकल पाई चलती भी कहां है जबकि जाट धर्मशाला में चारपाई मौजूद थी।

मुझे खूब याद आई जब अपने बचपन में मैं बाहर सड़क पर चारपाई बिछाकर खुले आकाश में सोता था और तब कोई भय नहीं हुआ करता था और न मच्‍छर हुआ करते थे। दिल कह रहा था अगर रात में यहीं रूकना पड़ा तो खाट बिछाकर खुले आसमान के नीचे ही सोऊंगा।

भाई अजय कुमार झा के आते ही मिलन समारोह में रौनक आ गई और सब ब्‍लॉगरों में उनसे जफ्फी पाने की होड़ लग गई। उन्‍होंने दस मिनिट बाद ही ढाई हजार रुपये का एक चैक प्रयास की बीना शर्मा जी को देने के लिए मु्झे सौंप दिया।  इसकी घोषणा समारोह में तुरंत कर दी गई।


भाई राजीव तनेजा जी ने नकद एक हजार रुपये अक्षय कत्‍यानी की मदद के ऑनलाईन ट्रांसफर के लिए मुझे सौंप दिए जिन्‍हें उनके खाते में कल ट्रांसफर कर दिया जाएगा।

राजीव तनेजा की मोटर साईकिल ने भी ब्‍लॉगर मिलन में खूब योगदान किया। इसी पर सवार होकर नांगलोई रेलवे स्‍टेशन से जाट धर्मशाला तक का सफर खुशदीप सहगल ने किया और जब उसी पर सवार इरफान भाई दिखलाई दिए तो महफूज भाई की अनुपस्थिति का गम जाता रहा। बहुत ही हसीन लम्‍हा था, वो जिसे कैमरे कैद करने से चूक गए।


साहित्‍य शिल्‍पी की टीम  भाई राजीव रंजन सहित जिस कार में बैठकर फरीदाबाद से चले थे। उसका चालक नया था और उसके चलाने के तरीके से सभी भयभीत थे। खासकर राजीव रंजन भाई। आखिर उन्‍होंने किसी एक स्‍थान पर उसे विदा किया ताकि कोई अनहोनी न हो और वहां से एक ऑटो में सवार होकर नांगलोई रेलवे स्‍टेशन पर पहुंचे। वहां पर एक और राजीव लाल रंग की शर्ट में उनके स्‍वागत के लिए मौजूद मिले। वैसे राजीव रंजन खुद भी अच्‍छे चालक हैं जब मैंने उन्‍हें कहा कि आपने चालक की सीट हथिया लेनी थी और उसे साथ वाली सीट पर बिठाकर अगर मिलन समारोह स्‍थल पर पहुंचते तो हम उसे भी एक हिन्‍दी ब्‍लॉगर ही समझते और दूसरा वो राजीव जी की ड्राइविंग से कुछ सीखता। इस पर राजीव जी ने सहमति जतलाते हुए स्‍वीकार किया कि यह विचार तो अच्‍छा है पर उनके ध्‍यान में ही नहीं आया।

कड़ी धूप के होने पर तनेजा परिवार का कड़ा सेवा भाव काबिल-ए-तारीफ रहा। मुझे तो ऐसा महसूस हुआ कि यह ब्‍लॉगर मिलन भी उनके घर पर ही हो रहा था क्‍योंकि इससे पहले अलबेला खत्री जी के दिल्‍ली आगमन पर उनके निवास पर हुए मिलन की बार बार याद आ रही थी। वैसे राजीव जी की खिड़की दरवाजों की दुकान वहीं पर है परंतु अंत में समय अधिक होने पर हम लोग वहां न जा सके परंतु किसी दिन वहां पहुच कर उनकी दुकान के साथ अपने चित्र खिंचवा कर ब्‍लॉग पर लगाऊंगा और आपसे पहचानने के लिए कहूंगा, इसलिए इस बात को याद रखिएगा।

सोच रहा हूं कि अगले ब्‍लॉगर मिलन के लिए खूब सारी चारपाईयों को भी ब्‍लॉगर मिलन में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेज दूं पर उनकी ई मेल आई डी कहां से प्राप्‍त होगी। अगर आपके पास उपलब्‍ध हो तो अवश्‍य भिजवाएं।

ललित शर्मा, संगीता पुरी, रतन सिंह शेखावत की तरह ही मिलन के दौरान समय मिलने पर साथ-साथ बैठे ब्‍लॉगर आपसी चर्चा में मग्‍न हो जाते थे। आप सभी से विनम्र अनुरोध है कि अपनी उन बातों को भी सबके साथ साझा करें ताकि कोई राज राज न रहने पाए और सबको ऐसा अहसास हो कि सब सबके साथ ही बैठे हुए थे। इसे कहते हैं कम समय में अधिक से अधिक सार्थक विमर्श। आप सभी अभी से इस नेक कार्य में  जुट जाएं।  

इसकी एक कड़ी और आ सकती है। क्‍या आप चाहते हैं ऐसी ही कुछ बातें और आपके साथ साझा की जाएं। अवश्‍य बतलाएं। 

35 टिप्‍पणियां:

  1. यह रिपोर्टिंग दिल को छू गयी..... कल मैं इस पर इत्मीनान से टिप्पणी करूँगा.... अब जा रहा हूँ सोने.... सुबह सुबह निकलना है... पांच बजे....

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  2. वाह वाह.. गजब का वर्णन है..

    once more.. once more.. :)

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  3. ई गलत बात है महफूज भैया.. हम दोनों एक साथ कमेन्ट किये लेकिन आपका कमेन्ट हमसे पहले दिखा रहा है.. :(

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  4. लो फिर पंगा PD सुधर जाओ
    वैसे और कितना सुधरोगे :)

    अब सिरियल शुरू हुआ है तो बंद जनता की फर्माइस पर ही होगा

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  5. बहुत सुंदर लगी आप की गोपनिया बाते, मजा आ गया, काश मै भी होता, मेरा आने का प्रोगराम तो था मई मै लेकिन अचानक स्थागित हो गया, चलिये अगली बार सही

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  6. @ पी डी

    महफूज भाई ने यहां आकर हाजिर लगाई है।
    वैसे भी एम के बाद ही पी आता है। घड़ी को भी मालूम है कि अकारादि क्रम झगड़े मिटाता है।

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  7. MK तो हम हैं पी पहले कैसे आ गया

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  8. बढ़िया।
    घुघूती बासूती

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  9. ही ही ही.. बढ़िया सवाल.. अब कहिये अविनाश जी? :)

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  10. आपका ध्यान चारपाई और हुक्के पर अटक गया. सबको विदा करके थोड़ी देर और रूकते तो दोनों सुख प्राप्त कर सकते थे क्योकि विश्वस्त सूत्र (मेरे अपने) बताते हैं कि वहाँ से जब हम चले आये उसके बाद वहाँ अच्छी महफिल जमी थी.
    सुन्दर संस्मरणात्मक रिपोर्ट के लिये साधुवाद

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  11. बहुत दिलचस्प ब्योरा है पंडित जी। एक-दो क्यों तीन किस्तों में निपटाएं। आमतौर पर हम लम्बी पोस्ट नहीं पढ़ते पर इसमें तो रम गए।
    आनंदम्

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  12. बढ़िया ब्यौरा रहा..लाईये अगली कड़ी अब!

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  13. ब्लॉगर भामाशाह -अच्छा लगा !

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  14. बेनामीमई 25, 2010 5:01 am

    बढ़िया रही यह ओपनीय-गोपनीय बातें

    अगली कड़ियों का इंतज़ार

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  15. फोन राज भाटिया जी का भी जर्मनी से आया था ,जिन्होंने भी अपनी शुभकामनाएं और हार्दिक उद्गार व्यक्त किया था ,जो काबिले तारीफ है / हर किसी के सच्चे योगदान की चर्चा जरूर होनी चाहिए / हमारा आपसे आग्रह है की आप इस तरह की भावनात्मक जुड़ाव वाली बातों को पोस्ट पर हमेशा प्रकाशित करें / धन्यवाद आपका /

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  16. सब आप के अथक प्रयास संभव हुआ...सबसे सफल ब्लॉगर्स सम्मेलन कहे तो ज़्यादा ठीक है....

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  17. ब्लोगर सम्मलेन का सुन्दर और दिलकश विवरण ।
    चारपाई और हुक्के वाला प्रकरण निराला रहा।
    राजीव तनेजा की तो बात ही कुछ और है।

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  18. अब बताइए.. यह सब किस सामाजिक आदमी को अच्छा नहीं लगेगा। परिवार में, परिवार का काम करते हुए परिवार के बीच रहते हुए उनके चेहरों पर खुशी देखकर मैं तो खुश होता ही हूं। आत्मीय विवरण के साथ प्रस्तुतिकरण के लिए आपको बधाई।

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  19. अविनाश भाई, एक अन्तरंग सम्मलेन कि आत्मीय रिपोर्टिंग पढ़ कर ख़ुशी हुई. सम्मलेन तो सफल हुआ ही,यह सन्देश भी गया कि अभी भी सद्भाव बना हुआ है. ब्लॉग जगत में कभी-कभी ऐसे तत्व आ जाते है जो दूध में खटाई का काम कर देते है. लेकिन दिल्ली के ब्लागर सम्मलेन में दूध ही दूध था. इसलिए प्यार कि मलाई ज्यादा जम गयी . आपकी स्नेहिल भाषा यही बता रही है. और राजीव तनेजा जी का योगदान... वाह क्या बात है. जैसे अपने ही घर का आयोजन हो, यह भाव आजकल कम ही नज़र आता है. ऐसे लोग दुनिया में बढ़ाने चाहिए. जो हंसाते भी है, और कुछ खर्च करने का कलेजा भी रखते है.

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  20. बहुत सुंदर विवरण, हुक्का ताऊ के लिये संभालकर रखना.:)

    रामराम.

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  21. यह रिपोर्टिंग दिल को छू गयी..... कल मैं इस पर इत्मीनान से टिप्पणी karungi ...

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  22. रिपोर्ट बताती है कि जगत एक परिवार बन रहा है।

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  23. बढ़िया आँखों देखा हाल. बहुत खूब!


    इस विषय पर मेरी पोस्ट:
    दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन: मेरी नज़र से

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  24. बढ़िया आँखों देखा हाल. बहुत खूब!


    इस विषय पर मेरी पोस्ट:
    दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन: मेरी नज़र से

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  25. अरे अविनाश भाई, फोन तो हमने भी किया था ............ हजारी लगवाने को ............लगाई नहीं क्या ??

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  26. ब्लौगर संगठन क्या करेगा और क्या नहीं?

    क्या यह संगठन लोगों को सदस्यता देगा? संगठन बनेगा तो सदस्य भी बनेंगे.
    ऐसे में यदि कोई ब्लौगर उस संगठन से नहीं जुड़ना चाहेगा तो क्या उसका बायकाट किया जा सकता है?

    एक संगठन बनेगा तो विरोधी संगठन बनने में देर नहीं लगेगी. क्या इसे भी राजनीति का मैदान बनायेंगे?

    संगठन होगा तो पदाधिकारी भी होंगे. उनके चयन के लिए चुनाव भी होंगे.
    चुनाव होगा तो फिर गुटबाजी, कलह और भितरघात भी होगी.
    कुल मिलकर इससे बहुत कुछ लाभ होना नहीं है.

    सरकार को तो संगठन का रौब डालकर दबाया नहीं जा सकता.
    जब सरकार अपनी करनी पर आती है तो उसके आगे किसी की नहीं चलती.
    बेहतर होगा कि इन सब फालतू की बातों की ओर से अपना ध्यान हटाकर अपना समय अच्छा पढने और अच्छा लिखने में लगायें.

    मानता हूँ कि एकता में बड़ी शक्ति होती है, लेकिन आप यहाँ पर अपनी नेटवर्किंग करने आये हों या अपने समय और रचनात्मकता का बेहतर सदुपयोग करने?

    आप सब समझदार ब्लौगर हैं, ज़रा कायदे से सोचें. हमें किसी संगठन की ज़रुरत नहीं है.

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  27. हम नहीं आ पाए इसका अफ़सोस है !

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  28. .... ये हुई न अंदर की बात !!!

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  29. अविनाश जी, आपको हम इतना मानते हैं फिर भी आप मेरा Proxy Attendance नहीं लगाये? :(

    दोस्त के लिए इतना तो हम पूरे विद्यार्थी जीवन में करते आये हैं.. :)

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  30. आपका अंदाजे बय़ा भी खूब है जी,अगली कड़ी से भी रूबरू कराइए।

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