क्या कसाब का गला नाप पाएगा जल्लाद
सजा के बाद 308 की फांसी को नहीं पहनाया जा सका अमली जामा
2004 के बाद खाली बैठे हैं देश के जल्लाद
(लिमटी खरे)
आज अजमल आमिर कसाब को सजा सुनाई जाएगी। तीन दिन से समाचार चेनल और अखबार यही चीख चीख कर कह रहे हैं, पर सजा की तारीख पर तारीख बढती ही जा रही है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले के एकमात्र जिंदा गवाह कसाब की सजा का इंतजार समूचा देश कर रहा है। सभी की निगाहें मुंबई उच्च न्यायलय पर ही टिकी हुईं हैं। अनुमान तो यही लगाया जा रहा है कि कसाब को ''हेंग टिल डेथ'' की सजा सुनाई जाएगी।
बार बार अपने बयान बदलने, अदालत को गुमराह करने, जेल में लजील बिरयानी तो कभी पाकिस्तान से वकील बुलाने की मांग करने वाला शातिर अपराधी कसाब सोलह माहों से भारत गणराज्य की सरकार का सरकारी मेहमान है। कसाब को जिस जेल में बंद रखा गया है, वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। 21 फरवरी 2009 को कसाब ने अदालत के सामने स्वीकार किया था कि उसे लश्कर द्वारा आतंकी गतिविधयों के लिए बाकायदा प्रशिक्षण दिया गया था और भारत पर हमला करने के लिए भेजा गया था। इसके बाद 06 मई 2009 को कसाब अपने ही बयान से पलट गया था। 20 जुलाई 2009 को कसाब ने फिर अपना जुर्म स्वीकार किया और सजा की मांग की। इसके बाद 18 दिसंबर को कसाब ने एक बार फिर यू टर्न लेते हुए कहा कि उसे हमले के 20 दिन पहले पुलिस ने जुहू से पकडा था, वह भारत के सुनहले पर्दे से आकर्षित होकर समझौता एक्सप्रेस से भारत आया था। 20 दिसंबर 2009 की तारीख में भी वह अपने आरोपों से मुकरा। 18 जनवरी 2010 को कसाब ने नया पैंतरा फेंकते हुए कहा कि ताज होटल पर हमला करने वाले चार आतंकी भारत के ही थे।
सोलह माह पहले कसाब ने अपने साथियों के साथ आतंक का जो नंगा नाच नाचा था, उसके बाद उसने भारतीय न्याय व्यवस्था पर एतबार न होने की बात भी कही और किसी अंतराष्ट्रीय अदालत में इसे चलाने की मांग की। कसाब के उपर हो रहे करोडों रूपयों के खर्च को लोगों ने गलत करार देते हुए उसे तत्काल फांसी पर चढाने की मांग की। हम यह बताना चाहते हैं कि कसाब पर भारत सरकार द्वारा जो खर्च किया जा रहा है, वह अकारत नहीं जाएगा। कसाब को जिंदा रखने में भारत को जितना कूटनीतिक फायदा हुआ है, वह अरबों खरबों रूपए खर्च कर भी नहीं पाया जा सकता है। दूसरी ओर इससे पाकिस्तान को जो नुकसान हो रहा है, वह भी अनमोल ही है।
भारत की न्याय व्यवस्था की जितनी तारीफ की जाए कम होगा। एक तरफ दुनिया के चौधरी अमेरिका ने 9/11 के आरोपियों के खिलाफ मुकदमा आरंभ ही नहीं किया गया है, वहीं दूसरी ओर मुंबई आतंकी हमले की सुनवाई लगभग समाप्ति की ओर है। यकीनन इस प्रक्रिया से भारत की न्याय व्यवस्था का सर गर्व से उंचा ही हुआ है। इस मामले ने दूध का दूध और पानी का पानी की कहावत को चरितार्थ कर दिया है। अब समय आ गया है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समस्त देशों को पाकिस्तान की सरजमीं पर चल रहे आतंकी शिविरों और संगठनों के खिलाफ एकजुट होकर कठोर कार्यवाही सुनिश्चित करने दवाब बनाया जाना चाहिए।
मुंबई हमलों पर बन रही फिल्म ''अशोक चक्र'' 28 मई को देश के सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए तैयार है। इसमें कसाब की भूमिका 22 वर्षीय राजन वर्मा ने निभाई है। फिल्म की तस्वीरें अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई हैं, इन्हें 09 मई को जनता के लिए दिखाने की व्यवस्था है। इस सिनेमा का नाम पहले टोटल टेन रखा गया था, बाद में इसे बदलकर अशोक चक्र कर दियाग गया था। इस फिल्म में कसाब को फांसी पर चढते भी दिखाया गया है।
यक्ष प्रश्न तो यह खडा हुआ है कि अगर कसाब को मुंबई उच्च न्यायलय फांसी की सजा सुना भी देता है तो फांसी देने वाला जल्लाद (जेल में फांसी देने वाला) क्या उसकी गर्दन नाप पाएगा? आंकडों पर अगर गौर फरमाया जाए तो आज देश में 06 महिलाओं सहित 308 अपराधी फांसी की सजा पाने के बाद भी इंतजार में ही हैं कि कब उनकी गर्दन जल्लाद के हाथों में होगी। इन 308 में से अस्सी बिहार में, उत्तर प्रदेश में 70, महाराष्ट्र में 38, मध्य प्रदेश में 16, तमिलनाडू और उडीसा में 14 - 14, पश्चिम बंगाल में 13 और दिल्ली में 09 आरापी हैं, जो फांसी के इंतजार में हैं।
देश में अंतिम बार फांसी 2004 में धनंजय नाम के आरोपी को दी गई थी, जिस पर नाबालिग बालिका के साथ बालात्कार कर उसकी हत्या करने का आरोप था। कसाब के सामने अभी सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का रास्ता बचता है। इसके बाद भी अगर वह चाहे तो महामहिम राष्ट्रपति से दया की भीख (मर्सी पिटीशन) मांग सकता है। संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू सहित 29 लोगों की इस तरह की याचिकाएं अभी लंबित ही हैं। अगर कसाब को कुछ दिन और जिंदा रखा जाता है तो निश्चित तौर पर यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए काफी सुकून की बात होगी और इससे आतंक की फेक्ट्री चलाने वाले पाकिस्तान की परेशानियों में जरूर इजाफा होगा।
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