आपरेशन सुषमा गडकरी में लगे हैं आडवाणी

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    सुषमा के फ्लोर मेनेजमेंट को बढा चढा कर पेश कर रही आडवाणी मण्डली


    (लिमटी खरे)

    नई दिल्ली 16 मई। नितिन गडकरी की ताजपोशी के उपरांत बलात पार्श्व में ढकेल दिए गए राष्ट्रीय जनतांत्रिग गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी और उनकी मण्डली इन दिनों भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी और आडवाणी की जगह पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनीं सुषमा स्वराज की जडों में मट्ठा डालने का काम पूरे जतन से कर रहे हैं। नितिन गडकरी के खिलाफ आडवाणी मण्डली ने दुष्प्रचार तेज कर दिया है। गौरतलब है कि आडवाणी की मर्जी के खिलाफ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सुषमा को नेता प्रतिपक्ष तो गडकरी को भाजपाध्यक्ष बनाया था।

    राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी के करीबी सूत्रों का दावा है कि आडवाणी ने अपनी शातिर चालों से गडकरी और सुषमा को फ्लाप साबित करने और उनकी मण्डली ने शिबू सोरेन प्रकरण में नितिन गडकरी को घेरना आरंभ किया है। भाजपा के अंदरखते में चल रही चर्चाओं के अनुसार कटौती प्रस्ताव पर सरकार को घेरने के में विफल रही भाजपा की इस पराजय का ठीकरा सुषमा स्वराज के फ्लाप फ्लोर मेनेजमेंट पर फोडना आरंभ कर दिया है।

    इसके बाद इसी मामले में भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी को भी असफल बताने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया को लीक की गई खबरों में इस बात को प्रमुखता से उछाला जा रहा है कि जब भाजपा झामुमो की संयुक्त सरकार थी तो फिर क्या सोरेन को दिल्ली बुलाकर भाजपा के खिलाफ वोट डलवाने के लिए बुलाया गया था। इतना ही नहीं डिनर डिप्लोमेसी के दर्मयान ही जब इस बात का खुलासा हुआ कि सोरेन ने लोकसभा में भाजपा के खिलाफ मताधिकार का प्रयोग किया तो कांग्रेस का तो कुछ नहीं बिगडा, भाजपा झामुमो की सरकार ही नेस्तनाबूत हो गई।

    भाजपा के निजाम का कांटों भरा ताज पहनने के बाद नितिन गडकरी ने अपनी पहली उपलब्धि के तौर पर झारखण्ड में सरकार बनाकर साबित किया था कि उनका प्रबंधन बेहद अच्छा है। इसके बाद कटौती प्रस्ताव में भाजपा की शर्मनाक हार और उसी झारखण्ड में झामुमो और भाजपा की सरकार का गिरना अशुभ संकेत ही माना जा रहा है। इस सबके साथ ही साथ कुशाग्र बुद्धि के धनी एल.के.आडवाणी देश भर में सुषमा, गडकरी और संघ के खिलाफ यह संदेश देने में तो सफल रहे हैं कि सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी का प्रबंधन कितना उथला है, इसके अलावा संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सुषमा और गडकरी को पदों पर बिठाकर भाजपा का कितना नुकसान किया है।

    गडकरी के करीबी सूत्रों की मानें तो शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत जब सोरेन को लेकर गडकरी के पास गए तो हेमंत को आधा घंटा तो सोरेन के बारे में समझाने में ही लग गया। दरअसल गडकरी यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि यही गुरू जी हैं, क्योंकि गडकरी सूबाई राजनीति से आए हैं और उन्होंने सोरेन से शायद ही कभी भेंट की हो। उधर राजनाथ सिंह के राईट हेण्ड निशिकान्त दुबे जो आजकल सुषमा स्वराज की गुड बुक्स में हैं, को शिबू सोरेन के साथ लगाया गया था, पर वे भी सोरेन को भाजपा के पक्ष में वोट दिलवाने में नाकामयाब रहे।

    हालात देखकर लगने लगा है कि अपनी उपेक्षा से आहत वयोवृद्ध नेता एल.के.आडवाणी द्वारा अब चुन चुन कर भाजपा के उच्च पदों पर आसीन उन लोगों को निशाना बनाना आरंभ कर दिया है, जिनकी वजह से देश के पहले और इकलौते पीएम इन वेटिंग को बलात पार्श्व में ढकेला गया हो। अब देखना यह है कि आडवाणी मुख्य धारा में लौट पाते हैं या संघ अपनी दबी इच्छाओं को परवान चढा पाता है।

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