हमार लल्ला कैसे पढ़ी..........

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  • डॉ० डंडा लखनवी
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  • रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ और शिक्षा हमारी मूलभूत आवश्यकताएं हैं। शिक्षा के सहारे अन्य आवश्यकताओं की पूर्ती हो सकती है परन्तु उस पर भी माफियाओं का कब्ज़ा होता जा रहा है। शिक्षा से वंचित रख कर किसी नागरिक को आजाद होने का सपना दिखाना बेइमानी है। इस सत्य को अनपढ़ औरत भी समझती .....उसका दर्द प्रस्तुत लोकगीत में फूटा है।


                           लोक गीत
                                    -डॉ0 डंडा लखनवी

    बहिनी!  हमतौ  बड़ी  हैं  मजबूर,  हमार  लल्ला  कैसे पढ़ी ?
    मोरा   बलमा  देहड़िया  मंजूर,  हमार  लल्ला   कैसे  पढ़ी ??

    शिक्षा  से    जन   देव   बनत  है,   बिन   शिक्षा    चौपाया,
    शिक्षा   से   सब  चकाचौंध  है,   शिक्षा   की   सब    माया,
    शिक्षा  होइगै   है   बिरवा खजूर, हमार  लल्ला   कैसे पढ़ी ??

    विद्यालन    मा   बने   माफिया     विद्या   के      व्यापारी,
    अविभावक    का   खूब   निचोड़ै,    जेब   काट  लें   सारी,
    बहिनी  मरज बना है यु नासूर, हमार  लल्ला  कैसे पढ़ी ??

    विद्यालय    जब   बना   तो   बलमू   ढ़ोइन   ईटा  - गारा,
    अब   वहिके    भीतर   कौंधत   है    महलन   केर नजारा,
    बैठे  पहिरे  पे  मोटके  लंगूर, हमार  लल्ला   कैसे  पढ़ी ??

    बस्ता    और   किताबै   लाएन  बेचि    कै   चूड़ी  -  लच्छा,
    बरतन - भांडा   बेचि  के लायेन,  दुइ  कमीज़   दुइ  कच्छा,
    फिरहूं शिक्षा  का छींका  बड़ी दूर, हमार  लल्ला  कैसे पढ़ी ??

    सरकारी    दफ्तर    के     समहे    खड़े   -    खड़े    गोहराई,
    हमरे   बच्चन    के    बचपन      का    काटै    परे   कसाई,
    कोऊ उनका  सिखाय  दे शुऊर,  हमार  लल्ला  कैसे   पढ़ी ??


    1 टिप्पणी:

    1. सरकारी दफ्तर के समहे खड़े - खड़े गोहरई,
      हमरे बच्चन के बचपन का काटै परे कसाई,
      उनका कोई सिखाय दे शुऊर, हमार लल्ला कैसे पढ़ी ??
      लाजवाब!

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