बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है - डा. कुमार विश्वास

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  • तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
    साँस साथ छोडेगीसुर सजा न पाऊँगा
    तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है


    तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
    साँस साथ छोडेगीसुर सजा न पाऊँगा
    तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
    बाँसुरी चली आओहोंठ का निमंत्रण है

    तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
    तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
    रात की उदासी को याद संग खेला है
    कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
    औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
    बाँसुरी चली आओहोंठ का निमंत्रण है





    तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से



    भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
    दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
    आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
    कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
    बाँसुरी चली आओहोंठ का निमंत्रण है
    चित्र गूगल से साभार लिया गया है और गीत डा. कुमार विश्वास जी के कविता संकलन कोई दीवाना कहता है, जिसका प्रकाशन नये औरवेहतरीन रूप मे फ़्यूजन बुक्स ने किया है से लिया गया है. कुमार विश्वास आज के हिन्दी कवि सम्मेलनो के सबसे ज्यादा पसन्द किये जाने वाले कवि है और अन्तर्जाल पर उनकी लोकप्रियता नये कीर्तिमान कायम कर रही है. उनके बारे मे और जानकारी उनके अन्तर्जाल पते         (www.kumarvishwas.com) पर ली जा सकती है . 


    8 टिप्‍पणियां:

    1. तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
      साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा



      mera bhi yahi hal he

      badhi kumar viswas ko

      shekhar kumawat


      http://kavyakalash.blogspot.com/

      जवाब देंहटाएं
    2. बहुत ही मनभावन गीत है जी!
      इसकी चर्चा यहाँ भी तो है-
      http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html

      जवाब देंहटाएं
    3. वाह सर वाह बहुत ही मन भावन ह्रदयस्पर्शी गीत है
      आभार

      जवाब देंहटाएं
    4. आप सब के स्नेह के लिए आभार ...

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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