तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
चित्र गूगल से साभार लिया गया है और गीत डा. कुमार विश्वास जी के कविता संकलन कोई दीवाना कहता है, जिसका प्रकाशन नये औरवेहतरीन रूप मे फ़्यूजन बुक्स ने किया है से लिया गया है. कुमार विश्वास आज के हिन्दी कवि सम्मेलनो के सबसे ज्यादा पसन्द किये जाने वाले कवि है और अन्तर्जाल पर उनकी लोकप्रियता नये कीर्तिमान कायम कर रही है. उनके बारे मे और जानकारी उनके अन्तर्जाल पते (www.kumarvishwas.com) पर ली जा सकती है .
bahut hi sundar rachna,
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज
क्या बात है जी, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंतुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
जवाब देंहटाएंसाँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
mera bhi yahi hal he
badhi kumar viswas ko
shekhar kumawat
http://kavyakalash.blogspot.com/
बहुत-बहुत सुन्दर गीत. बधाई.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनभावन गीत है जी!
जवाब देंहटाएंइसकी चर्चा यहाँ भी तो है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html
वाह सर वाह बहुत ही मन भावन ह्रदयस्पर्शी गीत है
जवाब देंहटाएंआभार
आप सब के स्नेह के लिए आभार ...
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