-डॉ० डंडा लखनवी
स्वदेशी परिंदों के परदेसी पर हैं ।
हवाबाज अंजाम से बेख़बर हैं ॥
कल "ईस्ट इंडिया कंपनी" ने चरा था,
अब उससे भी शातिर बहुत जानवर हैं॥
उधर उसने कल - कारखाने उजाड़े,
इधर कामगारों की टूटी कमर हैं॥
सियासत के गहरे समन्दर में देखो-
गरीबों को चारा बनाते मगर हैं॥
ठगी, चोरी, मक्कारी, वादाख़िलाफ़ी,
रहे रहबरों में यही अब हुनर हैं?
लगी करने सरकारें भी अब डकैती,
कि इंसाफ़ो - आईन सभी ताक़ पर हैं॥
शहीदों के आँसू उन्हें खोजते हैं,
नए युग के आशफ़ाको - बिस्मिल किधर हैं॥
स्वदेशी परिंदे के
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