क़ानून की ढाल तले अति - ये कैसा क़ानून !

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  • रेखा श्रीवास्तव
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  • क़ानून अंधा होता है - उसको सबूत चाहिए. ये हम रोज सुना करते हैं लेकिन एक ऐसा भी क़ानून बना है जिसमें किसी सबूत जरूरत नहीं होती और उसकी आड़ में ब्लैकमेल भी आसानी से किया जा सकता है. क़ानून हमारे समाज को मर्यादित और संयमित बनाकर सबको सामान्य एवं शांतिपूर्ण जीवन देने के लिए बनाये गए हैं तथा  काल और परिवेश के अनुसार इनका पुनर्निर्माण , संशोधन और नवनिर्माण भी होता रहता है.
                                      हो सकता है कि मेरे इस लेख का नारी समूहों द्वारा विरोध भी किया जाय लेकिन सत्य सदैव सत्य है और गलत कोई भी करे उसको इंगित कोई भी कर सकता है. ऐसा नहीं है कि नारियां गलत नहीं कर रही हैं लेकिन उनके लिए महिला आयोग है . उनसे त्रसित लोगों के लिए क्या मानवाधिकार आयोग कुछ भी नहीं कर सकता है.
                                      मैं  दहेज़ उत्पीड़न निरोधक क़ानून के विषय में चर्चा कर रही हूँ. इसके लिए कोई सबूत नहीं चाहिए. इसके साथ ही इसका उपयोग वास्तव में त्रसित कितनी महिलायें कर पाती हैं? इसके आंकड़े भी बताते हैं कि क़ानून अंधा होता है. 
                                      मेरे बराबर वाले फ्लैट  में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहता है - एक साल पहले शादी हुई, बड़े सपने सजाये थे. पहले तो घर में जाकर सबको अपने अनुरूप चलाने की कोशिश की , जब सही और गलत सब नहीं चला तो मायके जाकर बैठ गयी.  फिर उसने वहीं से उसको परेशान करना शुरू कर दिया. उसकी शर्तें थीं:
    --अपने परिवार से कोई रिश्ता नहीं रखोगे.
    --जब भी यहाँ रहोगे तो मेरे घर ही रहोगे, अपने घर नहीं जाओगे.
    --भाई  - बहनों के लिए कुछ नहीं करोगे.
    --होली दिवाली भी मेरे ही घर में होगी क्योंकि मेरा भाई विदेश में रहता है और मेरी माँ अकेली है.


                       लड़के को ये शर्ते मंजूर न थीं उसने दूसरी कंपनी में नौकरी ले ली और यहाँ आ गया. दिन भर अपनी कंपनी में काम और रात में पत्नी के तमाशे में पिसता रहता है. इससे पहले वह किराए से रहता था तो पत्नी के तमाशे से तंग आकर मकान मालिक ने मकान खाली करवा लिया. जहाँ वह शादी से पहले से रहता चला आ रहा था.
    रोज रात का तमाशा बना रहता है. पड़ोसियों कि नींद हराम अलग से. बालकनी खोल कर रात को चिल्लाना शुरू कर देती है - 
    --मारो मारो - मेरा भाई तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को दहेज़ में जेल में सडवा देगा.
    --देखती हूँ तुम्हारी बहन कि शादी कैसे होती है?
    --तुम्हारे ७० साल के बाप को जेल की चक्की न पिसवा दी तो मेरा नाम नहीं.
                                   जब मन होता है आ जायेगी और जब मन होगा माँ के घर चली जाती है. अब तो उसकी शक्ल से ही डरता है वो, कई कई दिन घर नहीं आएगा. कभी कंपनी में ही और कभी किसी दोस्त के घर सो जाता है.


                     रीना - सिर्फ १५ दिन ससुराल रही और घर के अनुरूप खुद को न पाकर मायके जाकर दहेज़ एक्ट लग दिया. सास, ससुर, पति सभी जेल कि सलाखों के पीछे पहुँच गए. फिर जमानत पर वापस आये. 
                           इससे पहले फॅमिली कोर्ट में लिख कर दे चुकी थी कि मैं ही ससुराल वालों से अच्छा व्यवहार नहीं कर पायी - आगे से ठीक से रहूंगी. ससुराल आई भी नहीं और १५ दिन बाद दहेज़ उत्पीडन का मुकदमा कर दिया. स्वच्छंद जीवन जीने के लिए उसे आजादी चाहिए थी. मध्यस्थों से १० लाख रूपये कि मांग की कि सारे मुक़दमे वापस ले लूंगी. इतना पैसा मेरे एकाउंट में जमा करवा दो. अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है.


                          कविता ने माँ - बाप के दबाव में आकर शादी कर ली और फिर अपनी आदतों से ससुराल वालों को परेशान कर दिया. जब ससुराल में घर पर कोई न था,  तो अपने बॉय फ्रेंड के द्वारा पुलिस को बुलाकर सारा सामान लेकर चली गयी. घर वालों ने ससुराल वालों पर आरोप लगाकर मुकदमा कर दिया.  उसने समाज के लिए  शादी तो की थी. ससुराल अच्छी नहीं मिली और वह अपने बॉय फ्रेंड के साथ रहने लगी. जब समाज ने उंगली उठाना शुरू किया तो सारे मुकदमे उठा कर तलाक के लिए अर्जी दे दी और फिर बॉय फ्रेंड से शादी कर ली.  इस एक लड़की के घर वालों के कदम ने ससुराल वालों को कितना अपमान , तनाव झेलना पड़ा.  इसके लिए कोई क़ानून नहीं है. 


                       अलका मानसिक रोगी थी, माँ -बाप ने बिना बताये शादी कर दी. जब तक वह दवा खाती रही ठीक थी, किन्तु दवाएं भी सब से छुपा कर खाती थी. जब मायके जाये तो लेकर आती थी. एक बार अधिक दिन रहना हुआ और दवाएं ख़त्म हो गयी - उसकी असामान्य हरकतें शुरू हो गयी. मायके वालों को खबर की तो उसको ले गए और दहेज़ उत्पीड़न का मुकदमा कर दिया कि हमारी लड़की तो अब तुम्हें रखना नहीं है हम तुम्हें भी चैन से नहीं रहने देंगे. वह तो सामान्य जीवन नहीं जी सकती. वह लड़का आज भी इस मुक़दमे के चक्कर में न शादी कर सकता है और न ही मानसिक तौर पर निश्चिन्त रह पाता है. 


                       हम नारी उत्पीड़न की बात को स्वीकार करते हैं, इस क़ानून कि उपयोगिता को भी किन्तु इस बार नारी द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न के पीछे क्या इस क़ानून की ढाल नहीं है? यद्यपि इस प्रकार कि महिलाओं कि संख्या २० प्रतिशत है किन्तु सम्पूर्ण नारी जाति पर प्रश्न चिह्न खड़ा नहीं हो जाता है. ऐसे उत्पीड़ित लोगों का कहना है कि सारे क़ानून सिर्फ महिला संरक्षण के लिए ही  बने हैं - तथ्य या सत्य की कोई नहीं सुनता है - न पुलिस और न क़ानून. अब तो लड़कों कि शादी करने से डर लगता है कि ये घर की  लक्ष्मी आ रही है या फिर बरबादी. 
                                     इस सारे कथन का पर्याय ये है कि हमारा अंधा क़ानून कब तक एक ही दिशा में चलता रहेगा. क़ानून बनना सही है किन्तु उसके दुरूपयोग की दिशा में भी कठोर दृष्टि रखनी चाहिए. महिला आयोग इस बात से वाकिफ नहीं है ऐसा भी नहीं है किन्तु महिला आयोग है तो उसके खिलाफ बोलना उसके नियमों और नाम के विपरीत हो जाएगा. इस के लिए मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को आपस में मिलाकर इस तरह के मामलों के लिए समवेत  हल सोचने होंगे. किसी को भी बिना कुछ सुने सीधे जेल में डाल देना और फिर जमानत भी नहीं होना किस क़ानून की दृष्टि में सही है. जब कि वास्तव में जो दहेज़ के लिए उत्पीड़ित करते हैं, वे इस शिकंजे में फंसते ही नहीं है. पहले ही क़ानून को खरीद कर अपनी जेब में डाले रहते हैं.  मुझे इस बारे में आप सभी से सुझाव चाहिए कि इसका हल क्या हो? जब कि यह समस्या भयावह रूप लेती जा रही है. सारे मामले मैंने बहुत बहुत करीब से देखे हैं.

    7 टिप्‍पणियां:

    1. रेखा जी ये कानून सरदर्द मिटाने के लिए सर कटवाने वाली बात करता है. आज इसने कानून ने जितने हिंदू घर तोड़े है उतने शायद अब तक के इतिहास में भी किसी आक्रमणकारी ने नहीं थोड़े थे.
      Detailed Statistics जानने के लिए मेरे पिछले साल अप्रैल में इसी सन्दर्भ में लिखे निम्नलिखित लिंक पर क्लिक कर के इस पोस्ट को देखे.
      गिरते पारिवारिक मूल्य और गर्त में जाता हिन्दू समाज

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    2. पूरे देश में कोई नियमकानून नहीं है समरथ के लिये.

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    3. ऐसा भी होता है .लेकिन नारी उत्पीड़न भी बहुत है ।

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    4. रेखा श्रीवास्तव जी आप ने एक नंगे सच से पर्दा ऊठाया है यह सच है, एक कडुवा सच,,,, इस मै लडकी के मां बाप का भी बहुत बडा हाथ होता है, जो प्यार मै आ कर अपनी ही लाडली के जीवन को बर्बाद कर देते है, उसे रोकने ओर समझाने के स्थान पर उसे ओर उकसाते है

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    5. भारतीय जीवन-दर्शन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चार पुरुषार्थ की परिकल्पना की गई है । धर्म के अंतर्गत मनुष्य के भीतर पलने वाले मनोविकरों को साधना अर्थात उन पर विजय पाने का अभ्यास किया जाता है । फलत: व्यक्ति का आचरण निर्मल हो जाता है । जीवन विनम्रता, धैर्य, व्यवहार कुशलता, अनुशासन, सहानुभूति, उदारता, स्वावलंबन, परिश्रम आदि से भूषित हो कर कांतिमय बना रहता था । परिवार में सुख और शान्ति भी बनी रहती थी। एक धर्म को साध लेने से अर्थ, काम और मोक्ष नामक पुरुषार्थ भी सध जाते थे। वह परंपरा अब विलुप्त हो गई है। आज दार्शनिक चिंतन करने, आचरण को सुधारने का अपनी दिनचर्या में कोई स्थान नहीं रह गया है । फलस्वरूप थोडे़ दिनों में ही वैवाहिक जीवन से सुख और शान्ति का सोता सूख जाता है। सावधान! जीवन में सुख-शान्ति अच्छे आचरण से उत्पन्न आती है .....कानून से नहीं।

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    6. राज भाटिया जी,

      आपका कहना बिलकुल सच है , सिर्फ लड़की के मामले में ही नहीं, उनके शोषित होने के मामले में भी लड़के के घर वालों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. लड़की का घर बर्बाद करने में भी यही बात आती है. इसके लिए लड़की और लड़के दोनों के ही लिए स्व विवेक से कार्य करना आवश्यक है. स्वस्थ मानसिकता की आवश्यकता है.

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    7. डॉ. लखनवी जी,

      ये सारी बातें बीते समय की हो चुकी हैं, आज हमारी शिक्षा ही इनको धर्म , अर्थ, काम और मोक्ष की अवधारणा से अवगत नहीं कर पाती है तो उनको इसका अर्थ कितना मालूम है. जीवन में व्यवहारिकता और सदाशय ही सीख लें वह बेहतर है. वैसे आज की पीढ़ी को कौन्सिलिंग की जरूरत अधिक है. वे स्वयं निर्णय लेने में खुद को निर्बल पाते हैं वहाँ पर उन्हें जरूरत होती है.

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