पेंच के मामले में सख्त हुए जयराम रमेश
नहीं लगने देंगे पेंच में पावर प्रोजेक्ट
कमल नाथ और रमेश की टकराहट बढी
फोरलेन के बाद अब पावर प्लांट में फसाया फच्चर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 15 अप्रेल। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन राज्य मन्त्री जयराम रमेश और भूतल परिवहन मन्त्री जयराम रमेश के बीच चल रही तनातनी अब और बढती दिखाई दे रही है। पिछले कार्यकाल में तत्कालीन वाणिज्य और उद्योग मन्त्री कमल नाथ के अधीन वाणिज्य राज्य मन्त्री रहे जयराम रमेश के मन में उस कार्यकाल की कोई दुखद याद उन्हें आज भी साल रही है, तभी वे कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र मध्य प्रदेश के जिला छिन्दवाडा और सिवनी के तहत आने वाले पेंच नेशनल पार्क पर अपनी नज़रें गडाए हुए हैं।
राजधानी में पत्रकारों से रूबरू जयराम रमेश ने कहा कि वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय की नीति बहुत ही स्पष्ट है। एसी किसी परियोजना को अनुमति नहीं दी जाएगी जिसमें संरक्षित क्षेत्र के पानी का व्यवसायिक उपयोग संभावित हो। रूडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक के मोगली की कर्मभूमि रही मध्य प्रदेश का पेंच नेशनल पार्क अब जयराम रमेश की आंख में खटक रहा है। गौरतलब है कि इस अभ्यरण का एक छोर कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिन्दवाडा तो दूसरा भगवान शिव के जिले सिवनी में है।
इस अभ्यारण के निकट प्रस्तावित विद्युत परियोजना के बारे में पूछे जाने पर जयराम रमेश कहते हैं कि अदाणी समूह की 1320 मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजना प्रस्तावित है। उन्होंने पेंच संरक्षित क्षेत्र के पानी का व्यवसायिक इस्तेमाल हो सकने की संभावना को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उनहोंन हिमाचल प्रदेश की प्रस्तावित उस योजना को पर्यावरण मंजूरी देने के आवेदन को अस्वीकार कर दिया है जिसमें संरक्षित क्षेत्र के पानी का व्यवसायिक उपयोग होना दर्शाया गया था।
जयराम रमेश ने जिन परियोजनाओं को अनुमति देने से इंकार किया है, उनमें गुजरात के जामनगर में पोशिट्रा बन्दरगाह के निर्माण के लिए गल्फ ऑफ कच्छ मेरीन नेशनल पार्क के हिस्सों को मांगा गया था, इसके अलावा हिमाचल के माजथल वाईल्ड लाईफ सेंचुरी में अंबुजा सीमेंट द्वारा पानी लेने के मामले, आंध्र में कोलुरू झील सेंचुरी इलाके की एक योजना शामिल है।
रमेश के करीबी सूत्रों का कहना है कि मनमोहन सिंह के पिछले कार्यकाल में वाणिज्य और उद्योग मन्त्री रहे कमल नाथ ने जयराम रमेश के अधिकारों में बहुत ज्यादा कटौती कर रखी थी। सूत्रों का कहना है कि रमेश के अधिकांश प्रस्तावों को नाथ द्वारा अस्वीकृत कर लौटा दिया जाता था। इतना ही नहीं अनेकों बार अधिकारियों के सामने भी जयराम रमेश को जलील होना पडा था। अपने मन में उस पीडा को सालों दबाए बैठे रमेश को इस बार भाग्य से वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय मिल गया है। गौरतलब है कि नाथ के पास यह मन्त्रालय नरसिंम्हाराव की सरकार के वक्त था। अब नाथ से खार खाए अधिकारी ही एक हाथ में लालटेन और एक हाथ में लाठी लेकर जयराम रमेश को कमल नाथ के खिलाफ रास्ता दिखा रहे हैं।
पिछले साल स्विर्णम चतुZभुज के अंग रहे उत्तर दक्षिण गलियारे में भी पेंच नेशनल पार्क को लेकर पर्यावरण का ही फच्चर फंसाया गया था। सूत्रों की मानें तो वन मन्त्रालय के अधिकारियों ने जयराम रमेश को बता दिया कि पेंच से होकर कान्हा तक के गलियारे में वन्य जीव विचरण करते हैं, और नक्शे में भी पेंच नेशनल पार्क को कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा दर्शाया दिया गया है। फिर क्या था, जयराम रमेश नहा धोकर इस फोरलेन मार्ग के पीछे लग गए। सूत्रों के अनुसार अब पेंच का नाम आते ही जयराम रमेश के कान तक लाल हो जाते हैं और वे लाल बत्ती दिखाने के मार्ग ही खोजने में लग जाते हैं।
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vikas aur prakriti ke beech ke takrahat se jyada yeh raajnitik takrahat hai...
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