रसूखदारों के हाथ की लौण्डी नहीं है भारत की कानून व्यवस्था

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  • मील का पत्थर साबित होगी न्याय की यह जीत
     
    रसूखदारों के हाथ की लौण्डी नहीं है भारत की कानून व्यवस्था
     
    फैसले से रियाया का कानून पर भरोसा बढा
     
    जनसेवक बरकरार रखें जनता के भरोसे को
    (लिमटी खरे)

    जेसिका लाल हत्याकाण्ड मामले में देश की सबसे बडी अदालत द्वारा जो फैसला दिया गया, उससे भारत की न्याय व्यवस्था पर आम आदमी का भरोसा और अधिक बढ जाएगा। आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, अनेक फिल्मों में भी इस डायलाग को सैकडों बार दुहराया जा चुका है। वहीं दूसरी ओर आजाद हिन्दुस्तान में लोगों के मन में एक और धारणा घर कर गई है कि काननू के हाथ चाहे जितने मर्जी लंबे हो पर वे हाथ रसूखदार, धनाड्य, संपन्न, ताकतवर लोगों को छू भी नहीं पाते हैं। इसी अवधारणा के चलते आम आदमी मान रहा था कि इस मामले में आरोपियों को सजा मिलना मुश्किल ही नहीं नामूमकिन ही है, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। ग्यारह साल के लंबे इन्तजार के बावजूद ही सही पर न्याय मिलने पर सभी सन्तुष्ट नज़र आ रहे हैं।
    जेसिका लाल जैसे हत्याकाण्ड दरअसल अधकचरी पश्चिमी संस्कृति की विकृति का लबादा ओढने की परिणीति ही हैं। महानगरों में परिवारों के अन्दर शर्म हया बची ही नहीं है। बाप बेटे के साथ शराब गटक रहा है तो बेटी मां के सामने ही सिगरेट के छल्ले उडा रही है। जब सांस्कृतिक रूप से हमारा नैतिक पतन होगा तो उसमें से पैदा होंगे जेसिका लाल हत्याकाण्ड जैसे वाक्ये।
     
    29 अप्रेल 199 को भी यही हुआ था। दक्षिणी दिल्ली के कुतुब कोलोनेड रेस्टारेंट की मालिकिन बीना रमानी द्वारा दी गई पार्टी में माडल जेसिका लाल को शराब बांटने की जवाबदारी सौंपी गई थी। आधी रात बीतने के बाद मनु शर्म अपने दोस्तों के साथ वहां आया और दो बजे उसने शराब की मांग की। चौथे पहर के आगाज के साथ अगर कोई शराब मांगे तो उसकी और उसके परिवार की मानसिकता को बेहतर समझा जा सकता है। जेसीका द्वारा मना करने पर मनु ने हवाई फायर किया और फिर जेसिका के सिर में घुसा दी एक गोली। बाद में वे वहां से भाग निकले और चौथे पहर में ही अपनी टाटा सफारी को वहां से उठवा लिया। पुलिस ने 2 मई को बरामद किया। मामला पंजीबद्ध हुआ, गवाहों में अनेक लोग सामने आए, पर चूंकि मनु हरियाणा के बाहूबली नेता विनोद शर्मा के पुत्र हैं, इसलिए वही हुआ जिसका अन्दाजा था। अदालत में श्यान मुंशी, शिवदास, करन राजपूत सहित चश्मदीद अपने अपने दर्ज बयानों से मुकर गए।
     
    इसके बाद लगने लगा था कि मामला ठण्डे बस्ते के हवाले ही होने वाला है। गवाही के अभाव में 21 फरवरी 2006 को सभी नौ आरोपियों को बरी कर दिया गया। दिल्ली पुलिस ने मामले को घटना के सात साल बाद 13 मार्च को उच्च न्यायालय में पेश किया। 18 दिसम्बर 2006 को एक बार फिर मनु शर्मा, विकास यादव और अमरदीप को दोषी करार देते हुए 20 दिसम्बर 2006 को फैसला सुनाया जिसमें मनु को उमर कैद और विकास एवं अमरदीप को चार चार साल की कैद की सजा सुनाई। 02 फरवरी 2007 को मनु शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में अपनी अपील पेश की, और अन्त में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
     
    इस पूरे मामले में मीडिया और सामाजिक संस्थाओं की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी, क्योंकि इन्ही के माध्यम से यह प्रकरण लोगों की स्मृति से विस्मृत न हो सका। मीडिया अगर उस वक्त अभियान न छेडता तो आज मनु सहित विकास ओर अमरदीप खुले साण्ड की तरह तबाही मचा रहे होते। जेसिका को लगी गोली को बदलकर भी अदालत को गुमराह करने का कुित्सत प्रयास किया गया, पर उच्च न्यायालय ने पारखी नज़रों से सच्चाई का पता लगा ही लिया।
     
    एसा नहीं कि रसूखदारों के द्वारा पहली बार इस तरह के प्रयास किए गए हों। इससे पहले 2 जुलाई 1995 को दिल्ली युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुशील शर्मा ने अपनी पित्न नैना साहनी को मारकर तन्दूर में डाल दिया था, तब तन्दूर काण्ड जमकर उछला। 03 नवंबर 2003 को अदालत ने सुशील शर्मा को दोषी पाते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई। उच्च न्यायालय ने भी निचली अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए उसे बरकरार रखा।
     
    इसी तरह 17 फरवरी को बहुचर्चित नेता डी.पी.यादव की बेटी भारती के मित्र नितीश कटारा की हत्या कर दी गई थी। अदालत ने दोनों को आजीवन कैद की सजा सुनाई। 23 जनवरी 1999 को इण्डियन एक्सपे्रस अखबार की पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या में शक की सुई दिल्ली में पदस्थ भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आर.के.शर्मा के इर्द गिर्द घूमी। अदालत ने इस मामले में शर्मा और दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जनवरी 1995 में कानून की पढाई करने वाली प्रियदर्शनी भट्ट के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी। आरोपी सन्तोष कुमार सिंह पुलिस के रसूखदार का बेटा था। जाहिर था पुलिस ने उसका साथ दिया। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसे छोड दिया। मीडिया ने जब हो हल्ला मचाया तब दुबारा केस खुला और दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसे फांसी की सजा सुनाई।
     
    कुल मिलाकर यह सब जागरूकता के चलते ही सम्भव हो सका। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि अगर कहीं कोई अन्याय हो रहा है तो हम कम से कम उसके खिलाफ आवाज उठाने का साहस तो करें। प्रसिद्ध विचारक शिव खेडा द्वारा उद्यत एक कोटेशन का जिकर यहां लाजिमी होगा कि अगर कोई आपके पडोसी पर अत्याचार कर रहा है, और आप शान्त हैं तो उसके बाद नंबर आपका ही आने वाला है।

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    1 टिप्पणी:

    1. एक फैसले से खुश मत हो जाईये... नितीश कटारा हत्याकांड में गवाह की ऐसी तैसी की हुई है.. अगर गवाह ही सुरक्षित नहीं रह सकेंगे और दुनिया भर के मामले लाद दिये जायेंगे तो कौन सामने आयेगा न्याय दिलाने..

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