माननीय श्री रामनिवास जाजू की कविता जो परम्‍परा काव्‍य संध्‍या में पढ़ी गई (अविनाश वाचस्‍पति)

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • गीत सुनना है तो घायल होना सीखो ...
    बढ़ना अच्‍छा वही
    कि जिससे बढ़ती रहे प्रसन्‍नता
    वो घट जाना भी तो अच्‍छा
    घटती जिससे खिन्‍नता
    चलना अच्‍छा वही
    कि पथ के अन्‍य पथिक भी चले सकें
    थमने में क्‍या हानि
    अगर हम थम कर तनिक संभल सकें
    राहगीर मैं था साधारण
    खुशियां मिलीं अपार पर
    सदा नहीं मैं भोग सकूंगा
    उनका मजहब दुलार पर
    तो करनी अब तैयारी ऐसी
    कि फिसलूं नहीं उधार पर

    नीचे से उपर की तीसरी पंक्ति 'उनका मजहब दुलार पर' संभवत: कुछ और भी हो सकती है क्‍योंकि रिकार्डिंग में साफ से समझ नहीं आ पाई है। यदि किन्‍हीं सज्‍जन को मालूम हो तो पुष्टि कीजिएगा।

    7 टिप्‍पणियां:

    1. रिकार्डिंग जब है ही, तो वो सुनवाईये.

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    2. @ उड़नतश्‍तरी


      बस इतनी ही तो तकनीक नहीं आती है और न जाने क्‍यों, कंप्‍यूटर उस रिकार्डर को डिटेक्‍ट भी नहीं कर रहा हे।

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    3. sahi kaha.........bahut sundar kavita padhne se vanchit rah jate......aabhar.

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    4. दैनिक नई दुनिया में आज प्रकाशित समाचार का लिंक लगाया है, उसे भी पढ़ लीजिएगा।

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    5. बहुत सुंदर लगी यह कविता,धन्यवाद

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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