नई दुनिया ने दिल्ली संस्करण में पेज दो पर प्रकाशित समाचार में यह शीर्षक दिया है। पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक कीजिएगा।
गीत सुनना है तो घायल होना सीखो ...
आज शनिवार दिनांक 6 मार्च 2010 की सांयकाल 6 बजे नई दिल्ली के लक्ष्मीपत सिंघानिया सभागार, पीएचडी हाऊस, खेलगांव रोड, नई दिल्ली में परम्परा परिवार द्वारा काव्य संध्या का आयोजन किया गया। निमंत्रण पत्र में श्री काशीनाथ मेमानी और श्रीमती किरण मेमानी ने लिखा है कि आपने भी सुना होगा कि जब फगनौटी हवा गुनगुनाती है, तो वसन्त नये-नये छन्दों में बोलने लगा है। जीवन एक नयी लय पकड़ लेता है।
मौसम के इस सन्धिस्थल पर 'परम्परा' ने देश के जाने-माने तीन रचनाकारों को आमंत्रित किया है कि वे अपनी रचनाओं से आपको आनन्दित करें।
... अब मैं आपको बतला रहा हूं कि वास्तव में कार्यक्रम कें बिताये गये संभवत: दो घंटों की अवधि का पता भी नहीं लगा और समस्त उपस्थितजन खिलखिलाते रहे, ठहाके लगाते रहे और अंदर तक विचारने को विवश भी कर गये। रचनाकार श्री रामनिवास जाजू, डॉ। ज्ञान चतुर्वेदी और श्री मुनव्वर राना ने लगभग आधा-आधा घंटे रचनाओं का पाठ किया। पर वे रचनायें प्रबुद्ध श्रोताओं के मन और मानस को झंकृत कर गईं। तीनों रचनाकार अपने-अपने क्षेत्र में ख्यातनामा हैं।
समारोह से पूर्व जलपान का बहुत ही बढि़या इंतजाम था। जिससे सबके पेट भी आनंदित हुये। मुझे मलाल रहा कि मेरे पास कैमरा नहीं था। वरना मैं आपको भी कार्यक्रम की पूरी भागीदारी करवाता। पर प्रयास रहेगा कि उनकी पढ़ी गई रचनाएं आप तक पहुंचा पाऊं।
कार्यक्रम की आरंभिक परिचयात्मक उद्घोषणा माननीय श्री काशीनाथ मेमानी जी ने की और धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती किरण मेमानी जी ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन माननीय श्री कन्हैयालाल नंदन जी ने अपनी चिर-परिचित शैली करके सबका मन मोह लिया।
और शाम सफल हो गई।
उपस्थितों में उल्लेखनीय वे नाम जिन्हें मैं पहचानता हूं या उनके नाम से वहां पर उन्हें जान पाया। सर्व श्री/ राजनारायण बिसारिया, डॉ। अजित कुमार, श्री वेद प्रताप वैदिक, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी(सपत्नीक), वीरेन्द्र प्रभाकर, कमल कुमार और अन्य कुछ नाम मैं अखबारों में पढ़ कर इसमें अवश्य समाहित करूंगा। कुछ नाम मैं अवश्य भूल भी गया हूं जिनसे मैं वहां पर रूबरू हुआ हूं।
श्री रामनिवास जाजू की कविताएं सुख और दुख का विशद वर्णन करते हुये सबके दिलों में गहरे तक उतर गईं और डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी के व्यंग्य ने अपनी अद्भुत छटा बिखेरी और उनके एक हास्य ने तो सबको हंसते हंसते लोट पोट कर दिया जिस पर खूब ठहाके लगे। शायर मुनव्वर राणा की तो एक-एक पंक्ति दिल को छू गई उन्होंने इस मौके पर यह भी बतलायाहै कि उनकी नई पुस्तक मुहाजिरनामा अगले महीने प्रकाशित होकर आ रही है।
परम्परा की फगनौटी काव्य संध्या (अविनाश वाचस्पति)
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चाचा जी कैमरा तो साथ में रख ही लिया कीजिए..ऐसे मौके का सचित्र वर्णन और बढ़िया होता..
जवाब देंहटाएंवाह वाह !
जवाब देंहटाएंपर आपका यह कैमरा भी ना >>.. हर बार रह क्यों जाता है!!
बहुत बढिया विवरण .. चित्र की कमी तो खल रही है !!
जवाब देंहटाएं"समारोह से पूर्व जलपान का बहुत ही बढि़या इंतजाम था।... "
जवाब देंहटाएंवाह ये हुई न बात..वर्ना तो आयोजकों को लगता है जलपान बाद में कराना चाहिये ताकि श्रोता लालच में बैठे रहेंगे :)
आभार रिपोर्ट का..सच में कैमरे की कमी खली.
जवाब देंहटाएंनई दुनिया में प्रकाशित समाचार का लिंक पोस्ट में दोबारा से दिया है। कृपया पढ़ लीजिएगा।
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