साध्वी एक कदम आगे दो कदम पीछे!
अवकाश पर है जनशक्ति पार्टी
आखिर चित्त स्थिर क्यों नहीं रख पातीं उमाश्री
(लिमटी खरे)
भारतीय जनशक्ति पार्टी की सुप्रीमो उमाश्री भारती ने अपने ही दल से त्याग पत्र दे दिया है, यह खबर चौंकाने वाली ही मानी जाएगी। मीडिया ने उमाश्री के इस कदम को जोर शोर से उछाला है। वास्तव में हुआ क्या है! अरे उमाश्री ने तीन माह का अवकाश मांगा है, और कुछ नहीं। हर एक मनुष्य को काम करने के बाद अवकाश की आवश्यक्ता होती है। सरकारी सेवकों को भी तेरह दिन के सामान्य अवकाश के साथ अर्जित और मेडीकल लीव का प्रावधान है, तब उमाश्री ने अगर तीन माह का अवकाश मांग लिया तो हंगामा क्यों बरपा है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस द्वारा अपनी उपेक्षा की पीडा का दंश झेल रहे कांग्रेस की राजनीति के हाशिए में ढकेल दिए गए चाणक्य कुंवर अर्जन सिंह ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कहा था कि वे जीवन भार राजनीति करते रहे और अब उमर के इस पडाव में अपने द्वारा अर्जित अवकाश का उपभोग कर रहे हैं, तब तो हंगामा नहीं हुआ था।
उमाश्री भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया है। उन्होंने भाजश छोडी है, अथवा नहीं यह बात अभी साफ नहीं हो सकी है। गौरतलब होगा कि 2005 में भाजपा से बाहर धकिया दिए जाने के बाद अपने ही साथियों की हरकतों से क्षुब्ध होकर उमाश्री भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। उमाश्री ने उस वक्त भाजपा के शीर्ष नेता एल.के.आडवाणी को आडे हाथों लिया था। कोसने में माहिर उमाश्री ने भाजपा का चेहरा समझे जाने वाले अटल बिहारी बाजपेयी को भी नही ंबख्शा था। उमाश्री के इस कदम से भाजपा में खलबली मच गई थी। चूंकि उस वक्त तक उमाश्री भारती को जनाधार वाला नेता (मास लीडर) माना जाता था, अत: भाजपाईयों के मन में खौफ होना स्वाभाविक ही था।
उमाश्री को करीब से जानने वाले भाजपा नेताओं ने इस बात की परवाह कतई नहीं की। उमाश्री ने 2003 में मध्य प्रदेश विधान सभा के चुनावी महासमर का आगाज मध्य प्रदेश के छिन्दवाडा जिले में अवस्थित हनुमान जी के सिद्ध स्थल ``जाम सांवरी`` से किया था। जामसांवरी उमाश्री के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुआ था, सो 2005 में भी उमाश्री ने हनुमान जी के दर्शन कर अपना काम आरम्भ किया। उमाश्री का कारवां आगे बढा और भाजपाईयों के मन का डर भी। शनै: शनै: उमाश्री ने अपनी ही कारगुजारियों से भाजश का उभरता ग्राफ और भाजपाईयों के डर को गर्त में ले जाना आरम्भ कर दिया।
कभी चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारने के बाद कदम वापस खीच लेना तो कभी कोई नया शिगूफा। इससे उमाश्री के साथ चलने वालों का विश्वास डिगना आरम्भ हो गया। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजश कार्यकर्ताओं ने उमाश्री को चुनाव मैदान में कूदने का दबाव बनाया। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि एसा इसलिए किया गया था ताकि भाजश कम से कम चुनाव तक तो मैदान में डटी रहे। कार्यकर्ताओं को भय था कि कहीं उमाश्री फिर भाजपा के किसी लालीपाप के सामने अपने प्रत्याशियों को वापस लेने की घोषणा न कर दे। 2008 का मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव उमाश्री भारती के लिए आत्मघाती कदम ही साबित हुआ। इस चुनाव में उमाश्री भारती अपनी कर्मभूमि टीकमगढ से ही औंधे मुंह गिर गईं। कभी भाजपा की सूत्रधार रहीं फायर ब्राण्ड नेत्री उमाश्री भारती ने इसके बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में फिर एक बार भाजपा द्वारा उनके प्रति नरम रूख मात्र किए जाने से उन्होंने लोकसभा में अपने प्रत्याशियों को नहीं उतारा।
माश्री भारती का राजनैतिक इतिहास देखने पर साफ हो जाता है कि उनके कदम और ताल में कहीं से कहीं तक सामंजस्य नहीं मिल पाता है। वे कहतीं कुछ और हैं, और वास्तविकता में होता कुछ और नज़र आता है। गुस्सा उमाश्री के नाक पर ही बैठा रहता है। बाद में भले ही वे अपने इस गुस्से के कारण बनी स्थितियों पर पछतावा करतीं और विलाप करतीं होंगी, किन्तु पुरानी कहावत ``अब पछताए का होत है, जब चिडिया चुग गई खेत`` से उन्हें अवश्य ही सबक लेना चाहिए।
मध्य प्रदेश में उनके ही दमखम पर राजा दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली दस साला सरकार को हाशिए में समेट पाई थी भाजपा। उमाश्री भारती मुख्य मन्त्री बनीं फिर झण्डा प्रकरण के चलते 2004 के अन्त में उन्हें कुर्सी छोडनी पडी। इसके बाद एक बार फिर नाटकीय घटनाक्रम के उपरान्त वे पैदल यात्रा पर निकल पडीं। मीडिया में वे छाई रहीं किन्तु जनमानस में उनकी छवि इससे बहुत अच्छी बन पाई हो इस बात को सभी स्वीकार कर सकते हैं।
अबकी बार उमाश्री भारती ने अपने द्वारा ही बुनी गई पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया है। उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष संघप्रिय गौतम को त्यागपत्र सौंपते हुए कहा है कि वे स्वास्थ्य कारणों से अपना दायित्व निभाने में सक्षम नहीं हैं, सो वे अपने आप को समस्त दायित्वों से मुक्त कर रहीं हैं, इतना ही नहीं उन्होंने बाबूराम निषाद को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाने की पेशकश भी कर डाली है। उमाश्री की इस पेशकश से पार्टी में विघटन की स्थिति बनने से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे चाहतीं तो संघप्रिय गौतम पर ही भरोसा जताकर उन्हें अध्यक्ष बनाने की पेशकश कर देतीं।
उधर भाजपा ने अभी भी उमाश्री भारती के मामले में मौन साध रखा है। यद्यपि भाजपा प्रवक्ता तरूण विजय का कहना है कि उन्हें पूरे मामले की जानकारी नहीं है, फिर भी भाजपा अपने उस स्टेण्ड पर कायम है, जिसमें भाजपा के नए निजाम ने उमाश्री भारती और कल्याण सिंह जैसे लोगों की घर वापसी की संभावनाओं को खारिज नहीं किया था। कल तक थिंक टेंक समझे जाने वाले गोविन्दाचार्य से पूछ पूछ कर एक एक कदम चलने वाली उमाश्री के इस कदम के मामले में गोविन्दाचार्य का मौन भी आश्चर्यजनक ही माना जाएगा। बकौल गोविन्दाचार्य -``भाजपा अब भगवा छटा वाली कांग्रेस पार्टी हो गई है।`` अभी हाल ही में उमाश्री को भाजपा के एक प्रोग्राम में देखा गया था, जिसमें नितिन गडकरी मौजूद थे। भाजपा द्वारा उमाश्री भारती की इन सारी ध्रष्टताओं को माफ कर अगर गले लगा लिया जाता है तो क्या भरोसा कि आने वाले समय में वे किसी छोटी मोटी बात से आहत होकर फिर भाजपा को कोसें और अब उनके निशाने पर अटल आडवाणी का स्थान नितिन गडकरी ले लें।
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नारि मन तो चलायमान होता ही है!
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