पाडकास्ट कांफ्रेंस : लखनऊ,दिल्ली,जबलपुर और इंग्लैण्ड

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  • Girish Kumar Billore
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  • मुझे ये मालूम था की जी टाक पर एक बार में सिर्फ एक साथी से बात हो सकी शायद आप भी ये जानते ही हैं किन्तु आज रश्मि रविज़ा जी का इन्तजार था . किन्तु उन्हैं अपने ब्लॉग मन का पाखी  पर आय एम् स्टिल  वेटिंग फॉर यु शचि   शीर्षक से लघु उपन्यास डालनी थी सो सवाल ही नहीं उठाता. ..... इस बीच एक ग़ुमशुदा मित्र महफूज़ भाई हरे दिखाई दिए उनको काल किया दुनिया ज़हान की बातें चल ही रहीं थीं कि जीटाक से आने वाली काल अविनाश वाचस्पति जी की थी . और फिर हम तीनों बातों में जुट गए . उधर महफूज़ भाई की बात शिखा जी से चल रही थी इस बात का खुलासा रिकार्डिंग के बाद महफूज़ भाई ने किया वे बात चीत में महफूज़ भाई के ज़रिये शामिल थीं आइये उनकी भेजी कविता को देखें
    लरजती सी टहनी पर
    झूल रही है एक कली
    सिमटी ,शरमाई सी
    टिक जाती है
    हर एक की नज़र
    हाथ बढा देते हैं
    सब उसको पाने को
    पर वो नहीं खिलती
    इंतज़ार करती है
    बहार के आने का
    कि जब बहार आए
    तो कसमसा कर
    खिल उठेगी वो
    आती है बहार भी
    खिलती है वो कली भी
    पर इस हद्द तक कि
    एक एक पंखुरी झड कर
    गिर जाती है भू पर
    जुदा हो कर
    अपनी शाख से
    मिल जाती है मिटटी में.
    यही तो नसीब है
    एक कली का. 
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    दूसरा  भाग    सुनने के लिए ''इधर'' एक क्लिक हो जाए 

    5 टिप्‍पणियां:

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