शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 7

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    मुकदमें की जब चली कहानी,
    खुद अपनी पैरवी की ठानी .
    इंकलाब को देने रवानी,
    जन जन क्रांति धूम मचानी .

    सोच समझ कर चाल चली थी,
    अंग्रेजों को खूब खली थी .
    नवज्योति की ज्वाला जली थी,
    घर घर में वह फैल चली थी .

    भारत भू का कण कण दीपित,
    पूर्ण राष्ट्र में क्रांति प्रज्ज्वलित .
    भयभीत तिमिर था भाग रहा,
    भाग्य भारती का जाग रहा .

    अवसर आया सब कहने का,
    अपनी बातें दोहराने का .
    सकल विश्व को बात सुनाई,
    अंग्रेजों की नींद उड़ाई .

    भारत में चेतनता लायी,
    ज्वालामुखी ने ली अंगड़ाई .
    सकल विश्व को किया अचंभित,
    सृष्टि देखती थी स्तंभित .

    ले हथेली शीश था आया,
    नेजे पर वह प्राण था लाया . (नेजे = भाला)
    अभिमानी था, झुका नही था,
    दृढ़ निश्चय था, रुका नही था .

    लहौर जेल में कैदी थे,
    क्रांतिकारी कई बंदी थे .
    जेल की हालत बद बेहाल,
    सुविधायें खाना बुरा हाल .

    जेले में ठानी भूख हड़ताल,
    बने सत्ता का जी जंजाल .
    ऐतिहासिक वह भूख हड़ताल,
    सबसे लंबी भूख हड़ताल .

    चौंसठ दिन का वह अनशन था,
    सरकार को झुकना पड़ा था .
    अनशन में साथी को खोया,
    जतिनदास पर जग था रोया .

    पुण्य धरा पर अर्ध्य चढ़ाकर,
    कुरबानी का रक्त चढ़ाकर .
    अख्ण्ड रोष का नाद सुनाकर,
    यौवन को भूचाल बनाकर .

    देश भक्ति का रंग लगाकर,
    प्रेम बीज से पेड़ उगाकर .
    निज यौवन को लपट बनाकर,
    जीवन को संग्राम बनाकर .

    स्वतंत्र भू का स्वप्न सजाकर,
    प्रचन्ड अग्नि तन मन लगाकर,
    माटी खुशबू श्वास बसाकर,
    प्राणों को रथ प्रलय बनाकर .

    पीड़ा को आघात बना कर,
    क्रूर काल को ग्रास बनाकर,
    पराधीनता चिता सजाकर,
    विजय पताका भू लहराकर .

    घर घर में सिंह भगत समाया,
    हर जुबां पर नाम वह आया .
    सत्ता सहम गई थी डर से,
    शासन उखड़ गया था जड़ से .

    नाम भगत सिंह जब जब आता,
    रोम रोम संचार वीरता .
    सत्ता थर थर थी थर्राई,
    भगत सिंह से थी घबराई .

    भगत भाई कुलबीर सिंह थे,
    भगत सिंह जब जेल बंद थे,
    कुलबीर ने दिखाये रंगे थे,
    गतिविधियां देख सभी दंग थे .

    ’नौजवान भारत सभा’ भार,
    अपने कंधों पर लिया भार .
    खूब निभाई जिम्मेदारी,
    लोहा लेने की थी बारी .

    गोरों का इक समारोह था,
    किंगा जार्ज पर उत्सव था .
    पूरे शहर की बिजली काटी,
    समारोह को जगमग बाँटी .

    कुलबीर का आक्रोश भड़का,
    वह भाई भगत की राह चला .
    उत्सव की बिजली को रोका,
    दस वर्ष की जेल को भोगा .

    कवि कुलवंत सिंह

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