होली विशेष : हिन्दी ब्लॉगिंग में प्रेम विकसित हो रहा है (अविनाश वाचस्पति)
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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अविनाश वाचस्पति,
होली की तरंग में
बनाते हैं जो दाल वो गलती नहीं है
वे चला रहे हैं जी ब्लॉग आजकल
बतला रहे हैं पूरी दाल को काली
पर इसमें उनकी कोई गलती नहीं है।
संगठन बनाने मिलने मिलाने
सामने आने से डरते हैं वही
जिनको अनुभव कटु हुए हैं
सदा ही गठन ने जिनके
मन में गांठ लगा दी है
उस विद्वेष की गांठ को
जिसमें निकले हैं कांटे
बचाना है कांटों को
सच्चे प्यार से
अपनेपन से।
मिल सकते हैं वे
मिलना भी चाहते हैं
पर नेह से भरा
भरपूर स्नेह से पगा
निमंत्रण उनको चाहिए।
जनहित का विश्वास
भीतर समाना चाहिए
आभासी दुनिया से
आयेंगे तुरंत बाहर
बनायेंगे और बढ़ायेंगे
प्रेम का व्यापार
इसके लिए होली से
अच्छा सच्चा नहीं
कोई और त्योहार।
मेल से ब्लॉग तक का सफर
सफर से पोस्ट
और पोस्ट से
टिप्पणी का गियर
जब बदला जाता है
तो बैकगियर डल जाता है
उलट जाता है सब कुछ
जो नहीं चाहता है कोई
वही हो जाता है सब ओर
पर अब हालात
सुधर रहे हैं
अपनापन बढ़ रहा है
ब्लॉगजगत महक रहा है।
मनाते हैं सभी होली का त्यौहार
देते हैं सभी को रंगकामनाएं
अपनाएं प्रेम से, रंग प्रेम का लगाएं।
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होली की हार्दिक बधायी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर्।
भेद भाव को भूलकर , सब मीठी बोलें बोली
जवाब देंहटाएंजेम्स, जावेद, श्याम और संता , सब मिलकर खेलें होली।
होली की हार्दिक शुभकामनायें।
मिलन पर द्विविधा पाले हैं
जवाब देंहटाएंसंगठन पर भ्रम पाले हैं
मुझे तो लगता यही है मित्रों
कि दाल नहीं... शायद दिल काले हैं
@ Padamsingh
जवाब देंहटाएंन दाल काली है
न दिल काले हैं
हमने तो दाल में से
कंकर भी निकाले हैं।
होली की हार्दिक शुभकामनायें।
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