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मेरा पत्रकरिता के पेशे में आना कुछ हद तक इतेफाक था. क्योंकि मुझे पहला मौका अनजाने में मिला. मैं जब स्कूल/कालेज में पढ़ती थी तब पॉकेट मनी के लिए आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के लिए बच्चों पर आधारित कुछ प्रोग्राम करती थी. उन दिनों मैं 12 वीं क्लास में थी. इन कार्यक्रमों से पॉकेट मनी ठीक हो जाती थी. मेरे भाई उन दिनों थियेटर और ऐसी चीजों में सक्रिय थे. इसलिए मुझे पता रहता था कि कहाँ जाना है और किससे बात करनी है. इस वजह से मुझे जल्दी-जल्दी काम मिलने लगा. लेकिन ये सब करने के बावजूद यह मेरा प्रोफेशन बन जायेगा , ऐसा कभी सोंचा नहीं था. वैसे भी मैंने साईंस से ग्रेजुएशन किया है. मेरे परिवार में भी उस वक़्त पत्रकारिता से सम्बन्ध रखने वाला कोई नहीं था.
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