"परी हूँ मैं" हाँ परी ही तो हूँ ,हूँ पर अपने ही कुछ खयालो में
घबराई सकुचाई तनहा हूँ ,किस्मत के अनसुलझे सवालों में !
आफताबी रेशम से बुनती हूँ ,लाखों सुनहरी झिलमिल ख्वाब
रहती हूँ तारों में बसे आसमानी शहर के चाँद आशियाने में !
पूरा पढ़ने और टिप्पणी देने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए
परी हूं मैं यहाँ, बस यूँ ही रहने दो मुझे मेरे ही ख्यालों में
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएंबधाई!
कम शब्द में बढ़िया रचना..बधाई
जवाब देंहटाएं