'कीबोर्ड के खटरागी' से मुलाकात

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  • अमिताभ श्रीवास्तव
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  • आज का ही तो दिन था, कुर्ला रेलवे स्टेशन के बाहर 'नुक्कड' पर जब 'कीबोर्ड के खटरागी' से मुलाकात हुई तो यकीन मानिये ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार किसी व्यक्ति से मिल रहा हूं। सूचना क्रांति के इस दौर की तारीफ तो करनी ही होगी कि उसने बगैर मिले लोगों को आपस में मिला दिया है। दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है। औसतन कद-काठी, गले में टंगा चश्मा, कमर में बान्ध रखा बैग, अपनत्व की मुस्कान और मिलनसार व्यक्तित्व की ऊर्जा लिये दमकता चेहरा मेरी आंखों में आज भी कैद है। कैद है कानों में खनकती स्नेहिल आवाज़ और मिलते ही प्रस्फुटित हुए शब्द ' जैसा फोटो में दिखते हो वैसे ही लगते हो', कुछ देर तो मुझे लगा कि सचमुच फोटो और प्रत्यक्ष दिखने में बहुत अंतर होता है। अमूमन तस्वीरें हक़ीक़त बयान नहीं करती, किंतु मुझे अच्छा लगा कि मेरी तस्वीर हक़ीक़त में भी मेरी ही है। खैर.. 'तेताला' से बाहर निकल मुम्बई आए इस इंसान से मैं मिलने का इच्छुक पूरा पढ़ने और टिप्‍पणी देने के लिए यहां क्लिक कीजिएगा

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