प्रिय अविनाशजी, नमस्कार.
नुक्कङ पर लिखने का मोह बना है.
हिन्दीब्लाग्स पर नजीम नकवी ने पर्यावरण मुद्दे पर सुन्दर आलेख लिखा है, उसी पर मेरी यह ट्तिपणी, आप भी देखें.
मुझे बतायें कि मुझे आगे किस प्रकार लिखना चाहिये. वेब साईट वाले के साथ सही सम्बन्ध बनने में गलतफ़हमी की दिक्कत है, क्या आप दिल्ली-सम्पर्कों से मदद करेंगे. कुछ समय इस पर दे सकेंगे?
और हाँ, यह भी बतायें कि आपकी तरह सुन्दर ब्लाग कैसे बनाऊँ!
वाह नजीम नकवी मियाँ, शब्दों में है सत्य.
समझ बने तब ही मिले, ऐसा प्यारा सत्य.
ऐसा प्यारा सत्य, मानसिकता ना बदले.
साढे चारसे ऊपर उठने से ही बदले.
कह साधक कवि साढे चार ही बना समस्या.
दस पर आओ, स्वयं मिटेगी सभी समस्या.
मध्यस्थ दर्शन में है, साढे चार और दस.
समझो प्यारे ध्यानसे, यहीं समस्या बस!
यहीं समस्या बस!, बचेगी प्यारी धरती.
मानव बनता देव, स्वर्ग बन जाये धरती.
यह साधक कवि करता है समग्र का चिन्तन.
साढे चार से दस समझो मध्यस्थ दर्शन.
नक़वी का नगमा
Posted on by Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " in
Labels:
पर्यावरण
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