नुक्कड़ सर्वोत्तम बाल कविता सम्मान : सुधीर सक्सेना 'सुधि'
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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नुक्कड़ सर्वोत्तम बाल कविता सम्मान परिणाम
जिसकी रही प्रतीक्षा
वो दिन भी आ गया
बाल दिवस से अच्छा
कोई अवसर होगा क्या
नुक्कड़ सर्वोत्तम बाल कविता सम्मान
के लिए चयन किया गया है
सुधीर सक्सेना 'सुधि'
का उनकी बाल कविता
ऐसे भी दिन आएं
के लिए
बधाई।
विस्तृत रिपोर्ट बाद में प्रस्तुत की जाएगी।
आप तो कविता का आनंद लीजिए
और सुधीर जी को मन से बधाई दीजिए।
ऐसे भी दिन आएं
जी करता है मित्रो
फिर से ऐसे भी दिन आएं-
डगमग चलता
बचपन लौटे
जामुन तोड़ने जाऊं.
लाठी लेकर माली भागे
लेकिन हाथ न आऊं.
घर पर आ नित
करें शिकायत
पडोसी काका-ताऊ.
मीठी झिड़की दें दादाजी
मां से थप्पड़ खाऊं.
नहीं करेगा अब शैतानी
दादीजी समझाएं.
दिन भर गाल फुलाए बैठूं
अकडू और इतराऊं.
लौटें शाम को पापा तो
टसुए खूब बहाऊँ.
खाएं तरस, पर्स संग लेकर
वे 'बज्जी' ले जाएं.
ऐसे भी दिन आएं!
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सुधीर सक्सेना 'सुधि' जी को बहुत बहुत बधाई .. उनकी ये रचना बहुत सुंदर है .. काश सचमुच बचपन लौट आता !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल रचना है अपना भी मन आ गया कि बचपन फिर से लौट आये। सुधीर सक्सेना जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंSudhir ji ko bahut bahut badhayi..
जवाब देंहटाएंbachpan ke yaadon ko prstut karate hua bahut sundar kavita prstut kiye hai...badhayi..
sudhir ji ko badhaiyan
जवाब देंहटाएंसुधीर जी बधाई.उनकी रचना ने बचपन की याद दिला दी.
जवाब देंहटाएंसुधीर सक्सेना जी को बहुत बहुत बधाई ! सुंदर रचना है!!
जवाब देंहटाएंसुधीर सक्सेना 'सुधि' जी को बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसहज कविता। सुधि जी को बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएं"सुधि" जी को मेरी बधाई !
जवाब देंहटाएंसुधीर भाई बधाई। आपकी यह रचना पढ़कर मुझे भी अपनी ऐसा ही एक रचना याद आ गई है सो आप सबको पढ़वाए देता
जवाब देंहटाएंदिन बचपन के
बचपन के दिन कुछ इस तरह याद आएं
कहीं से टूटे खिलौने जैसे बच्चे ढूंढ लाएं
रेल के खेल की कूकू, खेलना पहाड़-पानी
कभी गिल्ली-डंडा, कभी बेबात शर्त लगाएं
खेल वो आती-पाती, मिट्टी का घर-घूला
बरसती धूप में ,जब तब अंटियां चटकाएं
दादी की कहानी, सरासर गप्प नानी की
जब बाबूजी डांट दें,तो गा लोरी मां सुलाएं
सर्द हवा के मौसम को, बांधकर मफलर से
सूरज की तलाश में, दिन भर दांत बजाएं
गड़गड़ाहट बादलों की,कागज़ की कश्तियां
राह चलते पानी में बेमतलब पैर छपछपाएं
बेबात पेड़ों पर चढ़ना, वो कूदना डालियों पर
फूट जाएं कभी घुटने, तो कभी दांत तोड़ लाएं
नीम की मीठी निबोली,सावन के वो झूले
पेंग लें ऊंची गुईंयां, जम के हम झुलाएं
घुटना टेक ही सही, या खड़े रहें बेंच पर
पन्ने फाड़कर कापी से, हवाई जहाज बनाएं
वो छुप-छुप के देखना, निहारना उसको
रहना मोड़ पर,निकल के जब स्कूल जाएं
काश अगर हो कहीं बैंक अपने बचपन का
चलो उत्साही कुछ और लम्हे निकाल लाएं
*राजेश उत्साही
" सुधीर सक्सेना जी को बहुत बहुत बधाई ! सुंदर रचना है!!
जवाब देंहटाएं----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
अविनाश जी!
जवाब देंहटाएंयह बाल कविता तो निश्चित ही नहीं है। यह तो किसी प्रौढ़ कवि की संस्मरणात्मक कविता ज़्यादा है।
वह चाहता है कि वे दिन फिर से लौट आएँ जो उसने बचपन में जिए थे। बच्चे इस तरह की कामनाएँ कर ही नहीं सकते कि माँ थप्पड़ मारे, पड़ोसी शिकायत करें और बच्चोंको टसुए बहाने पड़ें। यह नकली "बाल-कविता" है। इसलिए बाल कविता पुरस्कार के लायक भी नहीं है।
सादर
अनिल जनविजय
हमेशा ही देखा गया है कि पुरस्कार का मापदंड क्या होता है, समझ में नहीं आता। मगर सम्मान या पुरस्कार आयोजक के उपर ही छोड देना ज्यादा हितकर होता है और उसे ही सर्वमान्य कर लेना भी, अन्यथा फिज़ूल की बहसबाज़ी में टाइमपास होता है।
जवाब देंहटाएंसुधीरजी की कविता से बेहतर तो राजेश उत्साही जी लिख गये। और साथ में जनविजयजी की आवाज़ खाने में कंकर जैसी भी लग रही है। किंतु बहुमत सुधीरजी को बधाई देने का है। सो हम भी उनके पीछे पीछे.....।
आज हम इस रचना को अपनी बेटी को सुनाऐगे। और हाँ सुधीर जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंजी करता है मित्रो
जवाब देंहटाएंफिर से ऐसे भी दिन आएं-
डगमग चलता
बचपन लौटे
जामुन तोड़ने जाऊं.
लाठी लेकर माली भागे
लेकिन हाथ न आऊं.
इस सुंदर रचना के लिये 'सुधि' जी को बहुत बहुत बधाई ओर आप का ओर सुधि जी का धन्यवाद
वाह भई सुधीर जी, बहुत अच्छे...बहुत बहुत बधाई..
जवाब देंहटाएंSUDHEER SAKSENA SUDHI JEE JEE KEE
जवाब देंहटाएंKAVITAA ACHCHHEE LAGEE HAI.UNKO
BADHAEE.ANIL JANVIJAY KEE BAAT SE
MAIN SAHMAT HOON KI YAH BAAL KAVITA
NAHIN.HAR PRAUDH VYAKTI AESE HEE
SWAPN DEKHTA HAI.CHAYAN KARTAAON
KAA NIRNAY HAI,MAANNA HEE HOGAA
SABKO.SUDHEER JEE " PRAUD KAVITA"
KO PURASKRIT KARNE KE LIYE UNHEN
BHEE BADGAAEE.
बात सही है कि आयोजक और चयनकर्त्ताओं का निर्णय ही सिर आंखों पर रखना होता है। सुधीर जी मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं। जब वे बालहंस में सम्पादन कर रहे थे उन दिनों मैं चकमक का सम्पादन कर रहा था। दोनों पत्रिकाएं बच्चों के लिए ही प्रकाशित होती हैं। इसलिए हम दोनों जानते हैं कि बालकविता किसे कहा जाता है। बावजूद इसके मैं भी अनिल जनविजय जी की बात से सहमत हूं कि यह बाल कविता तो कतई नहीं है। और मैंने भी जो कविता टिप्पणी के साथ दी है वह भी बाल कविता नहीं है।
जवाब देंहटाएंनिश्चित तौर पर यह प्रौढ़ कविताएं हैं जो बचपन के बारे में हैं।
मुझे इस बारे में कोई शक नहीं कि सुधीर जी की कविता अच्छी है। यहां सवाल केवल इस प्रतियोगिता के संदर्भ का है।
सुधीर सक्सेना 'सुधि'
जवाब देंहटाएंका उनकी बाल कविता
ऐसे भी दिन आएं
के लिए
बधाई।
इस सम्मान के लिए भाई सुधीर सक्सेना 'सुधि'
जवाब देंहटाएंजी को बधाई!
सुधीर सक्सेना 'सुधि' जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंअविनाश जी ने उल्लू को धोका दे दिया उआँ उआँ
प्रिय अविनाश जी,बाल दिवस पर -सुधि-जीकी कविता को पुरुस्कृत कर आप ने अच्छा कम किया है.इस रचना के लिए कवि को बधाई.बाल कविता होने पर जो संदेह श्री जनविजय जी ने व्यक्त किया और जिसकी पुष्टि श्री राजेश उत्साही जी ने की है उसे भी खारिज नहीं किया जा सकता है.ऐसी स्मृतियाँ बालमन को भी छूती हैं .,इस कारन यह कविता उनकी धरोहर भी है इसे नहीं भुलाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंभाव इतने स्पष्ट हैं कि वे कल्पना के अनंत गर्भ में लीन हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंsudhir ji ko dher saari badhaaiyaan!!!
जवाब देंहटाएंकई साथियों की टिप्पणियों को देखा, कुछ इस सम्मान से सहमत नहीं है !!!जजों का फैसला भी शिरोधार्य होता है ! पर जैसा की कविता मैं बचपण में जाने की उत्कंठा कवी के मन में है !!! बहुत ही सुन्दर है ! बच्चों को अगर सुनाई जाए तो बच्चे भी बचपन का महत्व समझ पाएंगे, पर क्या बच्चे इस कविता को कहीं गा सकते हैं??? इसमे समझ है, ज्ञान है, बच्चों के मन की भावना नहीं है, किसी बच्चे की सोच नहीं है| कविता निश्चित ही अनुपम है ! ये हमारे मन को इसलिए छूती हैं क्यूंकि सभी अपने बचपन के खोये दिनों की याद लिए बैठे हैं | लेकिन अगर एक बच्चा कविता लिखता तो वो ऐसे हरगिज नहीं लिखता इसके विपरीत वो बड़े होना, पापा के जुटे पहनना, माँ का बाप का सहारा बनाना इस बारे में ही लिखता!!! शेष जो भी है !! जजों की कुर्शी सर्वोच्च है!!!
जवाब देंहटाएंSudheer ji na bachpan wale jamun ke ped pe chadha diya..!
जवाब देंहटाएंhttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.com