“मेरे मुंह में खाक्”” मुश्ताक अहमद यूसुफी के उपन्यास का हिन्दी अनुवाद वीरेन्द्र जैन
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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और भी बहुत कुछ,
वीरेन्द्र जैन
मुश्ताक अहमद यूसुफी की किताब - मेरे मुंह में खाक- के हिन्दी में प्रकाशित होने की सूचना के साथ ही इस बारे में कोई दूसरा विचार नहीं आया सिवाय इसके कि इसे खरीदना है और पढ़ना है। यह इसलिये कि इससे पहले मैं उनकी किताब- आबे गुम- का अनुवाद -खोया पानी के अंश पहले लफ्ज़ में और फिर पुस्तकाकार पढ कर मुग्ध हो चुका था। -राग दरबारी- के बाद यह दूसरी पुस्तक थी जिसके पढने का आग्रह मैं सैकड़ों दूसरे लोगों से कर चुका था। एक बेहद अच्छे शायर तुफैल चतुर्वेदी अपनी शायरी के साथ साथ इस बात के लिये भी सराहे जायेंगे कि उन्होंने न मुश्ताक अहमद यूसुफी की किताबों का अनुवाद किया अपितु उसे प्रकाशित करके हिन्दी पाठकों तक पहुंचाया। मुझे ऐसा कहना चाहिये फिर भी मैं नहीं कहता कि यूसुफीजी भारतीय उपमहाद्वीप के सर्वश्रेष्ठ हास्य लेखक हैं पर इतना ज़रूर कह सकता हूं कि हास्य व्यंग्य की असंख्य पुस्तकें पढ जाने के बाद भी मैंने इससे बेहतर कोई भी हास्य पुस्तक नहीं पढी। पुस्तक का फ्लेप मैटर सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार आलोक पुराणिक ने और भूमिका डा. ज्ञान चतुर्वेदी ने पूरा पढ़ने और टिप्पणी देने के लिए क्लिक करें