गुलज़ार जी और त्रिवेणी

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  • आकाँक्षा गर्ग ( Akanksha Garg )
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  • गुलज़ार जी के बारे में क्या कहे जब भी गुलज़ार जी के बारे में कुछ कहने का सोचिये सबसे पहला ख्याल आता है त्रिवेणी का | जिस दिन पहली बार त्रिवेणी सुनी उस दिन से त्रिवेणी के और गुलज़ार जी के फैन हो गए | चंद लफ्जों में पूरी बात कह जाना वो भी इतनी सहजता से और सुगमता से,  ऐसा जादू इतने कम शब्दों में जगाना इतना आसान भी तो नहीं |

    आखिर ये त्रिवेणी है क्या तो आइये जानते हैं क्या है ये त्रिवेणी गुलज़ार जी के शब्दों में ही -
    "  शुरू शुरू में जब ये फॉर्म बनाई थी तो पता नहीं था की ये किस संगम तक पहुँचेगी , त्रिवेणी नाम इस लिए दिया था क्योंकि पहले दो मिसरे गंगा जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख्याल  एक शेर को मुकम्मिल करते हैं लेकिन इन दो धारों के नीचे एक और नदी है सरस्वती जो गुप्त है नज़र नहीं आती त्रिवेणी का काम सरस्वती को दिखाना ही है  तीसरा मिश्रा पहले दो मिस्रो में ही कहीं गुप्त है छुपा हुआ है  |  "
    दो मिसरों में बुना हुआ एक बहुत ही खूबसूरत सा ख़याल और फिर तीसरे मिसरे  का आकर उस खयाल को एक नया ही नजरिया दे देना , यही वो जादू है जो हर त्रिवेणी पढने वाले के मुझ से वाह कहलवाए बिना नहीं रह सकता |
    अगर कोई मुझसे पूछे मेरी पसंदीदा त्रिवेणी कौनसी है  तो शायद कह पाना मुश्किल होगा क्योंकि सभी एक से बढ़कर एक, लाज़वाब
    तो एक छोटी सी कोशिश कर रही हूँ अपनी सभी पसंदीदा त्रिवेणी यहाँ एकत्रित करने की जिससे शायद जो लोग अनजान हैं अब भी इनसे वो भी इन्हें पढ़ कर इनके फैन बन जाएँ |




    सब पे आती है , सबकी बारी से
    मौत मुंसिफ है कमोबेश नहीं

    जिंदगी सब पे क्यों नहीं आती !



    कोई चादर की तरह खींचे चला जाता है दरिया
    कौन सोया है तले इसके जिसे ढूंढ रहे हैं

    डूबने वाले को भी चैन से सोने नहीं देते !



    हाथ मिला कर देखा और कुछ सोच के मेरा नाम लिया
    जैसे ये सर्वार्क किस नोवल पे पहले देखा है

    रिश्ते कुछ बंद किताबों में ही अच्छे लगते हैं !



    जिंदगी क्या है जानने के लिए
    जिंदा रहना बहुत ज़रूरी है

    आज तक कोई भी रहा तो नहीं !



    जुल्फ में कुछ यूँ चमक रही है बूँद
    जैसे बेरी में एक तनहा जुगनू

    क्या बुरा है जो छत टपकती है



    पर्चियां बाँट रही हैं गलियों में
    अपने कातिल का इंतेखाब करो

    वक़्त ये सख्त है चुनाव का !



    सामने आए मेरे देखा मुझे बात भी की
    मुस्कराए भी ,पुरानी किसी पहचान की खातिर

    कल का अखबार था ,बस देख लिया रख भी दिया !



    आओ सारे पहन लें आईने
    सारे देखेंगे अपना ही चेहरा

    सबको सारे हंसी लगेंगे यहाँ !



    मैं रहता इस तरफ़ हूँ यार की दीवार के लेकिन
    मेरा साया अभी दीवार के उस पार गिरता है

    बड़ी कच्ची सरहद एक अपने जिस्मों -जां की है !



    उम्र के खेल में एक तरफ़ है ये रस्साकशी
    इक सिरा मुझ को दिया होता तो इक बात थी

    मुझसे तगड़ा भी है और सामने आता भी नहीं !



    कुछ अफताब और उडे कायनात में
    मैं आसमान की जटाएं खोल रहा था

    वह तौलिये से गीले बाल छांट रही थी !

    त्रिवेनियाँ - गुलज़ार जी
    इमेज सोर्स - गूगल
     इस माला के कुछ और मोती ,  कुछ और त्रिवेणी प्रकाम्या पर हैं उन्हें पढने के लिए यहाँ  क्लिक कीजिये 

    13 टिप्‍पणियां:

    1. वाह वाह वाह वाह .... दिल खुश हो गया।

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    2. एक तो त्रिवेणी के बारे में इतना बढिया जानकारी, बकलम गुलज़ार दे, जिससे मज़ा ही आ गया.

      दूसरे, इतने चुन चुन कर मोती परोस दिये आपने. मस्त कर दिया.

      यूंही जारी रहे ये सफ़र...

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    3. गुलजार जी की त्रिवेणी की वेणी अच्‍छी लगी। अब तो हमें भी प्रयास करना होगा। विधा भी अच्‍छी लगी और सुधा भी। आकांक्षा ने एक नई ललक जगा दी है लिखने की। जरूर वे भी ऐसा लिखती होंगी। मानस मुदित हुआ।

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    4. मैं कुछ और त्रिवेणी की मांग करता हूं..

      बहुत बढ़िया..

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    5. majaa aayaa aur har sher par jo chatkare liye unkaa aanand aa aagayaa

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    6. waah waah.........bahut hi sundar.
      kuch aur triveniyan sunaiyega.

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    7. शुक्रिया इस यादगार पोस्ट के लिए

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    8. Dhanywaaad aap sabhi ne mera itna utsaah verdhan kiya uska shukriya
      vandana ji PD ji kuch aur triveniya humne post ki hain blog me
      sabse khaas baat yah hai ki avinash ji to shayad antaryaami ho gaye hain :D bina padhe bina jaane kaise jaan liya ki hum triveni likhte hain sach kahe to ye meri sabse fav hobby hai jab bhi waqt milta hai koi triveni avashya likhte hain badhai avinash ji logo ka mind padhne ki art seekhne ke liye :D

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
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