हम लोग अक्सर देखते है कि पैगम्बरों और मसीहाओं द्वारा प्रचारित धर्मों में कितनी अधिक भिन्नता दिखाई पडती है ! कईं बार तो विस्मय होने लगता है कि जीवन-मृ्त्यु,लोक परलोक, समाज या सृ्ष्टि सम्बंधित उनकी विचारधाराओं में इतना अधिक मतभेद क्यूं हैं । जो अपने को ईश्वर का दूत कहते हैं ओर जिनकों इस बात का विश्वास है कि वो जो कुछ प्रचारित रहे हैं, वह प्रभु की प्रेरणा से हो रहा है---तो फिर उनमें विचारैक्य क्यूँ नहीं ? । एक ईश्वर का दूत ऎसी बातें कहकर दुनिया से विदा ले लेता है तो दूसरा दूत कुछ दूसरी ही बातों का प्रचार करके । सत्य अनेक नहीं हो सकते । वह तो सदैव एक ही रहेगा । विभिन्न रूपों में उसकी अनुभूति अवश्य होती है,ओर वह किसी न किसी रूप में हो ही रही है ।
तो हम देखते हैं कि न तो कोई वैज्ञानिक,न दार्शनिक ओर न ही कोई पैगम्बर,मसीहा इत्यादि ही जीवन के सत्य को उजागर कर पाता हैं । मेरी दृ्ष्टि में तो पैगम्बर,मसीहाओं नें तो भ्रमपूर्ण ज्ञान के प्रचार के साथ साथ ओर भी बहुत सारी गलतियाँ की हैं । सामाजिक अशान्ती को दूर करके मानवी समाज को सुखी एवं समृ्द्ध करने के लिए उन लोगों नें जिन उपदेशों का प्रचार किया,उनका क्या पूरा पढ़ने और टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक करें
मेरा धर्म महान....तुम्हारा धर्म बकवास!!!
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