बापू का जवाब नयी पीढ़ी के नाम (अविनाश वाचस्‍पति)

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • प्‍यारे चेतन,

    एक भगत तो चेतन है । यह जानकर अच्‍छा लगा और इतना चेतन कि उसने मुझे ई मेल के इस क्रांतिकारी दौर में चिट्ठी लिखकर नि:संदेह एक क्रांतिकारी कार्य ही किया है। यह भारत की चेतनता है। भगत भी हो और चेतन भी हो – ऐसा अपवाद ही होता है और इसी अपवाद के कारण ई मेल के दौर में पत्र लिखने का साहस किया है। ओबामा ने मेरे साथ डिनर की ख्‍वाहिश जाहिर की तो उसे नोबेल का हकदार मान लिया गया और शांति का नोबेल उसके नाम कर भी दिया गया। इस चेतन भगत ने मुझे सीधे पत्र लिखकर कलम की ताकत के अहसास को जीवंतता प्रदान की है इसलिए इस भगत को नोबेल पुरस्‍कार मिलना चाहिए, शांति का संपन्‍न हो गया है तो सादगी का ही दो, जरूर दो। ई मेल के युग में पत्र लिखना सादगी तो है ही, चिट्ठी लिखने की परंपरा से भी प्रेम का द्योतक है।

    मेरे पास यह अखबार भास्‍कर आज ही पहुंचा है और मैं इसका जवाब नुक्‍कड़ ब्‍लॉग पर इसलिए दे रहा हूं क्‍योंकि इसे जानने के अधिकारी लोगों तक बात पहुंचाने के लिए नुक्‍कड़ ही मुझे जंचा है और इसी ब्‍लॉग के मॉडरेटर अविनाश ने अपने नाम के ब्‍लॉग अविनाश वाचस्‍पति पर हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत की (गर महात्‍मा गांधी ने ब्‍लॉग बनाया होता) प्रतिक्रिया जानी थी। मैं बतलाना चाहता हूं कि मैं अपने हिन्‍दी ब्‍लॉग का नाम बापू ही रखता, राष्‍ट्रपिता नहीं रखता। सहज और सादगी का पर्याय – यह सूत्र वाक्‍य होता मेरे ब्‍लॉग का। बिना लाग लपेट के अपनी बात अपनी मजबूती से कहने वाला।

    मैं भी हाड़ मांस का ही इंसान था और वही नियम मेरे पर भी लागू होते हैं। 140 बरस का मैं कैसे हो सकता हूं। इतना झूठ, जबकि यह मीठा झूठ है जबकि मैं बार बार कहता रहा हूं मुझे झूठ सख्‍त नापसंद है परंतु तुम कल्‍पनाओं के सहारे मुझे झूठ से बरगलाना चाह रहे थे। जिस प्रकार जन्‍मदिन पर शुभकामनाओं के जरिए एक भ्रम पैदा किया जाता है कि तुम जिओ हजारों साल और साल के दिन हों पचास हजार। खैर ...

    बैंक के हर नोट पर मेरी तस्‍वीर तो छापी है जबकि खोट का जन्‍म ही नोट से होता है। इसलिए तुम मुझे कभी भुला न पाओगे। वो खोट अपने अतिवादी स्‍वरूप में तब आता है जब नकली बनाया जाता है। वैसे बिना बनाये भी नकली स्विस बैंकों में ढेर लगाना भी खोट ही है। मेरी मूर्तियों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है जिस तरह से मेरी अच्‍छी बातों की हो रही है बिल्‍कुल उसी तरह। प्रतिष्ठित सड़कों का नाम मेरे नाम से होने पर ऐसा तो नहीं होता कि उनमें गड्ढे नहीं होते या नहीं होतीं दुर्घटनायें। जब यही सब होना है तो किसी को मेरे नाम से क्‍या लेना देना है। राजनेता मेरे अनुरूप खुद को ढालने की कोई कोशिश नहीं करते बल्कि मुझे ही उन्‍होंने अपना वोट बैंक बनाने के लिए सदा ही नये नये रूपों में ढाला है।

    मेरा जो अनुगमन आप बतला रहे हैं वो और कुछ नहीं, निरा स्‍वार्थ सिद्धि का साधन है। मेरे अनुगमन से अच्‍छा मानवता की पूजा करना है। वोट बैंक हथियाने का जरिया है। इसी प्रकार मुन्‍नाभाई एमबीबीएस में गांधीगिरी दिखलाकर दर्शक हथियाए गए थे। जहां तक मेरे नीचे आने की बात है तो चाहे मैं नीचे आकर सदा ही रहूं। तो मुझ पर बहस वगैरह तो खूब होंगी जिनमें मुझे पूरी बेदर्दी से सरदर्द होने तक घसीटा जाएगा परन्‍तु इसे चैनलों के लिए एक सनसनीखेज खबर से अधिक कोई स्‍थान नहीं मिलेगा और न ही कोई मेरे आने से सीखना चाहेगा। आज सीखने वाले नहीं है, सब सिखाने वाले हैं – वो चाहे युवा पीढ़ी हो, बचपन हो या ... और बुजुर्गों के पास तो सनातन सिखाने का अधिकार ही है। मैं तो अब भी जोरदार तरीके से कह रहा हूं कि सदा अपने दुश्‍मनों को प्‍यार करो जिससे वो तुम्‍हारे ऐसे मित्र बनें जो मित्रता की मिसाल हों।

    तुमने यह माना तो है कि युवाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है और वे इस्‍तेमाल होने के लिए ही बने हैं। इन्‍हें बचाने के नाम पर तो मैं भी फेल हूं और इसे स्‍वीकारने में मुझे कोई शर्म महसूस नहीं होती। ये अपना भुला बुरा नहीं जानते हैं और न जानना ही चाहते हैं। इन्‍हें अपने से अधिक कोई समझदार नहीं लगता है। अधिक विस्‍तार में न जाते हुए मैं अपनी बात यहीं संपन्‍न कर रहा हूं अब यह कोई प्रवचन तो है नहीं जो खूब सारा और घंटों दिया जाये दूसरा किसी के पास समय नहीं है इतना सुनने का, और सच बतलाऊं तो उन्‍हें जरूरत भी नहीं है। बीच बीच में उनका मोबाइल भी बजेगा। मेरे जितने लेख धरती पर मौजूद हैं वे ही बहुत ही हैं अगर सही से अमल में लाए जाएं, माने जाएं और अधिक की जरूरत नहीं है। मैं कह चुका हूं कि जो जागते हुए सोने का बहाना कर रहा है उसे नहीं जगाया जा सकता है। जो सो रहा है उसे जगाना तो संभव है। तो मुझे तो सब सोने का बहाना ही करते दिखलाई दे रहे हैं।

    हे राम।

    अपनी समूची आस्‍थाओं के साथ

    तुम्‍हारा बापू

    25 टिप्‍पणियां:

    1. अंगरेजी के युवा उपन्यास कार का हिन्दी में व्यंग्य और फोर तत्काल हुई गाँधीगिरी पसंद आयी। धन्यवाद अविनाश जी :)

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    2. गांधी रूप में अविनाश जी आपके विचार पढ़ने को मिले अच्छा लगा। अब उसका पत्र हिन्दी में भी पढ़ना है, इंग्लिश में तो पहले पढ़ लिया था। आपकी मेहरबानी से। हिन्दी में पढ़कर कुछ और तस्सली मिलेगी।

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    3. कह चुका हूं कि जो जागते हुए सोने का बहाना कर रहा है उसे नहीं जगाया जा सकता है।

      ये बात सोलह आने सच्ची है वैसे दुबारा से विस्तार में लिखूँगा गाँधी जी के बारे में।

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    4. गांधी जी भी ऊपर बेठे पढ रहे ओगे तो जरुर खुश होगे,
      धन्यवाद

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    5. लगता है आज भी मानवता जीवित है।
      तभी तो बापू का नामलेवा अभी भी हैं।
      बधाई!

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    6. जब सभी लोग जड हो गये तो चेतन कोई भगत होकर बापू को याद तो कर रहा है. मैने पूरा लेख भास्कर पर उसी दिन पढा था ये जानकर तो बढिया लगा कि उन्होने अपनी चेतनता को अन्ग्रेजी लेखन से परे हटकर थोडा देश की चिन्ताओ से जोडा.

      भाई अविनाश जी के लेखन का ये आनन्द है कि वो जिस महापुरुष की तरफ़ से बात करे उस्की आत्मा मे प्रवेश कर जते है और मौका मिलने पर अप्नी बात ( व्यन्ग की ) कहने के लिये भी बाहर निकल आते है.

      बढिया आलेख
      पढकर मन खुश हुआ

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    7. दोनो ही व्यंग्य उत्तम हैं । अफसोस यह कि यह व्यंग्य मे है।

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    8. मम्म्म्म्म्म्म सीधे सीधे शब्दो मे मुझे लगता है कि वक्त है कि अपने आपको, अपनी कमी और योग्यता दोनो को अच्छी तरह से समझकर कुछ किया जाये तो ही कुछ अच्छा हो सकेगा। कल रास्ते मे आते हुए एक होर्डिंग पर पढने को मिला...

      If Country is right, stay with it.
      If it is wrong, make it right.

      आज कितनी जरूरत है इसकी...

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    9. जब तक सूरज चाँद रहेगा बापू तेरा नाम रहेगा ...इस देश में बापूजी को विस्मृत करना मुश्किल है ...

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    10. लोग नकल तो ज़रूर करते है पर हक़ीक़त में गाँधी जी के विचार में ढालना इतना आसान नही..बहुत बढ़िया दर्शाया गया है..
      सुंदर व्यंग..बधाई

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    11. चेतन जी का और आपका दोनों लेख प्रभावी लगे

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    12. बापू जी की कोई बात हमने मानी हो या नहीं पता नहीं .... पर एक बात जरुर मानी है - दुश्मनों से प्यार ... चीन से, पाकिस्तान से , उग्रवादियों से, नक्सलों से, अपराधियों से तो अब तक हम प्यार ही करते आ रहे हैं .... आगे तो हमलोग देख ही रहे हैं ..

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    13. इतना ही कहेंगे "हे राम" "हे राम" "हे राम"
      गाँधी जी तो शायद एक बार ही कह कर चले गए थे?????? (हे राम कहने पर भी विवाद हुआ था)

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    14. हो कहां बापू...
      आज पूरा भारत यही कह रहा है...

      जय हिंद...

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    15. " behad hi khubsurat post ....gandhiji bahut badhiya "

      ----- eksacchai { AAWAZ }

      http://eksacchai.blogspot.com

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    16. मुझे तो यह सब गांधी के विचारों की ही तार्किक परिणिति लगता है।
      वैसे विस्तार से मैने समयांतर के इस अंक में लिखा है।

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    17. बढिया आलेख
      पढकर मन खुश हुआ

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    18. bahut khoob/
      gaandhiji ke sandarbh me bahut si baate likhi aour padhhi jaati rahi he, bechare gaandhiji ko aaj bhi ham nahi chhhodate..fir kese chhod sakte he jab unake aadarsh par chalne ki baat karte he, kintu mera maananaa he saare dour apne hisaab se alag hote he, hame apana jeevan tamaam paristhiti ke anusaar chalana hota he, ab itihaas kee baate, aour usake aadhaar par hamare vichaar, is naye yug me..sirf shbdo ke maayaajaal me6 vichaarak ko faans saktaa he, kintu arth kuchh nahi nikal pata..arth ke liye hame peda karnaa hogaa aaj kaa gandhi, yaa aaj kaa gaandhi hame hi bananaa hogaa/ jitani baate ham likhte he, use savistaar apane jeevan me dhhal kar dishaa dena hamaaraa farz ho jaanaa chahiye...avinashji, bahut umda vichaar he aapke.., me thoda krantikaark vichaardhaaraa ka hu, so abhi pahle to aour padhhunga....

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    19. आपने तो अपनी बात गांधीजी के मुँह से कहलवा दी ।
      अच्छा व्यंग है ।

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    20. Bapu ji chale gaye par sahityakaron nee unhen jinda rakha hai...rajneta to bas 2 oct aur shahid diwas ke din hi yad rakhte hain.

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    21. मैं भारतीय हूं। जिन नोटों पर गांधी जी की फोटो छपी है उनसे प्‍यार करता हूं। मैं नोटों को बटोरने के लिए अपनी निष्‍ठा और ईमानदारी को ताक पर रख दूंगा। सारे नोटों यानी महात्‍मा गांधी को स्विटरजलैंड के बैंकों में पहुंचाकर दम लूंगा।

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    22. प्रिय,अविनाश जी,व्यंग्य में जो कुछ कहा गया है,हकीकत से इतना घुल मिल गया है कि ज़मीनी व्यंग्य बन गया है.चेतन भगत और अविनाश वाचस्पति को हार्दिक बधाई.

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    23. अविनाश जी,

      आज के युग में गाँधी बनकर जो कहा है वो आज के सन्दर्भ में satya है और इसी लिए वो व्यंग्य है. गाँधी को हम मरने नहीं देंगे अपनी मांगों के लिए, सत्याग्रह और अनशन करके उन्हें ही तो श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. बस उसका रूप बदल गया है.

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
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