"बरखा रानी ! आओ ना, आ जाओना, इतना भी तरसाओ ना, ...के इंतज़ार है एक 'शम्म' को तुम्हारा...के इंतज़ार है, इस क़ुदरत के हर पौधे, हर बूटेको, तुम्हारा... के तुमबिन सरजन हार कौन है इनका?के तुमबिन पालन हार कौन है इनका?"
चंद रोज़ पूर्व, अपने "बागवानी" ब्लॉग पे कुछ लिखा तथा अंत में "बरखा रानी से " ये दरख्वास्त की...उसी शाम वो हाज़िर हो गयीं...माहौल धुला और क़ुदरत ने एक पन्ने का जामा पहना !
आमंत्रण है आप सभीको उस ब्लॉग पे...ये ब्लॉग, केवल मालूमात नही है, ज़िंदगी के प्रती, यादों से घिरा नज़रिया है...
एक साल पहले " बागवानी की एक शाम " ये आलेख लिखा था..इत्तेफाक़न वो पर्यावरण दिवस था..अन्य पौधों के अलावा, एक चम्पे की डाल भी लगाई थी, जिसपे पहली बार ४/५ दिन पूर्व फूल खिले !
इन दो शामों में एक दिलको कचोट ने वाला फ़र्क़ है...जिसे आप मेरे आलेख मे ही पढ़ें...जो,
http://shamasansmaran.blogspot.com
इस ब्लॉग पेभी डाल दिया...डाले बिना रहा नही गया....
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
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चलो अच्छा है, पोस्ट आयी, बारिश आई.
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