बरखा दत्त की फिल्म के बहाने जरा सोचिए


विजय दिवस के नाम पर पर देश के अधिकांश हिंदी चैनल भले ही लोगों को शर्तिया तौर पर भावुक करने में जुटे हों, हम तुम्हें आज रुला कर ही छोड़ेगे के अंदाज़ में भाषा और शब्दों का जबरन इस्तेमाल कर रहे हों, लेकिन इन सबसे अलग NDTV24×7 पर बरखा दत्त की ओर से पेश की गयी, लगभग चालीस मिनट की फिल्म REMEMBERANCE KARGIL TEN YEARS LATER ये साबित कर देती है कि कम शब्दों के जरिये भी हम संवेदना के स्तर पर मज़बूती से बात कर सकते हैं। ऐसे मौके पर हिंदी के तमाम न्यूज़ चैनल्स, जहां टेलीविजन को टेलीविजन रहने ही नहीं देना चाहते, वो उसे रेडियो में कन्वर्ट करने पर आमादा हो जाते हैं, वहीं बरखा दत्त इस फिल्म के जरिये टेलीविज़न की ताक़त को रीडिफाइन करती नज़र आती हैं। अभिव्यक्ति के स्तर पर ये पूरी फिल्म इस थ्योरी पर बनी है कि SOME MOMENTS ARE WORDLESS। कुछ ऐसे ही मौक़े होते हैं, जहां कुछ भी कहना नहीं होता, उसके लिए कुछ शब्द भी नहीं होते, गहराई तक जाने के लिए बस हमें उससे होकर गुज़र जाना भर होता है। टेलीविज़न की ज़रूरत और ताक़त यहीं समझ में आती है।

फिल्म की शुरुआत बहुत ही सादे और स्वाभाविक तरीके से होती है। बरखा दत्त करगिल के उन इलाक़ों में पहुंचती है, जहां से आज से ठीक दस साल पहले 26 साल की उम्र में होकर वो गुजरीं, करगिल युद्ध को कवर किया और देशभर में इतनी पॉपुलर जर्नलिस्ट बनी कि बॉलीवुड ने इसकी छवि का इस्तेमाल करते हुए लक्ष्य जैसी फिल्म बनायी। पूरा लेख मीडिया ख़बर.कॉम पर। READ MORE

7 टिप्‍पणियां:

  1. Lazawab Mahoday. Bahut Achchha Lekh hai Apka. Padhkar bahut achchha laga.
    Regards
    Ram Krishna

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  2. यह प्रोग्राम देखा था और बहुत अच्छा लगा था ..वाकई इस ने अलग ढंग से प्रभावित किया है

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  3. किसी चीज को प्रस्तुत करना और किसी चीज को अच्छे से प्रस्तुत करने में अंतर है...शायद यहीं पत्रकारिता उजागर हो जाती है।

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  4. कार्यक्रम तो नहीं देख पाया लेकिन आपके जरिए जान कर अच्छा लगा

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