प्रभाष जोशी भन्नाए हुए हैं। उनका दर्द यह है कि पत्रकारिता में सरोकार समाप्त हो रहे हैं। हर कोई बाजार की भेंट चढ़ गया है। क्या मालिक और क्या संपादक, सबके सब बाजारवाद के शिकार। कभी देश चलानेवाले नेताओं को मीडिया चलाता था। आज, मीडिया राजनेताओं से खबरों के बदले उनसे पैसे वसूलने लगा हैं। देश भर में दिग्गज पत्रकार कहे जाने वाले प्रभाष जोशी बहुत आहत हैं। अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा, जैसा चल रहा है, तो सरोकारों को समझने वाले लोग मीडिया में ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेंगे। हालात वैसे ही होंगे, जैसे राजनीति के हैं। वहां भी सरोकार खत्म हो रहे हैं। पद और अपने कद के लिए कोई भी, कुछ करने को तैयार है।
यह विकास की गति के अचानक ही बहुत तेज हो जाने का परिणाम है। अपना मानना है कि भारत में अगर संचार से साधनों का बेतहाशा विस्तार नहीं हुआ होता, तो आज जो हम यह, भारतीय मीडिया का विराट स्वरूप देख रहे हैं, यह सपनों के पार की बात होती। पूरा लेख मीडिया ख़बर.कॉम पर । यहाँ क्लिक करें।
मीडिया का भी कबाड़ा, राजनीति और फिल्मों की तरह
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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हर कोई बिकाऊ है यहां, अखबार और पत्रकार हैं तो क्या गलत है.
जवाब देंहटाएंजब तक , लोकतंत्र में जन जागृती नही होती ...जनता , अपना किरदार नही निभाती , ये सब होगा ...सिर्फ़ हमारे देश में भ्रष्टाचार है ऐसा नही ...इंसानी फितरत दुनियामे सब जगह एक ही है ...यहाँ लोक संख्या के अधिक्य के कारण , अधिक सवाल उठते हैं ...
जवाब देंहटाएंhttp://lalitlekh.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
लालच और लोभ हर जगह व्याप्त हो गया है और मीडिया भी इसका अपवाद नहीं है। कभी पत्रकारिता अपनी निर्भीकता के लिए गर्व करती थी; अब बडे़ सेठों का व्यवसाय बनी तो सच्चाई और ईमानदारी अलविदा हुई॥
जवाब देंहटाएंkyon bhai..........
जवाब देंहटाएंaadarneey prabhaashji ko kya biknaa nahin aata ?
mujhe hairaani hai...........
बात तो आप सही कह रहे हैँ
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