काफी समय पहले, दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेजों की काव्य प्रतियोगिताओं में एक युवक कई मशहूर कवियों की कविताओं की पैरोडी सुनाया करता था. |
किस्सा यूं था कि एक सुंदर कन्या मकान के छज्जे पर खड़ी होकर अपने लंबे-लंबे काले केश सुखा रही है कि तभी उस सड़क से कई मशहूर कवि गुज़रते हुए ये कल्पना करते हैं कि काश उस कन्या का अगर पांव फिसल जाए तो वे उसे कैसे अपने हाथों में संभाल कर नीचे गिरने से बचा लें…
इसी विचार के चलते वे सभी अपनी-अपनी शैली की कविता में जो सोचते हैं, वही बहुत सुंदर पैरोडी के रूप में हमें सुनने को मिलता था. अन्य कवियों के अलावा एक पैरोडी ओम प्रकाश आदित्य जी की शौर्य कविता की भी होती थी. उसका अंतिम पद कुछ इस तरह हुआ करता था:
खंड खंड खंडिनी
प्रचंड चंड चंडिनी
आन बान शान से
तुम गिरो मकान से
लोकप्रिय दिवंगत आत्मा को आदरपू्र्वक स्नेहांजली.
-काजल कुमार
आदित्य जी को जितनी बार सुना
जवाब देंहटाएंमन से सुना
उनसे जितनी बार मिला
मन से मिला
चले गए वे
रह गया मैं अकेला
पर मन यहीं पर है
साथ मेरे।
पितामह ओम प्रकाश आदित्य जी को भावभिनी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देता हूँ। उनके बारे में जानकारी सुलभ कराकर काजल कुमार जी ने बड़ा नेक काम किया है।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि उन्हें ऐसा लगा जैसे उनकी आवाज ओर मुस्कान दोनों सामने है.....
जवाब देंहटाएंaaditya jee ko humari or se bhi shrddhajali
जवाब देंहटाएंAditya Ji ko kai baar suna hai .Unka itni jaldi chala jana Bahut dukh de gaya . Ishwar unki Aatma ko shanti pradan kare .
जवाब देंहटाएंKisalaya
आदित्य जी मेरे भी प्रिय कवी थे ,श्रद्धांजलि अर्पित है
जवाब देंहटाएंबहुत ही दुखद. ओमप्रकाश आदित्य जी को हमारी श्रद्धांजलि .
जवाब देंहटाएंओमप्रकाश आदित्य उन विरले मच के मास्टर कवियों में से थे जिन्होने छन्द को निभाया और एक मात्रा भी इधर से उधर नही हुई, हम तो उनसे अभी सीख ही रहे थे कि स्कूल बन्द हो गया.
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि
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