कवियों से मौत की आंख मिचौली अब भी जारी है

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  • अविनाश वाचस्पति
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    दैनिक हरिभूमि में मदन बालियान की खबर ‘मौत को भा गई थी ओमप्रकाश आदित्य की हंसी’ मन में कई प्रश्न पैदा करती है। खबर के अनुसार चिंताजनक बात यह है कि घायल कवि ओम व्यास की हालत भी खतरे से बाहर नहीं है और अभी मेरी पोस्‍ट मौत कवि सम्‍मेलन सुन रही थीपर पंकज सुबीर की टिप्पणी ‘अभी कुछ देर पहले सुकवि और मंच के कुशल संचालक श्री संदीप शर्मा जी मेरे पास से उठकर गये हैं । वे ओम व्यास जी को देखकर लौट रहे थे । संदीप जी की भाव भंगिमा से लगा कि ईश्वर एक और अनर्थ करने के मूड में है । ईश्वर बस कर अपनी अपनी निष्ठुरता ।‘

    खबर के अनुसार हादसे एकमात्र गवाह वीर रस के कवि विनीत चौहान हादसों की निरंतरता को बतलाते हुए कहते हैं कि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार की रात से ही विदिशा कवि सम्मेलन से मौत आधा दर्जन से अधिक लोगों के पीछे लग गई थी। उन्होंने बतलाया कि कवि सम्मेलन से विदा लेते ही एक मंत्री की गाड़ी पंक्चर हो गई। आई जी पवन जैन की गाड़ी भी दुर्घटनाग्रस्त हुई।

    इसके अलावा जिस गाड़ी में विनीत चौहान, देवल आशीष और मदन मोहन सवार थे, वह भी एक ट्रक के नीचे घुस गई। भोपाल के होटल में ठहरने जा रहे कवियों की सबसे पहली कार में ओमप्रकाश आदित्य अपने साथियों के साथ सवार थे।
    दूसरी कार में अशोक चक्रधर अपनी बेटी के साथ वहीं से निकले। चक्रधर की बेटी ने सड़क पर क्षतिग्रस्त कार देख आशंका जताई कि कहीं यह कवियों की कार तो नहीं लेकिन अशोक बात टालकर होटल चले गए। इसके बाद विनीत चौहान, मदन मोहन तोमर और देवल आशीष मार्ग से गुजरे तो हादसा देखकर ठहर गए।

    बकौल विनीत हादसे का मंजर देख एक बारगी उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई। कार से सबसे पहले लाड सिंह गुर्जर को निकाला। उसके बाद क्रमश: फोटोग्राफर विजय, घायल ओम व्यास, ड्राइवर, नीरज पुरी तथा आदित्य को निकाला। नीरज की सांसें चल रही थी तथा उन्हें न बचा पाने का मलाल विनीत को ताउम्र रहेगा। एक घंटे तक घायलों और मृतकों के बीच जिंदगी की तलाश में जद्दोजहद चलती रही।

    वैसे मेरा मानना है कि मौत और जिंदगी की जंग एक सनातन सत्‍य है और मौत सदा जिंदगी पर भारी रहेगी परन्‍तु जिंदगी जिंदादिली का नाम है और जिंदादिली पर न तो मौत और न मौत का भय कभी भारी हो सकता है।

    29 टिप्‍पणियां:

    1. बेशक कुछ घावोम को भरा नहीम जा सकता फिर भी जो सामने है उसे ज़िन्दादिली से ही जीया जा सकता है नीरज जी को विनम्र शर्धाँजली आभार्

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    2. बहुत रुलाया इन हास्य कवियों ने . कुछ कहने लायक ही नही हूँ

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    3. क्षमा करें। अविनाश जी आपकी इस पोस्‍ट में एक गहरा प्रश्‍न भी छुपा है। अगर यह सच है कि अशोक चक्रधर जी की गाड़ी वहां से गुजरी और उन्‍होंने क्षतिग्रस्‍त कार को अनदेखा कर दिया तो यह बहुत ही अफसोस की बात है। यह हमारे केवल मानव होने पर ही नहीं बल्कि एक संवेदनशील कवि होने पर भी सवाल उठाती है। अगर अशोक जी वहां कार रोककर यह देख सकते कि क्‍या हुआ है तो शायद किसी के प्राण बच भी सकते थे। एक बार फिर आप और अशोक जी क्षमा करें, पर यह कहे बिना रहा नहीं जा रहा।

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    4. zindgi aur maut ka ye khel hum muncheeya kaviyon k liye naya nahin hai, aise bahut se haadse humne samay samay par dekhe hain ,bhoge hain aur parmaatma ki kripa se bachte aaye hain ...ek lambi list hai aur iskaa kaaran bhi hum kavi khud hi hote hain ...ye sab main aaj likhoonga ...............lekin abhi abhi jo maine padha hai,yadi vah sach hai ....yani durghtnagrast gaadi ko dekh kar bhi ashok chkradhar ne rukne ki zaroorat nahin samjhee toh meri samajh me yah ek asahubh sanket hai aur maanveeya samvedna bech bech kar rupya kamaane walon ka samvedanshoonya hona saabit karta hai...
      agar ye sach hai toh lahnat hai ...gaali hai !

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    5. अविनाश जी संदीप जी से मेरी काफी देर तक बात हुई और जो बात हुई वो चिंतित करने वाली है । ओम जी को काफी घातक चोटें हैं । उनका शरीर किसी प्रकार का कोई रिस्‍पांस नहीं दे रहा है। डाक्‍टर भी निराश हैं । संदीप जी रात भर वहीं रहे थे और उनकी बातों के पीछे की बाते बता रहीं थीं कि......। ईश्‍वर दुनिया को हंसाने वाले इस शख्‍स की अभी दुनिया को बहुत जरूरत है । ओम जी मेरे लिये क्‍या हैं ये मैं शब्‍दों में व्‍यक्‍त नहीं कर सकता । मन बहुत विचलित है और ईश्‍वर से चमत्‍कार के लिये प्रार्थनारत हूं ।

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    6. ह्रदय विदारक समाचार.

      परमपिता परमेश्वर इस दुख को सहने की उनके परिवार और हम सब को शक्ति दे.

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    7. behad dukhad
      shayad uupar wale ko yahi manjur tha

      wo hamesha achhe logo ko hi pasand karta hai
      isi liye gaon me kaha jata hai ki
      "NA KHAL MARE, NA KHADHAD GIRAI"

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    8. कोई ऐसे भी भला दुनिया छोड़ कर जाता है.???...वो भी ऐसे लोग जिन्होंने दुनिया को हमेशा हंसाया...इश्वर तुम हो ना?
      नीरज

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    9. श्री विनोद पांडेय से प्राप्‍त ई मेल

      hame bahut khed hai jo yah sab hua kavi log ke sath main bhagwaan se prathana karata hoonki jald hi om vyas sahit aur sab log thik ho jayen
      jo log hame chhod kar gaye hain bas sarir chod kar gaye hai baki unaki yaad hamare sath jiwan paryant rahegi.
      bhagwaan unke aatama ko santi pradan kare

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    10. क्या कहूँ?...निशब्द हूँ....बस इतना जानता हूँ कि होनी को टाला नहीं जा सकता ...
      अब तो बस यही सोच कर हम अपने दिल को सांत्वना दे सकते हैँ कि शायद ऊपरवाले को इन हास्य और व्यंग्य के महारथियों की हम से अधिक आवश्यकता हो

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    11. अखबार में छपी खबर पर यकीन नहीं हो रहा। ऐसा कैसे हो सकता है। एक संवेदनशील कवि कैसे एक हादसे को नजरअंदाज कर सकता है जबकि उसको मालूम हो कि वे सभी उसी ग्रुप के कवि हैं। और ग्रुप में वे ही कवि होते हैं जो एक दूसरे को चाहते हों। ' कटे हाथ ' से लोगों को हिम्‍मत का संदेश देने वाला कवि कैसे छोड़ सकता है हिम्‍मत को। बात हजम नहीं हो रही। श्री अशोक जी के बारे में इस प्रकार की खबर पढ़ना मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं है। विश्‍वास हो ही नहीं रहा। खबर की सच्‍चाई पर शक है, खबर का स्रोत प्रश्‍न खड़े कर रहा है। क्‍या खबर देने वाला अशोक जी के साथ था... क्‍या ये बात अशोक जी ने खुद बतायी.... या फिर उनकी बिटिया ने बतायी... या उनकी गाड़ी के चालक ने बतायी...... सोचो क्‍यों बताएंगे ये.... आप भी सोचिए हम भी सोच रहे हैं।

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    12. itani takleef ho rahi hai ki kya kahen ... ashok chakradhar ji ne shayad vahii kiya jo iss samay iss duniya ke log ker rahen hain ,, kya sirf kavita yen likhana paryapt hai?

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    13. पवन जी आपकी जिज्ञासाएं जायज हैं। मानने वाली हैं। इस पर हरिभूमि के मदन बालियान ही बतला सकते हैं या कवि विनीत चौहान जिनसे की गई बातचीत के आधार पर खबर तैयार करके प्रकाशित की गई है।

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    14. Ritika Mane से अभी एक घंटे पहले प्राप्‍त ई मेल संदेश नीचे प्रस्‍तुत है :-

      वाचस्पति जी,
      नैट पर आपके माध्यम से कवियों के साथ मौत की आँखमिचौली की हृदय विदारक खबर पढ़ी और साथ ही श्रीमान अशोक चक्रधर का अपने ही साथियों के साथ जरूरत के समय में नजरअन्दाज करके निकल जाने वाले ''अमानवीय व्यवहार'' के बारे में भी पढ़ा। वे महाशय कोई अनपढ़ या गंवार तो हैं नहीं, न ही उनके पास बुध्दि की कमी लगती है। उनका यह inhuman attitude अतिभर्त्सना योग्य है।

      ऋतिका माने

      (मेरे कुछ और साथियों ने भी इस समाचार पे अपनी प्रतिक्रयाएँ व्यक्त की हैं, उन्हें भी मैं इसी मेल में भेज रहे हैं। क्योंकि आपके समाचार में टिप्पणी देने में बड़ी टेक्नीकल समस्या आई, इसलिए उस पेज पर चाहते हुए भी टिप्पणी नहीं लिख पाए साथी लोग। कृपया आप हमारी
      टिप्पणियाँ उस समाचार के नीचे प्रकाशित करने में मदद करें।)

      1) ओम प्रकाश आदित्य जी की अकाल मौत से मन अति व्यथित है। ओम व्यास, नीरज पुरी सभी की आत्मा को ईश्वर शान्ति दे !! अशोक चक्रधर के लिए मन में अब एक ही सवाल उठता
      है क्या अशोक चक्रधर इंसान है ? क्या संवेदनशील व्यक्ति ऐसे होते हैं ? उनकी ही बेटी ने आशंका
      जाहिर करी, पर कठोर हृदय चक्रधर किसी भी झमेले में पड़ने के बजाय या यारों के लिए किसी तरह का कष्ट उठाने के बजाय होटल चले गए। वाह री इंन्सानियत !

      शिशिर वर्मा

      2) ओम प्रकाश आदित्य की कमी सदा खलती रहेगी और अशोक चक्रधर की अमानवीयता सदा दिल सालती रहेगी। अशोक जी को तो शायद कोई शोक भी नहीं होगा क्योंकि वे हैं ही 'अशोक' यानी 'शोक रहित' । पर ऐसी भी क्या बेरुखी कि जिनके साथ थोड़ी देर पहले मंच पे जनाब अशोक जी हँस बोल रहे थे, उनका हाल बेहाल होने पर उनकी तरफ झाँका तक नहीं और दामन बचाकर निकल गए। शर्म आनी चाहिए उन्हें अपनी इस घटिया हरकत पर।

      समीरा जमाल

      3) समाचार पढ़कर सबसे अधिक दिल दहला अशोक चक्रधर की क्रूरता और स्वार्थीपन से। मैं उनकी भर्त्सना करता हूँ।
      ललित शर्मा

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    15. दीप्ति गुप्‍ता से प्राप्‍त ई मेल संदेश अविकल प्रस्‍तुत है :-


      अविनाश जी, कालजयी हास्य कविताओं के अनूठे कवि ओम प्रकाश आदित्य और उनके साथ ओम व्यास व नीरज पुरी की अकाल मृत्यु की ख़बर पढ़कर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वे हमारे बीच नहीं रहे। ऐसे अप्रत्याशित कष्टकारक समाचार पढ़कर, कई बार दुख की अभिव्यक्ति भी
      कहीं जैसे अटक जाती है। अजीब विमूढ़ता की स्थिति से गुज़र रही हूँ मैं, जब से यह समाचार पढ़ा है। हाँ, अशोक जी को यह क्या हुआ ? वे तो बड़े संवेदनशील, पैनी समझ, पैनी नज़र वाले व्यक्ति हैं। दुर्घटनाग्रस्त कार को देखकर उन्हें क्योंकर अपने आगे जा रही साथियों की कार का ध्यान नहीं
      आया ? चलिए किसी भी वजह से अपने साथियों की कार का विचार उनके मस्तिष्क में नहीं कौंधा, किन्तु बेटी के चेताने पर तो उन्हें तुरन्त रुक कर मानवीयता के नाते जाँच पड़ताल करनी चाहिए थी। आहताश्चर्य !!!! क्योकि वे तो उदार हृदय, दौड़कर मदद करने वालों में हैं - उनकी यह चूक क्षम्य नहीं है। बड़ी खेदजनक है। खैर, जो हुआ सो हुआ...। ईश्वर मृत साथियों की आत्मा को
      शान्ति दे और हम सब को इस दुख को सहने की शक्ति दे !
      दीप्ति

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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