आज झारखंड में हुल - दिवस मनाया जा रहा है। हुल दिवस यानी तीस जून, और इस अवसर पर हर साल की भाँति इस बार भी झारखंड में सरकारी अवकाश भी घोषित किया गया है। आज ही के दिन यानी 30 जून, 1855 को संथाल-परगना (झारखंड) के भोगनाडीह की धरती पर अमर शहीद सिदो-कान्हु ने शोषण और अत्याचार के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की थी जिसे प्रसिद्ध संथाल -विद्रोह के नाम से इतिहास जानता है। पर विडंबना तो देखिये, झारखंड के बिहार से अलग हुये आठ साल से उपर बीत गये हैं पर कुछ नहीं बदला। सब जस का तस है और सब जगह यहां लूट का बाज़ार गर्म है। आम जनता आज भी सुविधाओं के आभाव में जी रहा है और त्रस्त है। आज झारखंड में जिस सिदो-कान्हु की आज लोग गाथा गायेंगे, उसीकी पांचवी पीढ़ी की संताने इलाज के अभाव भूखमरी से बीमार हो में दुनिया से चल बसे। पर झारखंडी नेताओं की घोषणा और दंभ देखिये,उनकी नज़र में सब कुछ ठीक -ठाक चल रहा है।
इस अवसर पर हिन्द-युग्म ने वीर गति प्राप्त सिदो-कान्हु को याद करते हुये मेरी एक कविता लगायी है जिसे नुक्कड़ के सुधी पाठक नीचे इस लिंक को चटका कर पढ़ सकते हैं -
हिन्द-युग्म पर सुशील कुमार की कविता
हुल-दिवस पर विशेष - सुशील कुमार
Posted on by Sushil Kumar in
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बेटाधन मुर्मू,
सिदो-कान्हु,
हुल दिवस
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नेताओं की नजर मैं तो सब ठीक होना ही है , उनके घर मैं सब ठीक है तो सारी दुनिया मैं ठीक !
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