धन्यवाद सुशील जी की आपने एक कड़वा लेकिन जरूरी सवाल उठाया। मैं लगातार खुद यह सवाल उठाता रहा हूं कि ब्लाग क्यों नहीं हमारे लिए एक सार्थक विचार विमर्श का माध्यम बन पा रहे हैं। मुझे लगता है उसके पीछे इस तरह की झूठी वाही वाही का बड़ा हाथ है। मुझे अस्सी के दशक की वे कविता गोष्ठियां याद आती हैं,जब मैंने कविता लिखना शुरू किया था। दस बाय दस के एक कमरे में दस कवि दीवार के सहारे सट-सट कर बैठते थे। सब एक-दूसरे की कविताओं की बढ़-चढ़ कर तारीफ करते थे। चाहे उसमें तारीफ करने जैसा कुछ भी न हो। मुझे जल्द ही समझ आ गया था कि इसका कोई फायदा नहीं है।
मुझे फिर से वे दिन याद आ रहे हैं क्योंकि इस एक बाय एक के कम्प्यूटर स्क्रीन पर वही सब दोहराया जा रहा है। सच मानिए इसका कोई सकारात्मक पक्ष नहीं है। टिप्पणियां करने वालों को भी सोचना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं।
मेरा कहना है झूठी और आत्ममुग्धता का यह क्रम बंद होना चाहिए।
कड़वा सच
Posted on by राजेश उत्साही in
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आत्ममुग्धता,
kavita
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इतनी कड़वी बात अच्छी नहीं लगी।
जवाब देंहटाएंकड़वी बात कभी अच्छी नहीं लगती,पर वही सच्ची होती है।
जवाब देंहटाएंकड़वी बात कभी अच्छी नहीं लगती,पर वही सच्ची होती है।
जवाब देंहटाएंकड़वी बात कभी अच्छी नहीं लगती,पर वही सच्ची होती है।
जवाब देंहटाएंमैं आपके इस बात से सहमत हूँ, और जैसा आप को बखूबी पता है, मैं इस सच का एक उदाहरण भी हूँ.
जवाब देंहटाएंपुष्प भी काँटों के बीच से निकलती है,
जिससे बगीचे मे बहार आता है.
कड़वा सच होता है,पर स्वीकार करना चाहिए,
इससे जीवन मे निखार आता है.
भाई बात तो आपकी सही है, लेकिन ये तो सोचो कि जन्मजात तो लेखक विरले ही होते हैं, वर्ना बाकी तो अनुभव से ही सीखते और सुधारते हैं.
जवाब देंहटाएंउत्साह नहीं बढ़ाने से निरुत्साहन पनपता है जिसके चलते रही-सही कर्मशीलता भी लुप्त हो जाती है.
इसलिए बुरी रचना की बुराई न की जा सके तो, तारीफ़ से बचना चाहिए. और थोडी सी भी संभावना दिखे तो प्रसंशा करनी चाहिए.
और हाँ, इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि एडवांस में रोयल्टी लेकर लिखने वाले लोग, हमारे लिए ब्लॉग खोल कर रचना लिखते ही, सबसे पहले हमारे लिए पोस्ट कर देंगे. ब्लॉग्गिंग अभी इस मुकाम पर नहीं पहुंची है.
बच्चा पहला अक्षर लिखता है , तो उसे हम कहते हैं , "वाह , बड़ा अच्छा लिखा ..अब दोबारा और अच्छा लिखो ...".मेरे विचार से टिप्पणी का यही अर्थ होना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंये बात, काव्य रचना को लेके , मै कह रही हूँ ...
ललित लेखन , जहाँ , हमें अपनी स्पष्ट विचारधारा प्रकट करनी होती है , वहाँ पे टिप्पणी साफ़ , साफ़ होनी चाहिए ..
येभी हो सकता है ,कि , हम पढ़के कुछ कहे ही ना ...क्योंकि अपना अपना विचार होता है.....मुझे जो अच्छा लगा वो शायद अगले को ना लगे ...
मै अपने ही लेखन को लेके कहूँगी , कि , मै ना कवि हूँ , ना लेखक ..वो मेरा पेशा हैही नही ...!ऐसे में मुझे मार्गदर्शन की ज़रूरत होटी है , जो मेरे गुरुवार चिटठा कार करते रहे हैं !ख़ास कर मेरे "कविता " ब्लॉग पे आप सुझावों का ढेर देख सकते हैं !
"संस्मरण " तो व्यक्ति गत होते हैं ...लेखन शैली हरेक की जुदा होती है ...
मुझे, यहाँ भी बड़े अच्छे सुझाव मिले.."कहानी" पे भी मिले..कि कड़ी दर कड़ी गर लिखी जा रही हो तो, कड़ी का समापन कैसे या कहाँ करें, जिससे अगली कड़ी का इंतज़ार रहे!
http://lalitlekh.blogspot.com
आत्ममु्रधता सार्वकालिक, सार्वजनीन और सर्वव्यापक है। भाईलोग उसे ब्लॉगगीरी तक ले आएं हैंा पर जो टिप्पणीय नहीं हैं उसकी उपेक्षा ही सही उपाय है।
जवाब देंहटाएंअच्छे और ख़राब की श्रेणियां होती है पूर्ण रूप से अच्छा और सम्पूर्ण बुरा कुछ नहीं होता है.प्रबलन और हौसला आफजाई हर सर्जक चाहता है...ब्लॉग पर लेखन अपने आरम्भिक दौर में है..टिप्पणी के रूप में केवल बहुत सुन्दर,अच्छा .या नाइस वन आता है तो लेखक समझ जाता है पाठक को रचना पसंद नहीं आयी है..विश्लेष्णात्मक टिप्पणी ही मायने रखती है...मेरे विचार से स्थापित लेखक के लिए समालोचना की आवश्यकता होती है..नवोदित के लिए उत्साह वर्धन की ...
जवाब देंहटाएंप्रकाश सिंह
अच्छी बहस चल रही है। जारी रखें कृपया।
जवाब देंहटाएंrajesh jee adhik utsaahee hone sebhee kaam nahee chalegaa. kadvee baat kahne ke liye morchaa nahee kholaa jataa. jisse kahnaa hai uske blog pe jake comment karen. jab vimarsh kaa star ek doosre ko neechaa dikhanaa ho jayegaa to aap mujhe bas nam bataa dena mai uskee kavitaai aur vichaar kee dhajjiyaa udaa dungaa ( apnee taraf se to ).
जवाब देंहटाएंabhivyakti jee kee is baat se 100% sahmat hoon ki - मेरे विचार से स्थापित लेखक के लिए समालोचना की आवश्यकता होती है..नवोदित के लिए उत्साह वर्धन की ...