हाय रे मंदी....अभी और कितना

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  • विनोद कुमार पांडेय
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  • मंदी मे सब बदल रहे है,साधु, नेता,चोर,

    सबके बिजनेस पे छाया है,इस मंदी का ज़ोर,

    कहाँ मुनाफ़ा यही सोच कर, सभी लगे तैयारी मे,

     साधु बाबा भी अब तो ,फँस जाते है बमबारी मे.

     

    पर नेता को नही फ़र्क है,ना मंदी का कोई गम है.

     इस मंदी के महादौर मे, जनता से मिलते ही कम है,

     उन्हे सुरक्षा का डर है,इस असुरक्षित जनता से

    दुर्जन भी भयभीत हुए है,अब तो सज्जनता से.

     

    इनकी क्या मंदी होगी, ये तो जनता का खाते है,

    लूट खसोट ग़रीबो को ये,अपना माल बनाते है,

     हार,जीत,मंत्री,सत्ता, सब कुछ नोटों का खेल है,

    उनकी महागणित के आगे,आज गणित हर फेल है,

     

     मंदी मंदी कहते कहते थक गयी जनता सारी,

     कब तक रहेगी मंदी जैसी इतनी बड़ी बीमारी,

     अब तो फिर से वही पुराना,दिन जाए तो अच्छा,

    फिर से खुशियाँ लौट पड़े,अपने द्वारे पर ,तो अच्छा.

     

    जब हम फिर से लहराएँगे,वो दिन लौट के कब आएँगे,

    सूखे मुरझाए चेहरों पे, सुर्ख चंद्रमा कब छाएँगे,

    कितनो के घर बिखर गये, अब भी क्या कुछ बाकी है,

     डूब रही है अर्थव्यवस्था, वो कहते तैराकी है,

     

    आएगा फिर से वो सावन, आँखे बोझिल मत होने दो,

     नया सवेरा फिर से होगा,स्वाभिमान को मत रोने दो,

    उलझन के चादर से निकलो,ईश्वर घर अंधेर नही,

    रात घनी घनघोर गयी तो,कल आने मे देर नही,

    4 टिप्‍पणियां:

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    2. बहुत शोर मचा रही है..मंदी
      हमने अपने दिल की बात कह दी,आप क्या कहते है???

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    3. साधू और चोर ही नहीं भाई साहब हम जैसे मिडिया के लोगो पर भी मंदी का गहरा असर है . आपने कितनी सहजता से अपनी दिल की बात को शब्दों में पिरो कर कविता लिख दी . बधाई . फर्क इतना है की में दिल की बात से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी स्वागत है मेरे ब्लॉग पर . www.gooftgu.blogspot.com

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    4. सरकारी पोलियो ड्राप
      की तर्ज पर
      प्रत्‍येक रविवार
      मंदी ड्राप की
      दो बूंद के लिए
      कर दे दिन नियत
      फिर सुधर सकेगी
      देश की आर्थिक तबीयत।

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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