सबका सफ़र एक है लेकिन अलग अलग रफ़्तार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
ऐसा कौन नहीं जो जूझे मौजो से मझधार से,
तैराको की असल कसौटी परखी जाती धार से।
दुनिया अर्ध्य चढाती उनपर जिनका बेडा पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
सबकी अपनी तीर कमाने अपना सर संधान है,
किन्तु लक्ष्य घोषित करता है किसका कहाँ निशान है।
मत्स्य वेध जो करे सभा मे उसका जय जयकार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
जिसकी जितनी लम्बी चादर उतना ही फैलाब है,
जितना बोझ वजन गठरी मे उससे अधिक दवाब है.
अपनी अपनी लाद गठरिया जाना सबको पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
दुःख की करुना भरी कथा मे सुख तो सिर्फ प्रसंग है,
और जिन्दगी भी जीवन से उबी हुई उमंग है.
साँसों का धन संघर्षो से माँगा हुआ उधार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
रैन वसेरा करके पंछी उड़ जाते है नीद से,
सब चुपचाप चले जाते है आंसू पीकर भीड़ से.
जाना सबको राम गाँव तक करकर राम जुहार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है.
सबका सफर अलग है लेकिन अलग अलग रफ़्तार है - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्द गीतकार )
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आत्म प्रकाश शुक्ला,
हरि प्रसाद शर्मा
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रचना अच्छी है इन्सान ये जान ले तो जीवन सुधर जाये
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna hai!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंyatharth ko darshati hui bahut sundar rachna hai.....shubhkaamnayein sweekar karein....
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