बीते वर्ष मॉस पखवारे
एक एक कर सांझ सकारे
थाम उम्र का हाथ
बुढापा हंसकर बोला रे
चल पगली तैयार खडा
तेरा उड़नखटोला रे
ख़तम हुआ सब खेल तमाशा
अब किस अभिनय की अभिलाषा
थोथे मंचो की तलाश मे
भूल गया अपनी परिभाषा
लिए गंध की प्यास
मन हिरन वन-वन डोला रे
चल पगली तैयार खडा
तेरा उड़न खटोला रे
भोर भई हंस खेल गवाई
दोपहरी भर दौड़ लगाईं
गोधूली मे थककर बैठी
सांझ देख नैना भर लाइ
अमित युगों से रही
बदलती पचरंग चोला रे
चल पगली तय्यार खडा
तेरा उड़नखटोले रे
अमृत सिन्धु धारे अन्तर में
नाहक डूब मरी पोखर में
प्यासी धरा तृप्त हो जाये
इतनी ओस कहाँ अम्बर में
अंतर रतन बेचकर
पगली पाहन तोला रे
चल पगली तैयार खडा
तेरा उड़न खटोला रे
शब्द रुप रस गंध छुअन में
चुम्बन दर्शन आलिंगन में
सारी साँसे हवन हो गयी
कुछ काया मे कुछ कंचन में
अब काहे पछताए
पिया का आया डोला रे
चल पगली तैयार खडा
तेरा उड़न खटोला रे
वाह, बहुत सुन्दर लिखा है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
सब माया है.
जवाब देंहटाएंwaah waah...........adhyatmik roop se sab kah diya.........jeevan roopi khilona ab to usi kagar par khada hai bas kabhi bhi tootne ko taiyaar hai.......ab to ruk kar kuch pal apne yani apni aatma ke liye bhi kuch kar le e manav.
जवाब देंहटाएंbahut hi sarthak rachna.
वाह! वाह! वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारा गीत है भाई. शुक्ल जी के कुछ गीत और पढ़वाएं और संभव हो तो इनके बारे में जानकारी भी दें. आभार.
mere paas atma prakaash shukl jee ke kareeb 90 geet hain aur kamsekam 50 u nme se adbhut darshnikta yaa rumaaniyat se bhare hue hain.
जवाब देंहटाएंmeri koshish hogee kee un sabko apne aur nukad ke blog pe dal sakoo.
fourteen kee age mai shukl jee se prabhaavit hua aur aaj 40 kee umar mai bhee ye lagaaav jindaa hai.
शुक्ल जी की ये कविता अति सुंदर है ...
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