देह का सफर पूरा
विचारों का जारी।
आवारा मसीहा के मसीहा
विष्णु प्रभाकर
की सिर्फ देह का
अंत हुआ है
विचार उनके
जीवित रहेंगे सदा सर्वदा।
आज से हम सब उन्हें
मन में महसूस पाएंगे
मानस में उनके विचारों की
ज्वाला धधकती पाएंगे
इसी तरह उन्हें याद
सदा करते नजर जाएंगे।
बी 151, महाराणा प्रताप एनक्लेव, रानी बाग,
दिल्ली से दोपहर 2 बजे उनकी देह,
जो उनकी नहीं थी,
(पर सभी समझते हैं कि देह अपनी होती है
इन नामसमझों में मैं भी शामिल हूं)
का अंतिम सफर शुरू होगा।
नुक्कड़ समूह (पाठक एवं लेखक)
अपने श्रद्धासुमन आदरणीय प्रभाकर जी को
समर्पित करता है इस भावना के साथ
कि परमपिता परमात्मा उनके विचारों को
मंथन के नित नए सोपान दे।
यह सूचना आशीष कुमार 'अंशु' (बतकही) के एस एम एस यानी संदू से मिली। कुछ माह पहले जब मित्र पवन चंदन (चौखट) के साथ श्री श्याम विमल (नोएडा) जी से उनके आवास पर मिलना हुआ था तब माननीय विमल जी ने उनसे हुई मुलाकात का जिक्र किया था।
विष्णु प्रभाकर को श्रद्धांजलि : देह का सफर पूरा विचारों का जारी (अविनाश वाचस्पति)
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
Labels:
अंतिम सफर,
आवारा मसीहा,
विष्णु प्रभाकर,
श्रद्धांजलि
Labels:
अंतिम सफर,
आवारा मसीहा,
विष्णु प्रभाकर,
श्रद्धांजलि
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विष्णुप्रभाकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि परमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
जवाब देंहटाएंregards
पहले लवलीन फिर यादवेन्द्र शर्माचन्द्र जी, विष्णु प्रभाकर जी और अब नईम साहब..
जवाब देंहटाएंइतने दुःख एक साथ कैसे बर्दाश्त करे कोई
देह न अपनी है
जवाब देंहटाएंन कभी अपनी होगी
अशोक जी शोक को
दूर ही रहने दें
विचारों की सरिता
मन में बहने दें।
प्रभु उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
जवाब देंहटाएंishwar unki aatma ko shanti de,shraddhanjali.
जवाब देंहटाएंआवारा मसीहा के अमर रचयिता को श्रद्धांजली...
जवाब देंहटाएंउन्हॉने हमसे पर्दा कर लिया. और मै तो कभी उनको शरीर के माध्यम से नही जान पाया. उनके विचार उनकी कहानी पढी अपने पाठ्यक्र्म के तहत. जानकर धक्का लगा कि अब वे शरीर मॅ नही रहे. पर दु:ख नही हुआ क्यॉकि कह नही सकता कि मृत्यु का अनुभव पाया नही है. हाँ वे हमारी पहुँच से दूर चले गये है इस बात क दु:ख है. परमात्मा उनको शांति प्रदान करॅ.
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को नमन.
जवाब देंहटाएंस्व. विष्णु प्रभाकर अपने समय से आगे के साहित्यकार थे। उनकी दिवंगत आत्मा को मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि!!!
जवाब देंहटाएंअक्षर जब शब्द बनते हैं
हिंदी साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है यह. वे हिंदी साहित्य के एक गौरव स्तम्भ थे.
जवाब देंहटाएंमेरा श्रद्धापूर्ण नमन. इश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे.
दिवंगत आत्मा को प्रभु शान्ति प्रदान करे
जवाब देंहटाएंदेह के सफर के आगे
जवाब देंहटाएंमसीहा की आयेगी याद
आत्मा को शांति मिले
प्रभु से यही फरियाद
kisne kahaa kalam ka ye sipaahee chala gayaa. vo ek nayee yatra per nikal pada hai. lekin sahitya premiyo yaad rakhnaa hameshaa aisa likhnaa ki use lage ki vo hindi saahitya kee dharohar ko sahee haatho mai saunp gayaa hai.
जवाब देंहटाएंpaarthiv deh se vichhadne per sajal nayan se koi koti abhivaadan aur nahee yatraa ke liye anant shubhkaamnaye
विनम्र श्रद्धांजलि, अस्तु!
जवाब देंहटाएंनि:संदेह यह एक दु:खद ख़बर है। स्वभाव से बेहद सरल और विनम्र विष्णु प्रभाकर जी एक महान लेखक थे। कर्म करने में ही विश्वास रखने वाले इस लेखक ने आडम्बर न जीवन में पसंद किए, न साहित्य में। "आवारा मसीहा" उनकी हिंदी में ही नहीं, वरन विश्व साहित्य में एक क्लासिक कृति है। इस महान दिवगंत आत्मा को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धंजली. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और शोक संतप्त परिजनों को ढाढस दे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
avara masiha aaj bhi hamare beeh hai.unki rachnaye hamesa jinda rahengi. srdhnjali.
जवाब देंहटाएंविष्णु प्रभाकर के जाने का हमें गम नहीं बल्कि उत्सव मनाना चाहिए। क्योंकि वे एक ऐसी सार्थक जिंदगी जीकर गए हैं जो हम में से बहुत कम को नसीब होगी। शरतचंद्र मेरे प्रिय लेखक रहे हैं। हालांकि मैंने उन्हें हिन्दी में ही पढ़ा है। आवारा मसीहा मैंने इसी लोभ में पढ़ना शुरू किया था कि शरतचंद्र के बारे में जानने को मिलेगा। पूरे चौदह दिन तक हर दिन लगभग दो घंटे पढ़कर मैंने आवारा मसीहा का एक तरह से जिया। यह आज नहीं 1982 की बात है। तब से प्रभाकर जी मेरे पसंदीदा लेखकों में रहे। मैं उन्हें बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाली पत्रिका चकमक भेजता था। उनसे रचना का आग्रह भी करता था। रचना तो वे कभी नहीं भेज पाए पर पत्र अवश्य लिखते थे। खुद न लिख पाएं तो किसी और से लिखवाते थे। तो ऐसे विष्णु प्रभाकर जी को सच्चीश्रद्वाजंलि यही होगी कि हम उनकी तरह सच्चे मन से लेखकीय कर्म में लगें रहें।
जवाब देंहटाएंmar gya jar gya ye kaya.
जवाब देंहटाएंrah gya bas unki anmol baten.
vo banten jo sury-chand ki tarah
bhatake hue rahi ko rah dikhati rahegi.
आवारा मसीहा के अमर रचयिता को शोध दिशा परिवार की ओर से
जवाब देंहटाएंभावभीनी श्रद्धांजलि
गिरिराजशरण अग्रवाल