सुभाष नीरव
भाई अविनाश, लगता है आप हम सबका अप्रैल फूल ही बनाना चाहते हैं। 1 अप्रैल 2009 को रविवार नहीं, बुधवार है। यों विषय अच्छा है। मंदी का दौर तो विश्व भर में चल रहा है। अब तो गूगल भी इसकी चपेट में है। नहीं पढ़ा ? संडे नई दुनिया (1 फरवरी 2009) के अंक में ब्लॉग विद्या के महारथी भाई बालेन्दु दाधीच के कॉलम "साइबर समाचार" की इस खबर पर गौर करें-
मंदी में गूगल
गूगल भी मंदी के चपेट में है। उसने कर्मचारियों की छंटनी कर दी है और ‘गूगल एप्स’ के सॉफ्टवेयरों की बिक्री में अन्य कंपनियों की मदद लेने जा रहा है। यू-ट्यूब की तर्ज़ पर बनाए गए गूगल वीडियो सहित अपने कई कमज़ोर उत्पादों और सेवाओं को वह बंद करने जा रहा है। सेकेंड लाइफ़ की तर्ज़ पर विकसित आभासी विश्व ( वर्चुअल वर्ल्ड) ‘लाइवली’ पहले से बंद हैं। टिवटर जैसी माइक्रोब्लॉगिंग सर्विस जाइकू को ओपन सोर्स प्रोजेक्ट में बदला जा रहा है। मोबाइल सोशल नेटवर्क ‘डोजबॉल’, गूगल मैशअप एडीटर और गूगल कैट्लॉग सर्च भी बंद होने की ओर अग्रसर हैं। ‘गूगल नोटबुक’ परियोजना पर भी आगे कोई शोध या विकास कार्य नहीं होगा। कुछ शहरों में कंपनी के दफ़्तर भी बंद किए जा रहे हैं।
[बालेन्दु दाधीच, संडे नई दुनिया ( 1 फरवरी 2009)]
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तो भाई, इस भयंकर मंदी के चलते क्या मालूम ब्लॉगिंग के लिए फ्री पेजेज देने वाला गूगल अपनी इस योजना को ही न बंद कर दे या फिर ‘फ्री’ न देकर ‘फीस’ लेना आरंभ कर दे ? अगर गूगल ने फीस लेना आरंभ कर दिया तो निश्चय ही ब्लॉगरों को ब्लॉगिंग को व्यवसायिक बनाने के गुर तो सीखने ही होंगे न ! ताकि फीस का भी जुगाड़ हो सके ! तो भाई, हम तो तैयार हैं ये गुर सीखने के लिए आपकी ‘नुक्कड़’ की पहली संगोष्ठी के माध्यम से ही सही। पर तारीख, दिन और समय, सही-सही बताओ, मसखरी न करो !
सुभाष जी करने तो मसखरी
जवाब देंहटाएंइसमें भी होती है बात खरी
चंदन जी जो हल्का न करते
गूगल की बात न पता चलती।
इसी बहाने किसी की बत्तीसी
किसी की तीसी, नहीं छब्बीसी
खिलना चाहकर भी नहीं खिलती
मसखरी से भी खरी बात निकली।
संगोष्ठी अवश्य होगी, कब होगी
पहले इसमें आने वालों की सूची
हो जाये फाईनल जैसे विषय टिच
हो गया है, जल्द सूची भी होगी।
तनेजा जी हंसते हंसते लगे हुए हैं
पीने खाने जिमाने के इंतजाम में
और जो आयेंगे जीमने उनकी सब
जानकारी जुटाने में मशगूल हैं जी।
दिन तारीख तय करने का जिम्मा
आपको दिया, आप ही इस पर
बनायें, बनवायें सहमति सम्मति
पर सबसे चर्चा जरूर भरपूर कर लें।
समय अभी है खूब जी
हंस भी लें हम खूब जी
जिस दिन जुट
जायेंगे
सिर तनिक न उठायेंगे।