पारा रह गया है तीन

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • भारत की राजधानी
    दिल्ली का पारा
    रह गया है तीन
    बज रही है बीन
    लेकिन किस किसकी
    सुबह के अखबार
    इसी से जमे होंगे
    दफ्तरों में होंगे
    इसी के चरचे
    मूंगफली पर खरचे
    काम न होगा
    धूप निकली तो
    वहीं पर धाम होगा

    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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