
इन दिनों कुछ तो हिंदी में बुरी तरह से घुसपैठ कर रही अंग्रेजियत और कुछ भाषा के अज्ञान के चलते बड़ा अनर्थ हो रहा है। हमारी वह भाषा जो एक तरह से हमारी मां है, हमारी अभिव्यक्ति का जरिया है और जिसकी बांह थाम हम अपनी जीविका चलाते हैं आज उसका जाने-अनजाने घोर निरादर और अपमान हो रहा है। भाषा भदेस हो रही है या की जा रही है और उसके साथ जम कर छेड़छाड़ और खिलवाड़ हो रहा है। चाहे प्रिंट मीडिया से जुड़े लोग हों या इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोग, शिक्षक हों या आलोचक और कथाकार सब इस बात से सहमत होंगे कि उनकी अभिव्यक्ति का आधार सिर्फ और सिर्फ भाषा है। उसका ज्ञान उनसे छीन लिया जाये तो वे मूक और लाचार हो जायेंगे। आज उसी भाषा के साथ जिस तरह से छेड़छाड़ हो रही है वह चिंता का विषय है। ऐसे में जिन्हें भाषा से प्यार है, यह जिनकी अन्नदाता है उनका यह कर्तव्य बनता है कि वे पल भर रुकें और भाषा पर कुछ विमर्श करें। जो गलत प्रयोग हो रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए सक्रिय और सचेष्ट हों। आज बड़े-बड़े विद्वानों तक को धड़ल्ले से भाषा का गलत इस्तेमाल करते देखा जाता है। शब्दों के अर्थ और सही प्रयोग की जानकारी न होने के कारण कभी-कभी तो अर्थ का अनर्थ भी होते देखा गया है। मैं अपने को भाषा का पंडित नहीं मानता लेकिन अल्प ज्ञान में जो गलतियां नजर आयीं उन पर ध्यान आकर्षित करना मैं अपना कर्तव्य मानता हूं। कारण, हम जिस भाषा के हैं और जिसके चलते ही हम जो हैं, वो हैं उसका प्रयोग सही और सटीक हो यही हमारा काम्य है। जो इसके सही प्रयोग को नहीं जानते उन्हें राह दिखाना और बताना कि सही क्या है, गलत क्या है यही इसका उद्देश्य है। पूरा लेख आप
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