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इतनी कटुता...? इतनी घृणा...?

प्रभाष जोशी जी के निधन की खबर दिल्ली से प्रकाशित होने वाले एक तथाकथित राष्ट्रीय अखबार में नहीं छपी. इतनी कटुता...? इतनी घृणा...? अरे भाई, आदमी हमेशा के लिए चल बसा. अब तो दुराग्रह से मुक्त हो जाओ सम्पादकजी...अपनी इसी ओछी मानसिकता के कारण कुछ संपादक मालिक के अच्छे नौकर तो बने रहते है लेकिन वे पत्रकारिता के कलंक ही माने जाते है. प्रभाष जोशी का अचानक ऐसे चला जाना उन लोगों के लिए दुखद घटना है जो पत्रकारिता को मिशन की तरह लेते थे और वैसा व्यवहार भी करते थे। जोशी जी के जाने के वाद अब लम्बे समय तक दूसरा प्रभाष जोशी पैदा नहीं होगा। राजेंद्र माथुर जी के जाने के बाद प्रभाष जोशी ने उनके रिक्त स्थान को जैसे भर दिया था। एक नए तेवर, नई दृष्टि के साथ हिंदी पत्रकारिता को उन्होंने एक ऐसा मोड़ दिया, जैसा पहले किसी ने नहीं दिया था। READ MORE....
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खुला पत्र : प्रिंट मीडिया के नाम (अविनाश वाचस्‍पति)


जो रह गए हैं पढ़ने
और अपना मत देने से
मत दें, मत दें, मत दें

आपका क्‍या विचार है
क्‍या प्रिंट मीडिया
करता रहे अपनी मनमानी
या ब्‍लॉगरों का करें सम्‍मान
और उनकी पोस्‍ट छापने पर
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