मेरा लेख नुक्कड ब्लाग पर - ' संस्कृति के ठेकेदारों ने ली बच्ची की जान ।आखिर कैसे बचेगी हमारी सभ्यता और संस्कृति ' इस पोस्ट का लिंक " http://nukkadh.blogspot.com/2009/02/blog-post_1330.html "।
अनुनाद सिंह जी की टिप्पणी-भैया , ये "ठेकेदारी" शब्द का प्रयोग आपके लिए उपयुक्त नहीं है। कोई आपसे पूछ बैठे कि क्या आपने सबको सदा के लिए जीवित रखने की ठकेदारी ले रखी है क्या ? तो आपका क्या उत्तर होगा ?
मेरी जवाब- अनुनाद जी "ठेकेदारी "शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए बिल्कुल उपयुक्त होगा । परम्परा और सभ्यता का झंडा लेकर किसी को सरेआम बेइज्जत करना और पीटना कहां की सभ्यता है । कोई अपना दोस्त और दुश्मन किसी को बनाये इससे इस संगठन को क्या आपत्ति है ?चाहे वि किसी भी धर्म और जाति का क्यों न हो? और न ही इसका निर्धारण ये चंद लोग कर सकते हैं । किसी एक को चार लोग मिलकर जो कह दें, तो क्या वह बात सही हो जाती है । किसी को इस हद तक जिल्लत करना कि वह अपनी जान दे दे । कितनी कष्टदायी है यह घटना । सुनकर ही दुख होता है । भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है । और सभी पूर्णरूप से स्वतंत्र है । किसी पर किसी की हुकूमत नहीं है । चाहे वो व्यक्ति हो या फिर संस्था ।
दूसरी बात कि - मैंने किसी को जीवित रखने का ठेका तो नहीं लिया है । लेकिन किसी की जान लेने का भी ठेका मेरे पास नहीं हैं। और इस तरह की घटना जो कि बहुत ही निंदनीय है ,उसका घोर विरोध करता हूँ । किसी भी तरह से इस घटना को देखें तो अश्वनी नामक बच्ची अभी मात्र ९वीं क्लास में पढ़ती थी । वह इस हद तक आहत हो जाये कि अपनी जान दे । इसका सारा श्रेय किसे देना चाहिये ? आप ही बताइयेगा ? कोई कहीं मर रहा है और कोई कहीं । बहाने अलग - अलग होते हैं । लेकिन यहां खुद उस बच्ची ने जान दी और वह भी इस तरह की घटिया और दकियानूसी हरकत के बाद ।मानसिक पीड़ा शायद उससे न सहन हुई तब जाकर यह कदम उठाया होगा ।
तीसरी बात - मैं आगे से यह ध्यान रखूंगा कि वर्तनी शुद्ध लिखूं । आपने यह बात पर ध्यान दिया और मुझे बताया इसके लिए आपका आभारी हूँ ।
Read More...
अनुनाद सिंह जी की टिप्पणी-भैया , ये "ठेकेदारी" शब्द का प्रयोग आपके लिए उपयुक्त नहीं है। कोई आपसे पूछ बैठे कि क्या आपने सबको सदा के लिए जीवित रखने की ठकेदारी ले रखी है क्या ? तो आपका क्या उत्तर होगा ?
मेरी जवाब- अनुनाद जी "ठेकेदारी "शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए बिल्कुल उपयुक्त होगा । परम्परा और सभ्यता का झंडा लेकर किसी को सरेआम बेइज्जत करना और पीटना कहां की सभ्यता है । कोई अपना दोस्त और दुश्मन किसी को बनाये इससे इस संगठन को क्या आपत्ति है ?चाहे वि किसी भी धर्म और जाति का क्यों न हो? और न ही इसका निर्धारण ये चंद लोग कर सकते हैं । किसी एक को चार लोग मिलकर जो कह दें, तो क्या वह बात सही हो जाती है । किसी को इस हद तक जिल्लत करना कि वह अपनी जान दे दे । कितनी कष्टदायी है यह घटना । सुनकर ही दुख होता है । भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है । और सभी पूर्णरूप से स्वतंत्र है । किसी पर किसी की हुकूमत नहीं है । चाहे वो व्यक्ति हो या फिर संस्था ।
दूसरी बात कि - मैंने किसी को जीवित रखने का ठेका तो नहीं लिया है । लेकिन किसी की जान लेने का भी ठेका मेरे पास नहीं हैं। और इस तरह की घटना जो कि बहुत ही निंदनीय है ,उसका घोर विरोध करता हूँ । किसी भी तरह से इस घटना को देखें तो अश्वनी नामक बच्ची अभी मात्र ९वीं क्लास में पढ़ती थी । वह इस हद तक आहत हो जाये कि अपनी जान दे । इसका सारा श्रेय किसे देना चाहिये ? आप ही बताइयेगा ? कोई कहीं मर रहा है और कोई कहीं । बहाने अलग - अलग होते हैं । लेकिन यहां खुद उस बच्ची ने जान दी और वह भी इस तरह की घटिया और दकियानूसी हरकत के बाद ।मानसिक पीड़ा शायद उससे न सहन हुई तब जाकर यह कदम उठाया होगा ।
तीसरी बात - मैं आगे से यह ध्यान रखूंगा कि वर्तनी शुद्ध लिखूं । आपने यह बात पर ध्यान दिया और मुझे बताया इसके लिए आपका आभारी हूँ ।