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बने तो मौत बने .......................इसके सिवा कुछ भी नहीं। नजर -ए-गजल

जब लगा खत्म हुई अब तलाश मंजिल की,
धोखा था नजरों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।
समझा था कैद है तकदीर मेरी मुट्ठी में,
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।
मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा,
एक झोका था हवा का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।
मैं समझता रहा हूँ जिसे जान, जिगर , दिल अपना,
मुझे दीवाना वो कहते हैं और इसके सिवा कुछभी नहीं।
आजकल प्यार मैं अपने से बहुत करता हूँ,
हो ये ख्वाब इसके सिवा कुछ भी नहीं।
लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है,
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।
तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी,
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।
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