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अन्ना बाबा हमरी तौ सुनौ !

अन्ना-बाबा आप हमारे अब अन्नदाता और अन्नबाबा   हैं.हम सबके पीछे डंडा लिए काहे फिर रहे हैं.सुनते हैं आप! हमरे लरिका-बच्चन का ख़याल नय है आपका ?दिल्ली में हमने आपकी भरपूर सेवा की और अब आप हमें ही 'रिजेक्ट' करने की फिराक मा लगे हौ !अपने शरीर का भी तौ कुछ ख़याल राखौ !अभी-अभी अनशन ते उठ्यो है औ अब फिर....! हमने फूल और गुलदस्ते यहि नाते थोड़ी ना भेजे थे कि सहिंता के हमें ही मारोगे ! आप तो हमें अपने कारखाने से ही ज़बरिया रिटायर करने मा तुले हौ !
प्लीज़,अन्ना जी थोड़ा तो रहम करो हम पंचन पर !!

 


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ये चुटकुला सुना !

संता - यार ये सरकार अण्णा हज़ारे के प्रस्ताव पर कानून क्यों नहीं बनाना चाह रही थी ?
बंता - अबे लोग तो सवाल पूछने के भी नोट लेते हैं, और ये अण्णा मुफ़्त में ही कानून बनवाने के जुगाड़ में था...

संता - फिर ये सरकार अब मान कैसे गई?
बंता - दूसरों ने समझाया कि हर काम के लिए ही पैसे की उम्मीद नहीं करनी चाहिये, कभी-कभी फ़र्ज़ भी निभा देना चाहिये.
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