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सरकारी लापरवाही का शिकार हुए साहित्‍यकार कालीचरण प्रेमी गुजर गए

मैं सरकारी लापरवाही का शिकार हुआ हूं 
जब इंसान चाहकर भी कुछ न कर पाए और मन भर भर आए। आंखों के आंसू बेबसी को प्रकट करते रह जाएं। यही हुआ। नुक्‍कड़ पर दिनांक 14 अप्रैल 2011 को इस पोस्‍ट का प्रकाशन हुआ। नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकत हैं।

साहित्‍यकार एवं डाक-कर्मी कालीचरण प्रेमी ब्‍लड कैंसर से पीडि़त और सरकारी कार्यालय की कार्यप्रणाली से त्रस्‍त 

सूचना जारी होने के बाद भी कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं हुई। स्थिति बिगड़ते देख दिनांक 20 अप्रैल 2011 को दूसरी पोस्‍ट लगाई गई। 

और अंतत: सरकारी लापरवाही की विजय हो गई और हम सबके प्रिय साहित्‍यकार कालीचरण प्रेमी जी स्‍वर्ग सिधार गए। विस्‍तृत खबर यहां पर है।
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ब्लड कैंसर पीड़ित डाक-कर्मी व साहित्यकार धन के अभाव में मृत्यु-शैया पर

यह लगभग हृदय-विदारक समाचार है।
कैंसर वार्ड के बिस्तर पर असहाय कालीचरण प्रेमी
कालीचरण प्रेमी पुन: आई॰सी॰यू॰ में शिफ्ट कर दिये गये हैं। उनके शरीर का दायाँ हिस्सा पक्षाघात का शिकार हो चुका है। नाक से खून बहने लगा है। उनका जीवन बचाने की डॉक्टरों की कोशिशें जारी हैं। उन्हें कितने ही यूनिट पैलेट्स और चढ़ाए जा चुके हैं और डाक-विभाग से उनको मेडिकल सहायता-राशि अभी तक भी नहीं मिल पाई है। इस दुष्कर्म की किन शब्दों में भर्त्स्ना की जाय--समझ में नहीं आ रहा।
आज(दिनांक 20-4-2011) शाम करीब आठ बजे भाई सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा का फोन आया था। प्रेमी जी की पत्नी के हवाले से उन्होंने मुझे बताया कि वह अब पहचान भी नहीं रहे हैं। अरोड़ा जी ने मुझसे कहा कि वे अपने घर से हॉस्पिटल के लिए निकल रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि आप पहुँचिए, मैं भी आता हूँ।
रोगी की हालत की गम्भीरता के मद्देनजर आई॰सी॰यू॰ स्टाफ ने पाँच मिनट के लिए उनके निकट जाने की अनुमति मुझे दे दी। मैं लगभग 8॰55 पर आई॰सी॰यू॰ में कालीचरण के बिस्तर तक पहुँचा। वह बेहाल थे और गहरी साँसें ले रहे थे। मैं उनके बायीं ओर जा खड़ा हुआ। उस बेहाली में ही उनकी नजर मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे पहचानकर पलंग की रेलिंग पर रखे मेरे हाथ पर अपना बायाँ हाथ रख दिया। मैंने तुरन्त अपनी दोनों हथेलियों में उनके हाथ को थाम लिया और नौ बजे तक यों ही खड़ा रहा। कालीचरण को नि:संदेह आत्मीय स्पर्श की आवश्यकता थी। मित्रों, परिवार जनों के इस आत्मीय स्पर्श और लिखते व पढ़ते रहने की जिजीविषा के बल पर ही कालीचरण करीब चार साल तक अपने-आप को ब्लड कैंसर से लड़ने योग्य बनाए रह सके; लेकिन—‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु:…। सही नौ बजे स्टाफ नर्स ने मिलने का मेरा समय समाप्त होने का ध्यान दिलाते हुए आई॰सी॰यू॰ से बाहर चले जाने को कह दिया। मैं कालीचरण से कुछ कह नहीं सका, जबकि इशारे से कुछ कहना अवश्य चाहिए था। उस इशारे का तात्पर्य कालीचरण समझ अवश्य जाते क्योंकि पहले इस बारे में हम विमर्श कर चुके थे। मुझे दु:ख है कि मैं उन्हें कुछ समझाए बिना चुपचाप बाहर निकल आया।
उसी दौरान सुरेन्द्र अरोड़ा जी भी पहुँच गये और 9॰30 के लगभग वे भी कालीचरण को देखकर आये। इस बीच कालीचरण प्रेमी की हालत में कुछ-और गिरावट आ चुकी थीउनके कथन से मुझे ऐसा लगा।
दोस्तो, कालीचरण प्रेमी की शारीरिक स्थिति के मद्देनजर हॉस्पिटल प्रशासन उनके परिवार पर दबाव बना रहा है कि वे उनके इलाज की रकम तुरन्त जमा कराएँ। जैसाकि दिनांक 14 अप्रैल 2011 की पोस्ट में हमने लिखा थाकेन्द्रीय डाककर्मी होने के नाते कालीचरण प्रेमी का इलाज सी॰जी॰एच॰एस॰ के पैनल में दर्ज शान्ति मुकुन्द हॉस्पिटल, दिल्ली में चल रहा है। और उनके डॉक्टरों द्वारा उनके इलाज में खर्च होने वाली अनुमानित राशि की माँग वाली फाइल(जिसका नम्बर E/Kalicharan Premi/Medical Advance/2010-11 है) दिनांक 23 मार्च, 2011 ) यानी गत लगभग एक माह से गाजियाबाद, नोएडा, लखनऊ और दिल्ली के चक्कर काट रही है। सम्बन्धित अधिकारी कितने संवेदनहीन हो चुके है, यह इसका घिनौना उदाहरण है।
बलराम अग्रवाल
सुभाष नीरव
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
ओमप्रकाश कश्यप
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
अविनाश वाचस्पति
एवं अन्य साहित्यिक मित्र
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साहित्‍यकार एवं डाक-कर्मी कालीचरण प्रेमी ब्‍लड कैंसर से पीडि़त और सरकारी कार्यालय की कार्यप्रणाली से त्रस्‍त

सरकारी कार्यालय के कैंसर से भी पीडि़त

श्रीयुत कालीचरण प्रेमी पिछ्ले चार वर्षों से ब्लड कैंसर से पीड़ित हैं और इन दिनों शान्ति मुकुन्द अस्पताल, दिल्ली में तृतीय तल स्थित कैंसर वार्ड के कमरा नं॰ 3029 में पड़े हैं। वह भारतीय डाक-विभाग में सेवारत हैं और इन दिनों प्रधान डाकघर गाजियाबाद के एक उपडाकघर कविनगर में बतौर डाक-सहायक कार्यरत हैं।
स्वास्थ्य में अचानक आई गिरावट के कारण गत 22 मार्च, 2011 को उन्हें दिल्ली में प्रीत विहार चौराहे के निकट(प्र॰ डा॰ कृष्णनगर, दिल्ली के सामने दीपक मेमोरियल अस्पताल के बराबर में) स्थित शान्ति मुकुन्द हॉस्पिटल के कैंसर वार्ड में लाया गया, जो कि सी॰जी॰एच॰एस॰ के पैनल में है। उनका इलाज कर रहे डॉ॰ समीर खत्री ने उन्हें तुरन्त आई॰सी॰यू॰ में भर्ती किया और लगातार गिर रहे उनके पैलेट्स पर काबू पाया।
ध्यातव्य है कि कालीचरण प्रेमी अत्यन्त गरीब परिवार के व्यक्ति हैं। तिस पर ब्लड कैंसर जैसी मँहगे इलाज वाली जानलेवा बीमारी ने न केवल उनके स्वास्थ्य बल्कि बचे-खुचे आर्थिक आधार को भी समाप्त कर दिया है और वे कर्ज में गहरे डूब गये हैं।
उनका कहना है कि गाजियाबाद के साहित्यिक मित्रों से ही नहीं, स्थानीय विभागीय मित्रों व अधिकारियों से भी उन्हें लगातार यथोचित मानसिक सहयोग मिलता रहा है; लेकिन इस बार जब से, यानी 23 मार्च 2011 को उनके इलाज हेतु शान्ति मुकुन्द अस्पताल द्वारा माँगी गई अग्रिम राशि की फाइल (जिसका नम्बर E/Kalicharan Premi/Medical Advance/2010-11 है,) अनुमोदन हेतु विभाग के उच्चाधिकारियों को भेजी गई है तब से यहाँ-वहाँ चक्कर काट रही है और किसी भी तरह का कोई सन्तोषजनक उत्तर उन्हें या उनका इलाज कर रहे अस्पताल को नहीं मिला है। यों शान्ति मुकुन्द अस्पताल प्रशासन भी उनका इलाज कर ही रहा है, लेकिन अग्रिम राशि के अनुमोदन की सूचना यह समाचार लिखे जाने तक भी न मिलने की चिन्तास्वरूप इस दौरान कई बार अस्पताल में ही उनके पैलेट्स गिर चुके हैं तथा आनन-फानन में उनके लिए आवश्यक पैलेट्स का इन्तजाम करके उन्हें चढ़ाया जा चुका है। यह सब खर्चा उनके निर्धन परिवार को किसी न किसी तरह कर्जा लेकर करना पड़ रहा है। साहित्यिक और विभागीय मित्रों की सान्त्वना तथा परिवारजनों के श्रम की बदौलत कालीचरण प्रेमी का मनोबल बढ़ा हुआ है, लेकिन ब्लड कैंसर के इलाज के लिए अग्रिम राशि का अनुमोदन प्राप्त होने में हो चुकी अपरिहार्य देरी ने उनके मनोबल को तोड़ डाला है। वह कहने लगे हैं कि उन्हें कैंसर तो जब मारेगा तब मारेगा ही, इलाज के लिए विभाग से समय पर न मिलने वाला आर्थिक अनुमोदन दिन-ब-दिन अभी से मार रहा है।
कालीचरण प्रेमी का ही नहीं हमारा भी कहना है कि यदि ब्लड कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के रोगी के इलाज हेतु अग्रिम राशि के अनुमोदन हेतु डाक विभाग का यह रूप और रवैया है तो आम बीमारी से त्रस्त रोगियों को मिलने वाली सहायता का क्या हाल होता होगा, इसका अन्दाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि मृदुल स्वभाव के कालीचरण प्रेमी डाक-विभाग की सेवा के साथ-साथ हिंदी-साहित्य की सेवा भी पिछले 30-32 वर्षों से लगातार कर रहे हैं। वे अनेक पत्रिकाओं के अवैतनिक साहित्य संपादक रहे हैं। उनकी लघुकथाओं का पहला लघुकथा संग्रह कीलें सन् 2002 में आया था तथा दूसरा लघुकथा संग्रहतवा जिसे उन्होंने विश्वभर के कैंसर पीड़ितों को समर्पित किया है, शीघ्र प्रकाश्य है। तवा के प्रकाशन हेतु आर्थिक सहायता सुलभ इंटरनेशनल ने प्रदान की है। सन् 2010 में प्रकाशित उनके द्वारा संपादित लघुकथा संकलन अंधा मोड़ खासा चर्चित रहा है।
इस समाचार के माध्यम से अपील की जा रही है कि केन्द्र सरकार का कर्मचारी होने के नाते डाक-कर्मी व लघुकथाकार श्री कालीचरण प्रेमी की जो भी सम्भव सहायता उनके इलाज हेतु अग्रिम राशि के अनुमोदन की दिशा में हो सकती हो, कृपया वह करें।
बलराम अग्रवाल
सुभाष नीरव
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
ओमप्रकाश कश्यप
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
अविनाश वाचस्‍पति
एवं अन्य साहित्यिक मित्र
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