अन्ना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अन्ना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

अन्ना बाबा हमरी तौ सुनौ !

अन्ना-बाबा आप हमारे अब अन्नदाता और अन्नबाबा   हैं.हम सबके पीछे डंडा लिए काहे फिर रहे हैं.सुनते हैं आप! हमरे लरिका-बच्चन का ख़याल नय है आपका ?दिल्ली में हमने आपकी भरपूर सेवा की और अब आप हमें ही 'रिजेक्ट' करने की फिराक मा लगे हौ !अपने शरीर का भी तौ कुछ ख़याल राखौ !अभी-अभी अनशन ते उठ्यो है औ अब फिर....! हमने फूल और गुलदस्ते यहि नाते थोड़ी ना भेजे थे कि सहिंता के हमें ही मारोगे ! आप तो हमें अपने कारखाने से ही ज़बरिया रिटायर करने मा तुले हौ !
प्लीज़,अन्ना जी थोड़ा तो रहम करो हम पंचन पर !!

 


Read More...

अरे कोई मुझे भी तो पकड़ो…


लाल बत्ती लगी सरकारी गाड़ियों में बच्चों को स्कूल आते-जाते या मेमसाहबों को बाज़ारबाज़ी करते तो सबने देखा होगा पर बहुत कम लोगों ने ये देखा होगा कि सड़कों पर जो लम्बी-लम्बी कारें चौबीसों घंटे यहां-वहां डोलती फिरती हैं उनमें से लगभग सभी किसी न किसी काम-धंधे के नाम पर ख़रीदी गई होती हैं और उनके ड्राइवर, हवा-पानी, तेल-डीज़ल, धुलाई-सफाई  और यहां तक कि उनके पार्किंग व पंक्चर तक का ख़र्चा भी उसी काम-धंधे के ख़र्चे में दिखाया जाता है. फिर भले ही वह कार किसी भी काम के लिए कहीं भी क्यों ना चलाई जाती हो.

बिजली चोरी करके काम-धंधे चलाना कोई नई बात नहीं है, कुठ ठाड़े लोग तो घर का ए.सी. तक बिजली का मीटर धीमे कर या बंद कर चला लेते हैं. ज़मीन जायदाद की ख़रीद फ़रोख़्त तो होती ही दो हिस्सों में है, एक नंबर के काग़ज बनते हैं, दो नंबर का काम मुस्कुराने से चल जाता है. बिल लेने की सलाह दुकानदार भी तभी देता है जब उसे लगता है कि –‘कल को माल ख़राब निकलने पर बोहनी के टैम ये कहीं माथा-पच्ची करने न आ धमके’. हमारा क्या है, हमें तो बिल लेकर कोई मत्थे मारना है क्या कि नाहक सेल्स-टैक्स (और आजकल वैट) भरते फिरें, फिर इस बात की ही क्या गारंटी है कि दुकानदार ही हमें वही पर्चा देगा जिसका टैक्स भी सरकार को जमा करवा ही देगा वो. वह मुआ भी तो दो नंबर के बिल बनाकर थमा देता है.

जब सरकार तन्ख़्वाह देने से पहले ही मेरी तन्ख़्वाह में से हर महीने टैक्स काट लेती है तो मैं कभी यह कहना नहीं भूलता कि –“जितना मेरा टैक्स कटता इतना तो काम-धंधे वाले सालाना कमाई भी नहीं दिखाते.” हे सरकार मैंने ही तेरा क्या बिगाड़ा है. यह बात अलग है कि सरकारी बाबू तो इस टैक्स कटाई में कुछ नहीं कर सकता पर हां, निजि क्षेत्र में चलने वाले कामकाजी अपने-अपने कर्मचारियों-अधिकारियों को दुनिया भर के वे सभी हथकंडे अपना कर पगार देते हैं कि अपने काम धंधे का तो ख़र्चा बढ़ ही जाए, मातहतों को भी टैक्स-मैनेजमेंट का फ़ायदा हो जाए.

कितना अच्छा लगता है कामचोरी करना, जब कोई देख न रहा हो. लेकिन अब वो दिन भी कहां रहे, जिसे देखो वहीं चोर-उचक्कों के नाम पर क्लोज़ सर्केट टी.वी. लगा कर अपने-अपने बंदों पर नज़र रखने की फ़िराक़ में रहता है. पर पब्लिक डीलिंग बाबू की कुर्सी लंबे-लंबे समय तक खाली दिखना कोई नई बात नहीं है. काउंटर के दूसरी तरफ वाला गंदा सा बाबू पैसा भी नहीं मांगता, काम भी नहीं करता, काम होने भी नहीं देता और बात-बात पर काटने को दौड़ता है, सो अलग. बाबू को इसी हड़काई में ही परमानंद आ जाता है.

एक गार्मेंट एक्सपोर्टर को मैंने बड़ी संजीदगी से कहते सुना कि वो कैसे कपड़े को खींच-खींच कर ही बढ़ा देता है. मैंने पूछा –‘तुम्हें बाज़ार में चीन से डर नहीं लगता ?’ उसने फिर खीस निपोर दी –“हें हें हें अरे हम तो चीन से फिर भी चार हाथ आगे हैं, हम पायजामा भेजते हैं तो वह हाफ़ पेंट तो निकलता है, चीन से पायजामा मंगाने वाले को तो कच्छा ही हाथ लगता है.”

पता नहीं कितने लोग हैं जो फ़ाइव-स्टारों के रेस्टोरेंटों या दारूखानों का भुगतान अपनी टैक्स चुकाई गई कमाई से करते हैं, या फिर दोपहर में विदेशी परफ़्यूम लगी सौ-सौ किलो की महिलाएं जिन बुटीकों में हज़ारों के कपड़े-लत्ते यूं ही ख़रीद मारती हैं, उनमें से कितनी ख़रीदारी का भुगतान टैक्स चुकाई गई कमाई से होता है…

सुना है दूसरों के लिए तो लोकपाल बिल आ रहा है, है कोई माई का लाल जो मेरा भी कुछ बिगाड़ ले. मेरा कुछ नी हो सक्ता.
000000000000
Read More...
 
Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz